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मत्तला

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प्रश्न : मतला क्या होता है ?

उत्तर : ग़ज़ल के प्रारंभिक शे'र को मतला कहते हैं | मतला के दोनों मिसरों में तुक एक जैसी आती है | मतला का अर्थ है उदय | उर्दू ग़ज़ल के नियमानुसार ग़ज़ल में मतला और मक़ता का होना अनिवार्य है वरना ग़ज़ल अधूरी मानी जाती है। लेकिन आज-कल नवागुन्तक ग़ज़लकार मकता के परम्परागत नियम को नहीं मानते है या ऐसा भी हो सकता है कि वो इस नियम की गहराई में जाना नहीं चाहते व इसके बिना ही ग़ज़ल कहते हैं। कुछेक कवि मतला के बगैर भी ग़ज़ल लिखते हैं लेकिन बात नहीं बनती है; क्योंकि गज़ल में मकता हो या न हो, मतला का होना लाज़मी है जैसे गीत में मुखड़ा। आप सभी मेरी इस बात से सहमत होंगे कि यदि किसी गीत में मुखड़ा न हो तो आप खुद ही अनुमान लगा सकते हैं गीत कैसा लगेगा। गायक को भी तो सुर बाँधने के लिए गीत के मुखड़े की भाँति मतला की आवश्यकता पड़ती ही है। ग़ज़ल में दो मतले हों तो दूसरे मतले को 'हुस्नेमतला' कहा जाता है। मत्‍ले के शेर में दोनों पंक्तियों में काफिया ओर रदीफ़ आते हैं। यहाँ पर एक और बात जिकरयोग है कि मत्‍ले के शेर से ही ये निर्धारण किया जाता है या ये निर्धारित होता है कि किस मात्रिक-क्रम (बहर) का पूरी ग़ज़ल में पालन किया जायेगा या ग़ज़ल कही जायेगी |

'हुस्नेमतला' : किसी ग़ज़ल में आरंभिक मत्‍ला आने के बाद यदि और कोई मत्‍ला आये तो उसे हुस्‍न-ए-मत्‍ला कहते हैं।

मत्ला-ए-सानी :एक से अधिक मत्‍ला आने पर बाद वाला मत्‍ला यदि पिछले मत्‍ले की बात को पुष्‍ट अथवा और स्‍पष्‍ट करता हो तो वह मत्‍ला-ए-सानी कहलाता है।