"बृहदीश्वर मन्दिर": अवतरणों में अंतर

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नटराज के पंजों में राक्षस : प्रतीक है कि अज्ञानता भगवान के चरणों में है।
नटराज के पंजों में राक्षस : प्रतीक है कि अज्ञानता भगवान के चरणों में है।


<big>हाथ में अग्नि</big> : प्रतीक है बुराई कोनष्ट करने वाली है।
<big>हाथ में अग्नि</big> : प्रतीक है बुराई कोनष्ट करने वाली है।<br />

<big>उठाया हुआ हाथ</big> : प्रतीक है समस्त जीवों के उद्धारक है।
<big>पीछे का चक्र :</big> ब्रह्मांड का प्रतीक है।
<big>उठाया हुआ हाथ</big> : प्रतीक है समस्त जीवों के उद्धारक है।<br />

<big>पीछे का चक्र :</big> ब्रह्मांड का प्रतीक है।<nowiki><br />

<big>डमरू :</big> जीवन की उत्पत्ति का प्रतीक है।
<big>डमरू :</big> जीवन की उत्पत्ति का प्रतीक है।

यह सभी चीजें नटराज की मूर्ति और ब्रह्मांडीय नृत्य मुद्रा चित्रित करते हैं।
यह सभी चीजें नटराज की मूर्ति और ब्रह्मांडीय नृत्य मुद्रा चित्रित करते हैं।
चिदम्बरम मंदिर 40 एकड़ में फैला हुआ है। यह भगवान शिव नटराज और भगवान गोविंदराज पेरुमल (विष्णु) कोसमर्पित है। यहां पर शैव व वैष्णव दोनों देवता एक ही स्थान पर प्रतिष्ठित है।
चिदम्बरम मंदिर 40 एकड़ में फैला हुआ है। यह भगवान शिव नटराज और भगवान गोविंदराज पेरुमल (विष्णु) कोसमर्पित है। यहां पर शैव व वैष्णव दोनों देवता एक ही स्थान पर प्रतिष्ठित है।
चिदंबरम के पवित्र गर्भ गृह में भगवान तीन स्वरूपों में विराजते हैं।
चिदंबरम के पवित्र गर्भ गृह में भगवान तीन स्वरूपों में विराजते हैं।

<big>रूप</big> : भगवान नटराज के रूप में- मानव रूप में जिसे सकल थिरूमेनी कहते है।
<big>रूप</big> : भगवान नटराज के रूप में- मानव रूप में जिसे सकल थिरूमेनी कहते है।

<big>अर्धरूप :</big> चन्द्रमौलेश्वर के स्फटिक रूप में अर्धमानवरूपी जिसे सकल निष्कला थिरुमेनी कहते है।
<big>अर्धरूप :</big> चन्द्रमौलेश्वर के स्फटिक रूप में अर्धमानवरूपी जिसे सकल निष्कला थिरुमेनी कहते है।

<small>आकार रहित :</small><big>बड़ा पाठ</big> चिदंबरम में भगवान शिव की निराकार रूप में पूजा की जाती है। यहां एक स्थान कोचिदंबरम रहस्य कहते हैं। इस विषय में ऐसा कहा जाता है कि भगवान आनंद तांडव की अवस्था में अपनी सहचरि शक्ति अथवा ऊर्जा जिसे शिवगामी कहते हैं के साथ निरंतर नृत्य कर रहे हैं। एक पर्दा इस स्थान कोढक लेता है तब स्वर्ण विल्व पत्रों की झालरे दिखाई पड़ती है जो भगवान की उपस्थिति का संकेत देती है। यह पर्दा बाहरी तरफ से गहरे रंग का (अज्ञानता का प्रतीक) है तथा अंदर से चमकीले लाल रंग का (बुद्धिमता और आनंद का प्रतीक) है। चिदंबरम रहस्यमय एक खाली स्थान है जिसे निष्कला थिरुमैनी कहते हैं। प्रतिदिन संस्कारों के दौरान उस दिन का प्रमुख पुजारी स्वयं देवत्व की अवस्था में परदे कोहटाते है यह अज्ञानता कोहटाने का संकेत है।
<small>आकार रहित :</small><big>बड़ा पाठ</big> चिदंबरम में भगवान शिव की निराकार रूप में पूजा की जाती है। यहां एक स्थान कोचिदंबरम रहस्य कहते हैं। इस विषय में ऐसा कहा जाता है कि भगवान आनंद तांडव की अवस्था में

अपनी सहचरि शक्ति अथवा ऊर्जा जिसे शिवगामी कहते हैं के साथ निरंतर नृत्य कर रहे हैं। एक पर्दा इस स्थान कोढक लेता है तब स्वर्ण विल्व पत्रों की झालरे दिखाई पड़ती है जो भगवान की उपस्थिति का संकेत देती है। यह पर्दा बाहरी तरफ से गहरे रंग का (अज्ञानता का प्रतीक) है तथा अंदर से चमकीले लाल रंग का (बुद्धिमता और आनंद का प्रतीक) है। चिदंबरम रहस्यमय एक खाली स्थान है जिसे निष्कला थिरुमैनी कहते हैं। प्रतिदिन संस्कारों के दौरान उस दिन का प्रमुख पुजारी स्वयं देवत्व की अवस्था में परदे कोहटाते है यह अज्ञानता कोहटाने का संकेत है।
भगवान शिव की पूजा पंचभूत (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु व आकाश) के रूप में की जाती है। चिदंबरम में आकाश रूप में पूजा की जाती है। (काचीपुरम के एकम्बेरश्वर मंदिर में पृथ्वी के रूप में, थिरुवनाईकवल के जम्बुकेश्वर मंदिर में जल के रूप में, तिरुवन्ना भलाई के अन्नामालइयर मंदिर में अग्रि के रूप में तथा श्री कलहस्थी में कलाहस्ती मंदिर में वायु के रूप में शिव की पूजा होती है।)
भगवान शिव की पूजा पंचभूत (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु व आकाश) के रूप में की जाती है। चिदंबरम में आकाश रूप में पूजा की जाती है। (काचीपुरम के एकम्बेरश्वर मंदिर में पृथ्वी के रूप में, थिरुवनाईकवल के जम्बुकेश्वर मंदिर में जल के रूप में, तिरुवन्ना भलाई के अन्नामालइयर मंदिर में अग्रि के रूप में तथा श्री कलहस्थी में कलाहस्ती मंदिर में वायु के रूप में शिव की पूजा होती है।)
पांच मंदिरों में तीन मंदिर (कालहस्ती, काचीपुरम और चिदंबरम एक सीध में है जो कि ज्योतिषीय व भौगोलिक दृष्टि से चमत्कार है जबकि तिरुवनाइकणवल इस पवित्र अक्ष पर दक्षिण की ओर 3 अंश और उत्तरी छोर के पश्चिम से एक अंश पर स्थित है जबकि तिरुवन्नामलाई लगभग बीच में है दक्षिण की ओर 1.5 अश और पश्चिम की ओर 0.5 अश पर स्थित है।
पांच मंदिरों में तीन मंदिर (कालहस्ती, काचीपुरम और चिदंबरम एक सीध में है जो कि ज्योतिषीय व भौगोलिक दृष्टि से चमत्कार है जबकि तिरुवनाइकणवल इस पवित्र अक्ष पर दक्षिण की ओर 3 अंश और उत्तरी छोर के पश्चिम से एक अंश पर स्थित है जबकि तिरुवन्नामलाई लगभग बीच में है दक्षिण की ओर 1.5 अश और पश्चिम की ओर 0.5 अश पर स्थित है।
चिदंबरम उन पांच स्थलों में है जहां शिव भगवान ने नृत्य किया था तथा सभी स्थानों पर मंच-सभाएं हैं। चिदंबरम में पोर सभई (स्वर्ण) है। (अन्य जगह थिरुवालान्याटु में रतिनासभई (मानिक सभा), कोर्वाल्लम में चित्रसभई (कलाकारी), मीनाक्षी मंदिर में रजत सभई- वैल्लीअम्बलम (रजत-वेली-चांदी) तथा तिरुनेलवेली में नेल्लैअप्पर मंदिर में थामिरा सभई (थामिरम- तांबा) है।)
चिदंबरम उन पांच स्थलों में है जहां शिव भगवान ने नृत्य किया था तथा सभी स्थानों पर मंच-सभाएं हैं। चिदंबरम में पोर सभई (स्वर्ण) है। (अन्य जगह थिरुवालान्याटु में रतिनासभई (मानिक सभा), कोर्वाल्लम में चित्रसभई (कलाकारी), मीनाक्षी मंदिर में रजत सभई- वैल्लीअम्बलम (रजत-वेली-चांदी) तथा तिरुनेलवेली में नेल्लैअप्पर मंदिर में थामिरा सभई (थामिरम- तांबा) है।)
कहते है कि मानिकाव्यसागर ने 2 कृतियों की रचना की थी जिसमें तिरुवासाकम का अधिकांश पाठ चिदंबरम में किया गया दूसरी थिरुकोवैय्यर का पूर्ण पाठ किया गया तथा मानिकाव्यासागर कोचिदंबरम में आत्म ज्ञान (अध्यात्मिक) की प्राप्ति हुई थी।
कहते है कि मानिकाव्यसागर ने 2 कृतियों की रचना की थी जिसमें तिरुवासाकम का अधिकांश पाठ चिदंबरम में किया गया दूसरी थिरुकोवैय्यर का पूर्ण पाठ किया गया तथा मानिकाव्यासागर कोचिदंबरम में आत्म ज्ञान (अध्यात्मिक) की प्राप्ति हुई थी।

इस मंदिर के 9 द्वार हैं जिनमें 4 पर ऊंचे गोपुर बने हैं (पूर्व-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण) इनमें 7 स्तर है। पूर्व के गोपुर पर भरतनाट्यम की 108 कलाएं अंकित हैं (यह 11वीं सदी में चोल राजा द्वारा बनवाया गया) ये 9 द्वार मनुष्यों के 9 विवरों का संकेत करते हैं।
इस मंदिर के 9 द्वार हैं जिनमें 4 पर ऊंचे गोपुर बने हैं (पूर्व-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण) इनमें 7 स्तर है। पूर्व के गोपुर पर भरतनाट्यम की 108 कलाएं अंकित हैं (यह 11वीं सदी में चोल राजा द्वारा बनवाया गया) ये 9 द्वार मनुष्यों के 9 विवरों का संकेत करते हैं।

चितसभाई (पौनाम्बलम) गर्भगृह हृदय का प्रतीक है यहां पांच सीढिय़ों द्वारा जाया जाता है इन्हें पंचाटचारा पदी कहते हैं। पंच यानि 5 अक्षरा शाश्वत शब्दांश सि वा, या, ना,म। पवित्र गर्भ गृह 28 खम्बों पर खड़ा है जो 28 आगमया भगवान शिव की पूजा की निर्धारित रीतियों का प्रतीक है। छत 64 धरनों के समूह पर आधारित है जो 64 कला का प्रतीक है। इसमें आने वाली आड़ी धरने असंख्य रुधिर कोशिकाओं का संकेत है। छत का निर्माण 21600 स्वर्ण टाइलों द्वारा किया गया है इन पर सि वा, या, ना,म लिखा है जो मानव द्वारा लिए गए श्वासों का प्रतीक है। यह स्वर्ण टाइले 72000 स्वर्ण कीलों की सहायता से लगाई गई है जो मनुष्य शरीर में उपस्थित नाडिय़ों की संख्या का प्रतीक है। छत के ऊपर 9 तांबे के कलश हैं जो ऊर्जा (शक्तियों) के 9 रूपों का प्रतीक है। अर्थ मण्डप में 6 खंबे है जो 6 शास्त्रों के प्रतीक है। अर्थमण्डप के साथ वाले मण्डप में 18 खंबे है जो 18 पुराणों का प्रतीक है। चित सभा की छत चार खंबों पर खड़ी है जो चार वेदों का प्रतीक है। यहां के मंदिर का रथ तमीलनाडू के सभी मंदिरों के रथ से सुंदर है नटराज भगवान एक वर्ष में दो बार इस पर बैठते हैं जिसे असंख्य भक्त खीचते हैं।
===== चितसभाई (पौनाम्बलम) =====

गर्भगृह हृदय का प्रतीक है यहां पांच सीढिय़ों द्वारा जाया जाता है इन्हें पंचाटचारा पदी कहते हैं। पंच यानि 5 अक्षरा शाश्वत शब्दांश सि वा, या, ना,म। पवित्र गर्भ गृह 28 खम्बों पर खड़ा है जो 28 आगमया भगवान शिव की पूजा की निर्धारित रीतियों का प्रतीक है। छत 64 धरनों के समूह पर आधारित है जो 64 कला का प्रतीक है। इसमें आने वाली आड़ी धरने असंख्य रुधिर कोशिकाओं का संकेत है। छत का निर्माण 21600 स्वर्ण टाइलों द्वारा किया गया है इन पर सि वा, या, ना,म लिखा है जो मानव द्वारा लिए गए श्वासों का प्रतीक है। यह स्वर्ण टाइले 72000 स्वर्ण कीलों की सहायता से लगाई गई है जो मनुष्य शरीर में उपस्थित नाडिय़ों की संख्या का प्रतीक है। छत के ऊपर 9 तांबे के कलश हैं जो ऊर्जा (शक्तियों) के 9 रूपों का प्रतीक है। अर्थ मण्डप में 6 खंबे है जो 6 शास्त्रों के प्रतीक है। अर्थमण्डप के साथ वाले मण्डप में 18 खंबे है जो 18 पुराणों का प्रतीक है। चित सभा की छत चार खंबों पर खड़ी है जो चार वेदों का प्रतीक है। यहां के मंदिर का रथ तमीलनाडू के सभी मंदिरों के रथ से सुंदर है नटराज भगवान एक वर्ष में दो बार इस पर बैठते हैं जिसे असंख्य भक्त खीचते हैं।
यहां 5 सभाएं हैं (मंच अथवा हाल)
यहां 5 सभाएं हैं (मंच अथवा हाल)

<big>चित सभा :</big> यहां पवित्र गर्भ गृह है जहां भगवान नटराज तथा सहचरी शिवाग्मा सुन्दरी के साथ विराजमान है।
<big>चित सभा :</big> यहां पवित्र गर्भ गृह है जहां भगवान नटराज तथा सहचरी शिवाग्मा सुन्दरी के साथ विराजमान है।

<big>कनक सभा :</big> यह चित सभई के ठीक सामने है जहां दैनिक पूजा की जाती है। चित सभा व कनक सभा की छतें स्वणीमण्रित है तथा उन्हें पौन्नबलम कहते हैं।
<big>कनक सभा :</big> यह चित सभई के ठीक सामने है जहां दैनिक पूजा की जाती है। चित सभा व कनक सभा की छतें स्वणीमण्रित है तथा उन्हें पौन्नबलम कहते हैं।
नृत्यसभा <big>:
नृत्यसभा <big>: मान्यता के अनुसार यहां भगवान शिव ने देवी काली के साथ नृत्य किया था। इसमें 56 खम्बे हैं। इसमें शिव का एक पांव ऊपर है एक नीचे। शिव चांदी जडि़त हैं।
मान्यता के अनुसार यहां भगवान शिव ने देवी काली के साथ नृत्य किया था। इसमें 56 खम्बे हैं। इसमें शिव का एक पांव ऊपर है एक नीचे। शिव चांदी जडि़त हैं।
<big>राजा सभा</big> : यह 1000 पिल्लरों का हाल कमल या सहस्त्रनाम योगिक चक्र का प्रतीक है। सहस्त्र चक्र योगिक क्रिया का सर्वोच्च बिन्दु है यहां ध्यान लगने से परमात्मा से मिलन की अवस्था कोप्राप्त किया जा सकता है।
<big>राजा सभा</big> : यह 1000 पिल्लरों का हाल कमल या सहस्त्रनाम योगिक चक्र का प्रतीक है। सहस्त्र चक्र योगिक क्रिया का सर्वोच्च बिन्दु है यहां ध्यान लगने से परमात्मा से मिलन की अवस्था कोप्राप्त किया जा सकता है।

<big>देवसभा :</big> यहां पांच मूर्तियां है - भगवान गणेश, भगवान सोमास्कन्द सहचरी के साथ, भगवान की सहचरी शिवनंदा नायकी, भगवान मुरुगन व भगवान चंडीकेश्वर।
<big>देवसभा :</big> यहां पांच मूर्तियां है - भगवान गणेश, भगवान सोमास्कन्द सहचरी के साथ, भगवान की सहचरी शिवनंदा नायकी, भगवान मुरुगन व भगवान चंडीकेश्वर।

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आदर्श शिव मंदिर की संरचना की व्याख्या : ===
आदर्श शिव मंदिर की संरचना की व्याख्या : ===
आगम नियमों के अनुसार आदर्श शिव मंदिर में 5 प्रकार (परिक्रमा) होगी प्रत्येक दीवार से विभाजित होगी। अन्दर की परिक्रमा कोछोडक़र बाहरी परिक्रमा के पथ खुले आकाश के नीचे होंगे। सबसे अन्दर वाले परिक्रमा पथ पर प्रधान देवता व अन्य देवता विराजमान होंगे। प्रधान देवता के ठीक सीध में एक काठ का या पत्थर का विशाल ध्वजा स्तम्भ होगा। सबसे अन्दर के परिक्रमा पथ पर पवित्र गर्भ गृह होगा इसमें भगवान शिव विराजमान होंगे।
आगम नियमों के अनुसार आदर्श शिव मंदिर में 5 प्रकार (परिक्रमा) होगी प्रत्येक दीवार से विभाजित होगी। अन्दर की परिक्रमा कोछोडक़र बाहरी परिक्रमा के पथ खुले आकाश के नीचे होंगे। सबसे अन्दर वाले परिक्रमा पथ पर प्रधान देवता व अन्य देवता विराजमान होंगे। प्रधान देवता के ठीक सीध में एक काठ का या पत्थर का विशाल ध्वजा स्तम्भ होगा। सबसे अन्दर के परिक्रमा पथ पर पवित्र गर्भ गृह होगा इसमें भगवान शिव विराजमान होंगे।
मंदिर इस प्रकार निर्मित है कि अपनी सभी जटिलताओं सहित मानव शरीर से मिलता है। एक-दूसरे में परिवेष्ठित कराती दीवारें मानव अस्तित्व के आवरण हैं।
मंदिर इस प्रकार निर्मित है कि अपनी सभी जटिलताओं सहित मानव शरीर से मिलता है। एक-दूसरे में परिवेष्ठित कराती दीवारें मानव अस्तित्व के आवरण हैं।

- सबसे बाहरी दीवार अन्नामय कोष है जो भौतिक शरीर का प्रतीक है।
- सबसे बाहरी दीवार अन्नामय कोष है जो भौतिक शरीर का प्रतीक है।

- दूसरा प्रणमय कोष है जो जैविक शक्ति या प्राण के आवरण का प्रतीक है।
- दूसरा प्रणमय कोष है जो जैविक शक्ति या प्राण के आवरण का प्रतीक है।

-तीसरा मनोमय कोष है जो विचारों, मन के आवरण का प्रतीक है।
-तीसरा मनोमय कोष है जो विचारों, मन के आवरण का प्रतीक है।

-चौथा विज्ञाणमय कोष है जो बुद्धि के आवरण का प्रतीक है।
-चौथा विज्ञाणमय कोष है जो बुद्धि के आवरण का प्रतीक है।

-पांचवां व सबसे भीतरी आनन्यमय कोष है जो आनन्द के आवरण का प्रतीक है।
-पांचवां व सबसे भीतरी आनन्यमय कोष है जो आनन्द के आवरण का प्रतीक है।

-गर्भगृह जो परिक्रमा पथ पर है वह आनन्दमय कोष का प्रतीक है। उसमें देवता विराजते है जैसे हमारे शरीर में जीव आत्मा के रूप में विद्यमान है। गर्भ गृह में एक प्रकाशरहित स्थान होता है जैसे कि वह हमारे हृदय में भी स्थित है, जिस प्रकार हृदय शरीर के बायीं ओर होता है उसी प्रकार चिदंबरम में गर्भ बायी तरफ है।
-गर्भगृह जो परिक्रमा पथ पर है वह आनन्दमय कोष का प्रतीक है। उसमें देवता विराजते है जैसे हमारे शरीर में जीव आत्मा के रूप में विद्यमान है। गर्भ गृह में एक प्रकाशरहित स्थान होता है जैसे कि वह हमारे हृदय में भी स्थित है, जिस प्रकार हृदय शरीर के बायीं ओर होता है उसी प्रकार चिदंबरम में गर्भ बायी तरफ है।

-प्रवेश देने वाले गोपुरी की तुलना जो व्यक्ति अपने पैर के अंगूठे कोऊपर उठाकर अपनी पीठ के बल लेटा हो, से उसके चरणों की उपमा दी गई है।
-प्रवेश देने वाले गोपुरी की तुलना जो व्यक्ति अपने पैर के अंगूठे कोऊपर उठाकर अपनी पीठ के बल लेटा हो, से उसके चरणों की उपमा दी गई है।

-ध्वजास्तम्भ सुष्मना नाड़ी का प्रतीक है जो मूलाधार से उठती है और सहस्त्र (मस्तिष्क की शिखा) तक जाती है।
-ध्वजास्तम्भ सुष्मना नाड़ी का प्रतीक है जो मूलाधार से उठती है और सहस्त्र (मस्तिष्क की शिखा) तक जाती है।

श्रीगोविंद राज स्वामी मंदिर भी चिदंबरम मंदिर में है। गोविंदराजा मंदिरा 1639 में चोल राजा द्वारा बनवाया गया था। गोविंदराज पेरुमल व उनकी सहचरी पुन्दरीगावाल्ली थाय्यर कहते है। यह भगवान विष्णु के 108 दिव्य स्थलों में एक है। मूल रूप में यह मंदिर भगवान श्री गोविंदराज स्वामी का निवास था तथा भगवान शिव अपनी सहचरी के साथ वहां आएं तथा दोनों ने भगवान विष्णु कोउनकी नृत्यस्र्पधा के निर्णायक बनने का अनुरोध पर (भगवान गोविंदराज जी) निर्णायक बने। दोनों में बराबरी का नृत्य प्रतिस्पर्धा चलती रही। भगवान शिव ने विजयी होने के लिए युक्ति लगाते हुए भगवान गोविंदराज से कहा कि वे एक पैर उठाकर नृत्य कर सकते है, महिलाओं कोयह मुद्रा नृत्यशास्त्र के अनुसार वर्जित थी इसीलिए जब अतत: भगवान शिव जब इस मुद्रा में आए तो पार्वती जी ने हार स्वीकार कर ली इसीलिए इस स्थान पर भगवान शिव की मूर्ति नृत्य अवस्था में है। भगवान गोविंदराजास्वामि इस प्रतिस्पर्धा के निर्णयकत्र्ता व साक्षी दोनों थे। यहां पर भगवान विष्णु शेषशेय्या पर लेटे हुए दर्शन देते हैं।
श्रीगोविंद राज स्वामी मंदिर भी चिदंबरम मंदिर में है। गोविंदराजा मंदिरा 1639 में चोल राजा द्वारा बनवाया गया था। गोविंदराज पेरुमल व उनकी सहचरी पुन्दरीगावाल्ली थाय्यर कहते है। यह भगवान विष्णु के 108 दिव्य स्थलों में एक है। मूल रूप में यह मंदिर भगवान श्री गोविंदराज स्वामी का निवास था तथा भगवान शिव अपनी सहचरी के साथ वहां आएं तथा दोनों ने भगवान विष्णु कोउनकी नृत्यस्र्पधा के निर्णायक बनने का अनुरोध पर (भगवान गोविंदराज जी) निर्णायक बने। दोनों में बराबरी का नृत्य प्रतिस्पर्धा चलती रही। भगवान शिव ने विजयी होने के लिए युक्ति लगाते हुए भगवान गोविंदराज से कहा कि वे एक पैर उठाकर नृत्य कर सकते है, महिलाओं कोयह मुद्रा नृत्यशास्त्र के अनुसार वर्जित थी इसीलिए जब अतत: भगवान शिव जब इस मुद्रा में आए तो पार्वती जी ने हार स्वीकार कर ली इसीलिए इस स्थान पर भगवान शिव की मूर्ति नृत्य अवस्था में है। भगवान गोविंदराजास्वामि इस प्रतिस्पर्धा के निर्णयकत्र्ता व साक्षी दोनों थे। यहां पर भगवान विष्णु शेषशेय्या पर लेटे हुए दर्शन देते हैं।

पल्लव राजाओं में सिम्भवर्मन नाम के तीन राजा थे। (275- 300 सीई., 436-460 सीई., 550-560 सीई.) ऐसा माना जाता है कि सिम्मवर्मन-द्वितीय (436- 460 सीई.) ने राजसी अधिकारों का त्याग कर दिया तथा चिदम्बरम आकर रहने लगे। मंदिर इसी काल में निर्मित हुआ था। दक्षिणगोपुर पाड्या राजाओं द्वारा बनवाया गया था क्योंकि छत पर पाड्या राजवश का चिन्ह मछली खुदा हुआ है। पश्विमी गोपुर 1251 -1268 में जादव वर्मन सुन्दर पांड्या द्वारा निर्मित करवाया गया। उत्तरी गोपुर विजय नगर के राजा कृष्ण देवरायर द्वारा 1509-1529 सीई. में निर्माण करवाया गया। पूर्वी गोपुर- पल्लव राजा कोपेरुन्सिगंन द्वारा 1243- 1279 में करवाया गया। बाद में सुब्बाम्मल द्वारा मरम्मत करवाई गई। चित सभा की स्वर्णयुक्त छत चोल राजा परंटका- प्रथम ने 907 -950 सीई. में डलवाई।
पल्लव राजाओं में सिम्भवर्मन नाम के तीन राजा थे। (275- 300 सीई., 436-460 सीई., 550-560 सीई.) ऐसा माना जाता है कि सिम्मवर्मन-द्वितीय (436- 460 सीई.) ने राजसी अधिकारों का त्याग कर दिया तथा चिदम्बरम आकर रहने लगे। मंदिर इसी काल में निर्मित हुआ था। दक्षिणगोपुर पाड्या राजाओं द्वारा बनवाया गया था क्योंकि छत पर पाड्या राजवश का चिन्ह मछली खुदा हुआ है। पश्विमी गोपुर 1251 -1268 में जादव वर्मन सुन्दर पांड्या द्वारा निर्मित करवाया गया। उत्तरी गोपुर विजय नगर के राजा कृष्ण देवरायर द्वारा 1509-1529 सीई. में निर्माण करवाया गया। पूर्वी गोपुर- पल्लव राजा कोपेरुन्सिगंन द्वारा 1243- 1279 में करवाया गया। बाद में सुब्बाम्मल द्वारा मरम्मत करवाई गई। चित सभा की स्वर्णयुक्त छत चोल राजा परंटका- प्रथम ने 907 -950 सीई. में डलवाई।
राजा परटंका -द्वितीय, राजराजा चोल-प्रथम, कुलोचुंगा चोल-प्रथम, राजराजा चोल की बेटी कुदंाबाई-द्वितीय तथा चोल राजा विक्रम चोल (1113- 1135) ने भी मंदिर के लिये काफी दान दिये। पुदुकोटट्ई के महाराज शेरीसेतुपथी ने पन्ने के आभूषण दान में दिये जिन्हें आज भी भगवान कोपहनाया जाता है।


राजा परटंका -द्वितीय, राजराजा चोल-प्रथम, कुलोचुंगा चोल-प्रथम, राजराजा चोल की बेटी कुदंाबाई-द्वितीय तथा चोल राजा विक्रम चोल (1113- 1135) ने भी मंदिर के लिये काफी दान दिये। पुदुकोटट्ई के महाराज शेरीसेतुपथी ने पन्ने के आभूषण दान में दिये जिन्हें आज भी भगवान कोपहनाया जाता है।
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09:04, 16 मई 2012 का अवतरण

बृहदीश्वर मन्दिर
धर्म संबंधी जानकारी
सम्बद्धताहिन्दू धर्म
बृहदीश्वर मन्दिर is located in पृथ्वी
बृहदीश्वर मन्दिर
लुआ त्रुटि Module:Location_map में पंक्ति 42 पर: The name of the location map definition to use must be specified। के मानचित्र पर अवस्थिति

बृहदेश्वर अथवा बृहदीश्वर मन्दिर तमिलनाडु के तंजौर में स्थित एक हिंदू मंदिर है जो 11वीं सदी के आरम्भ में बनाया गया था। इसे तमिल भाषा में बृहदीश्वर के नाम से जाना जाता है । इसका निर्माण 1003-1010 ई. के बीच चोल शासक राजाराज चोल १ ने करवाया था । उनके नाम पर इसे राजराजेश्वर मन्दिर का नाम भी दिया जाता है । यह अपने समय के विश्व के विशालतम संरचनाओं में गिना जाता था । इसके तेरह (13) मंजिले भवन (सभी हिंदू अधिस्थापनाओं में मंजिलो की संख्या विषम होती है ।) की ऊंचाई लगभग 66 मीटर है । मंदिर भगवान शिव की आराधना को समर्पित है ।

यह कला की प्रत्येक शाखा - वास्तुकला, पाषाण व ताम्र में शिल्पांकन, प्रतिमा विज्ञान, चित्रांकन, नृत्य, संगीत, आभूषण एवं उत्कीर्णकला का भंडार है। यह मंदिर उत्कीर्ण संस्कृततमिल पुरालेख सुलेखों का उत्कृष्ट उदाहरण हैं। इस मंदिर के निर्माण कला की एक विशेषता यह है कि इसके गुंबद की परछाई पृथ्वी पर नहीं पड़ती। शिखर पर स्वर्णकलश स्थित है। जिस पाषाण पर यह कलश स्थित है, अनुमानत: उसका भार 2200 मन ( 80 टन) है और यह एक ही पाषाण से बना है। मंदिर में स्थापित विशाल, भव्य शिवलिंग को देखने पर उनका वृहदेश्वर नाम सर्वथा उपयुक्त प्रतीत होता है।

मंदिर में प्रवेश करने पर गोपुरम्‌ के भीतर एक चौकोर मंडप है। वहां चबूतरे पर नन्दी जी विराजमान हैं। नन्दी जी की यह प्रतिमा 6 मीटर लंबी, 2.6 मीटर चौड़ी तथा 3.7 मीटर ऊंची है। भारतवर्ष में एक ही पत्थर से निर्मित नन्दी जी की यह दूसरी सर्वाधिक विशाल प्रतिमा है। तंजौर में अन्य दर्शनीय मंदिर हैं- तिरुवोरिर्युर, गंगैकोंडचोलपुरम तथा दारासुरम्‌।

वृहदीश्वर मंदिर
चित्र:वृहदेश्वर मंदिर2.jpg
अंदर का गोपुरम् - वृहदेश्वर मंदिर

यह भी देखें

बाहरी कड़ियां

चिदम्बरम मन्दिर

तमिलनाडू को मंदिरों का राज्य कहा जाता है। पूरे तमिलनाडू तथा दक्षिण भारत में अनेकोनेक बड़े मंदिर है जो अपने आप में अनूठी कला और संस्कृति कोसमेटे हुए है। हम यहां तमिलनाडू के अनोखे शिव मंदिर जो कि चिदम्बरम में है उसका उल्लेख कर रहे हैं। चिदम्बरम मंदिर तिरुची से 155 किमी. तथा कुम्माकोणम से 74 किमी तथा पौंडीचेरी से 78 किमी. की दूरी पर कुड्डालोर जिले में स्थित है। यह दक्षिण भारत के प्रमुख मंदिरों में से एक है।

चिदम्बरम शब्द का उद्गम चित्त से लिया गया मालूम होता है जिसका अर्थ होता है चेतना तथा अम्बरम का अर्थ होता है आकाश। यह चिता की ओर संकेत करता है। वेद और धर्म ग्रंथों के अनुसार इसे प्राप्त करना ही अंतिम उद्देश्य होता है। चिदम्बरम की कथा भगवान शिव की थिलाई वनम में घुमने से शुरू होती है। वनम का अर्थ है जंगल और थिलाई वृक्ष वनस्पतिक नाम एक्सोकोरिया अगलोचा जो कि वृक्षों की एक प्रजाति है जो कि चिदंबरम के निकट पाई जाती है। थिलाई के जंगलों में साधुओं का समूह रहता था जो मानते थे कि मंत्रों अथवा जादुई शब्दों से देवताओं कोवश में किया जा सकता है। एक बार भगवान शिव साधारण भिक्षु (पित्चातंदर) के रूप में जंगल में भ्रमण करते है उनके पीछे-पीछे उनकी सहचरी भी चलती है जो मोहिणी रूप में विष्णु है। ऋषीगण व उनकी पत्नियां मोहक भिक्षुक व उनकी पत्नी पर मोहित हो जाते है। अपनी पत्नियों कोइस प्रकार मोहित देख ऋषिगण क्रोधित हो जाते है तथा मंत्रों से अनेकों नाग पैदा कर देते है। भिक्षुक रूप में भगवान उन्हें उठाकर आभूषण रूप में गले व शिखा आदि पर धारण कर लेते हैं फिर ऋषिगण क्रोधित होकर बाघ पैदा कर देते है जिनकी खाल निकाल कर भगवान चादर के रूप में अपनी कमर पर बांध लेते है, फिर सारी शक्ति लगाकर ऋषिगण शक्तिशाली राक्षस मुयालकन का आह्वान करते है जो अज्ञानता और अभिमान का प्रतीक होता है। भगवान उसकी पीढ पर चढ़ जाते हैं तथा आनंद पूर्वक तांडव करते हुए अपने असली रूप में आ जाते हैं। इस पर ऋषिगण अनुभव करते है कि वह देवता सत्य है और वे समर्पण कर देते हैं।

भगवान शिव की आनंद तांडव मुद्रा एक अत्यंत प्रसिद्ध मुद्रा है जो विश्व में अनेकों लोगों द्वारा पहचानी जाती है। यह ब्रह्मांडीय नृत्य मुद्रा हमें बताती है कि भरतनाट्यम नर्तक व नर्तकी कोकिस प्रकार नृत्य करना चाहिए। नटराज के पंजों में राक्षस : प्रतीक है कि अज्ञानता भगवान के चरणों में है।

हाथ में अग्नि : प्रतीक है बुराई कोनष्ट करने वाली है।

उठाया हुआ हाथ : प्रतीक है समस्त जीवों के उद्धारक है।

पीछे का चक्र : ब्रह्मांड का प्रतीक है।<nowiki>

डमरू : जीवन की उत्पत्ति का प्रतीक है।

यह सभी चीजें नटराज की मूर्ति और ब्रह्मांडीय नृत्य मुद्रा चित्रित करते हैं। चिदम्बरम मंदिर 40 एकड़ में फैला हुआ है। यह भगवान शिव नटराज और भगवान गोविंदराज पेरुमल (विष्णु) कोसमर्पित है। यहां पर शैव व वैष्णव दोनों देवता एक ही स्थान पर प्रतिष्ठित है। चिदंबरम के पवित्र गर्भ गृह में भगवान तीन स्वरूपों में विराजते हैं।

रूप : भगवान नटराज के रूप में- मानव रूप में जिसे सकल थिरूमेनी कहते है।

अर्धरूप : चन्द्रमौलेश्वर के स्फटिक रूप में अर्धमानवरूपी जिसे सकल निष्कला थिरुमेनी कहते है।

आकार रहित :बड़ा पाठ चिदंबरम में भगवान शिव की निराकार रूप में पूजा की जाती है। यहां एक स्थान कोचिदंबरम रहस्य कहते हैं। इस विषय में ऐसा कहा जाता है कि भगवान आनंद तांडव की अवस्था में

अपनी सहचरि शक्ति अथवा ऊर्जा जिसे शिवगामी कहते हैं के साथ निरंतर नृत्य कर रहे हैं। एक पर्दा इस स्थान कोढक लेता है तब स्वर्ण विल्व पत्रों की झालरे दिखाई पड़ती है जो भगवान की उपस्थिति का संकेत देती है। यह पर्दा बाहरी तरफ से गहरे रंग का (अज्ञानता का प्रतीक) है तथा अंदर से चमकीले लाल रंग का (बुद्धिमता और आनंद का प्रतीक) है। चिदंबरम रहस्यमय एक खाली स्थान है जिसे निष्कला थिरुमैनी कहते हैं। प्रतिदिन संस्कारों के दौरान उस दिन का प्रमुख पुजारी स्वयं देवत्व की अवस्था में परदे कोहटाते है यह अज्ञानता कोहटाने का संकेत है। भगवान शिव की पूजा पंचभूत (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु व आकाश) के रूप में की जाती है। चिदंबरम में आकाश रूप में पूजा की जाती है। (काचीपुरम के एकम्बेरश्वर मंदिर में पृथ्वी के रूप में, थिरुवनाईकवल के जम्बुकेश्वर मंदिर में जल के रूप में, तिरुवन्ना भलाई के अन्नामालइयर मंदिर में अग्रि के रूप में तथा श्री कलहस्थी में कलाहस्ती मंदिर में वायु के रूप में शिव की पूजा होती है।) पांच मंदिरों में तीन मंदिर (कालहस्ती, काचीपुरम और चिदंबरम एक सीध में है जो कि ज्योतिषीय व भौगोलिक दृष्टि से चमत्कार है जबकि तिरुवनाइकणवल इस पवित्र अक्ष पर दक्षिण की ओर 3 अंश और उत्तरी छोर के पश्चिम से एक अंश पर स्थित है जबकि तिरुवन्नामलाई लगभग बीच में है दक्षिण की ओर 1.5 अश और पश्चिम की ओर 0.5 अश पर स्थित है। चिदंबरम उन पांच स्थलों में है जहां शिव भगवान ने नृत्य किया था तथा सभी स्थानों पर मंच-सभाएं हैं। चिदंबरम में पोर सभई (स्वर्ण) है। (अन्य जगह थिरुवालान्याटु में रतिनासभई (मानिक सभा), कोर्वाल्लम में चित्रसभई (कलाकारी), मीनाक्षी मंदिर में रजत सभई- वैल्लीअम्बलम (रजत-वेली-चांदी) तथा तिरुनेलवेली में नेल्लैअप्पर मंदिर में थामिरा सभई (थामिरम- तांबा) है।) कहते है कि मानिकाव्यसागर ने 2 कृतियों की रचना की थी जिसमें तिरुवासाकम का अधिकांश पाठ चिदंबरम में किया गया दूसरी थिरुकोवैय्यर का पूर्ण पाठ किया गया तथा मानिकाव्यासागर कोचिदंबरम में आत्म ज्ञान (अध्यात्मिक) की प्राप्ति हुई थी।

इस मंदिर के 9 द्वार हैं जिनमें 4 पर ऊंचे गोपुर बने हैं (पूर्व-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण) इनमें 7 स्तर है। पूर्व के गोपुर पर भरतनाट्यम की 108 कलाएं अंकित हैं (यह 11वीं सदी में चोल राजा द्वारा बनवाया गया) ये 9 द्वार मनुष्यों के 9 विवरों का संकेत करते हैं।

चितसभाई (पौनाम्बलम)

गर्भगृह हृदय का प्रतीक है यहां पांच सीढिय़ों द्वारा जाया जाता है इन्हें पंचाटचारा पदी कहते हैं। पंच यानि 5 अक्षरा शाश्वत शब्दांश सि वा, या, ना,म। पवित्र गर्भ गृह 28 खम्बों पर खड़ा है जो 28 आगमया भगवान शिव की पूजा की निर्धारित रीतियों का प्रतीक है। छत 64 धरनों के समूह पर आधारित है जो 64 कला का प्रतीक है। इसमें आने वाली आड़ी धरने असंख्य रुधिर कोशिकाओं का संकेत है। छत का निर्माण 21600 स्वर्ण टाइलों द्वारा किया गया है इन पर सि वा, या, ना,म लिखा है जो मानव द्वारा लिए गए श्वासों का प्रतीक है। यह स्वर्ण टाइले 72000 स्वर्ण कीलों की सहायता से लगाई गई है जो मनुष्य शरीर में उपस्थित नाडिय़ों की संख्या का प्रतीक है। छत के ऊपर 9 तांबे के कलश हैं जो ऊर्जा (शक्तियों) के 9 रूपों का प्रतीक है। अर्थ मण्डप में 6 खंबे है जो 6 शास्त्रों के प्रतीक है। अर्थमण्डप के साथ वाले मण्डप में 18 खंबे है जो 18 पुराणों का प्रतीक है। चित सभा की छत चार खंबों पर खड़ी है जो चार वेदों का प्रतीक है। यहां के मंदिर का रथ तमीलनाडू के सभी मंदिरों के रथ से सुंदर है नटराज भगवान एक वर्ष में दो बार इस पर बैठते हैं जिसे असंख्य भक्त खीचते हैं। यहां 5 सभाएं हैं (मंच अथवा हाल)

चित सभा : यहां पवित्र गर्भ गृह है जहां भगवान नटराज तथा सहचरी शिवाग्मा सुन्दरी के साथ विराजमान है।

कनक सभा : यह चित सभई के ठीक सामने है जहां दैनिक पूजा की जाती है। चित सभा व कनक सभा की छतें स्वणीमण्रित है तथा उन्हें पौन्नबलम कहते हैं। नृत्यसभा : मान्यता के अनुसार यहां भगवान शिव ने देवी काली के साथ नृत्य किया था। इसमें 56 खम्बे हैं। इसमें शिव का एक पांव ऊपर है एक नीचे। शिव चांदी जडि़त हैं। राजा सभा : यह 1000 पिल्लरों का हाल कमल या सहस्त्रनाम योगिक चक्र का प्रतीक है। सहस्त्र चक्र योगिक क्रिया का सर्वोच्च बिन्दु है यहां ध्यान लगने से परमात्मा से मिलन की अवस्था कोप्राप्त किया जा सकता है।

देवसभा : यहां पांच मूर्तियां है - भगवान गणेश, भगवान सोमास्कन्द सहचरी के साथ, भगवान की सहचरी शिवनंदा नायकी, भगवान मुरुगन व भगवान चंडीकेश्वर।

आदर्श शिव मंदिर की संरचना की व्याख्या : === आगम नियमों के अनुसार आदर्श शिव मंदिर में 5 प्रकार (परिक्रमा) होगी प्रत्येक दीवार से विभाजित होगी। अन्दर की परिक्रमा कोछोडक़र बाहरी परिक्रमा के पथ खुले आकाश के नीचे होंगे। सबसे अन्दर वाले परिक्रमा पथ पर प्रधान देवता व अन्य देवता विराजमान होंगे। प्रधान देवता के ठीक सीध में एक काठ का या पत्थर का विशाल ध्वजा स्तम्भ होगा। सबसे अन्दर के परिक्रमा पथ पर पवित्र गर्भ गृह होगा इसमें भगवान शिव विराजमान होंगे। मंदिर इस प्रकार निर्मित है कि अपनी सभी जटिलताओं सहित मानव शरीर से मिलता है। एक-दूसरे में परिवेष्ठित कराती दीवारें मानव अस्तित्व के आवरण हैं।

- सबसे बाहरी दीवार अन्नामय कोष है जो भौतिक शरीर का प्रतीक है।

- दूसरा प्रणमय कोष है जो जैविक शक्ति या प्राण के आवरण का प्रतीक है।

-तीसरा मनोमय कोष है जो विचारों, मन के आवरण का प्रतीक है।

-चौथा विज्ञाणमय कोष है जो बुद्धि के आवरण का प्रतीक है।

-पांचवां व सबसे भीतरी आनन्यमय कोष है जो आनन्द के आवरण का प्रतीक है।

-गर्भगृह जो परिक्रमा पथ पर है वह आनन्दमय कोष का प्रतीक है। उसमें देवता विराजते है जैसे हमारे शरीर में जीव आत्मा के रूप में विद्यमान है। गर्भ गृह में एक प्रकाशरहित स्थान होता है जैसे कि वह हमारे हृदय में भी स्थित है, जिस प्रकार हृदय शरीर के बायीं ओर होता है उसी प्रकार चिदंबरम में गर्भ बायी तरफ है।

-प्रवेश देने वाले गोपुरी की तुलना जो व्यक्ति अपने पैर के अंगूठे कोऊपर उठाकर अपनी पीठ के बल लेटा हो, से उसके चरणों की उपमा दी गई है।

-ध्वजास्तम्भ सुष्मना नाड़ी का प्रतीक है जो मूलाधार से उठती है और सहस्त्र (मस्तिष्क की शिखा) तक जाती है।

श्रीगोविंद राज स्वामी मंदिर भी चिदंबरम मंदिर में है। गोविंदराजा मंदिरा 1639 में चोल राजा द्वारा बनवाया गया था। गोविंदराज पेरुमल व उनकी सहचरी पुन्दरीगावाल्ली थाय्यर कहते है। यह भगवान विष्णु के 108 दिव्य स्थलों में एक है। मूल रूप में यह मंदिर भगवान श्री गोविंदराज स्वामी का निवास था तथा भगवान शिव अपनी सहचरी के साथ वहां आएं तथा दोनों ने भगवान विष्णु कोउनकी नृत्यस्र्पधा के निर्णायक बनने का अनुरोध पर (भगवान गोविंदराज जी) निर्णायक बने। दोनों में बराबरी का नृत्य प्रतिस्पर्धा चलती रही। भगवान शिव ने विजयी होने के लिए युक्ति लगाते हुए भगवान गोविंदराज से कहा कि वे एक पैर उठाकर नृत्य कर सकते है, महिलाओं कोयह मुद्रा नृत्यशास्त्र के अनुसार वर्जित थी इसीलिए जब अतत: भगवान शिव जब इस मुद्रा में आए तो पार्वती जी ने हार स्वीकार कर ली इसीलिए इस स्थान पर भगवान शिव की मूर्ति नृत्य अवस्था में है। भगवान गोविंदराजास्वामि इस प्रतिस्पर्धा के निर्णयकत्र्ता व साक्षी दोनों थे। यहां पर भगवान विष्णु शेषशेय्या पर लेटे हुए दर्शन देते हैं।

पल्लव राजाओं में सिम्भवर्मन नाम के तीन राजा थे। (275- 300 सीई., 436-460 सीई., 550-560 सीई.) ऐसा माना जाता है कि सिम्मवर्मन-द्वितीय (436- 460 सीई.) ने राजसी अधिकारों का त्याग कर दिया तथा चिदम्बरम आकर रहने लगे। मंदिर इसी काल में निर्मित हुआ था। दक्षिणगोपुर पाड्या राजाओं द्वारा बनवाया गया था क्योंकि छत पर पाड्या राजवश का चिन्ह मछली खुदा हुआ है। पश्विमी गोपुर 1251 -1268 में जादव वर्मन सुन्दर पांड्या द्वारा निर्मित करवाया गया। उत्तरी गोपुर विजय नगर के राजा कृष्ण देवरायर द्वारा 1509-1529 सीई. में निर्माण करवाया गया। पूर्वी गोपुर- पल्लव राजा कोपेरुन्सिगंन द्वारा 1243- 1279 में करवाया गया। बाद में सुब्बाम्मल द्वारा मरम्मत करवाई गई। चित सभा की स्वर्णयुक्त छत चोल राजा परंटका- प्रथम ने 907 -950 सीई. में डलवाई।

राजा परटंका -द्वितीय, राजराजा चोल-प्रथम, कुलोचुंगा चोल-प्रथम, राजराजा चोल की बेटी कुदंाबाई-द्वितीय तथा चोल राजा विक्रम चोल (1113- 1135) ने भी मंदिर के लिये काफी दान दिये। पुदुकोटट्ई के महाराज शेरीसेतुपथी ने पन्ने के आभूषण दान में दिये जिन्हें आज भी भगवान कोपहनाया जाता है।