फ़ीस

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जवाहरलाल नेहरू स्कूल ऑफ़ इंजीनियरिंग की फ़ीस का विस्तृत ब्यौरा

फ़ीस एक वित्तीय मूल है जो किसी पेशेवर व्यक्ति, संस्था आदि को किसी सेवा के बदले दी जाति है, जैसेकि वकील की फ़ीस किसी मुक़दमे के लड़ने के लिए या विद्यार्थियों की ओर स्कूल और कॉलेजों को शिक्षा सेवाओं के लिए फ़ीस देना पड़ता है। किसी विशेष सुविधा के लिए जो पैसे देने होते हैं, उन्हें भी फ़ीस कहा जाता है जैसेकि क्लब सदस्यता फ़ीस या परीक्षा फ़ीस।

कई बच्चे पढ़ने में बहुत ही अच्छे होते हैं और कड़ी महनत भी करते है। लेकिन कुछ बच्चे ऐसे भी होते है जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होती है। उनके घर बहुत ही मुश्किल से चलता है और वह अपनी स्कूल की फीस भी नहीं भर पाते है। इसलिए उन्हें फ़ीस की माफी / फ़ीस में कमी अथवा छात्रवृत्ति के लिए प्रधानाचार्य या किसी और के आगे निवेदन करना पढ़ सकता है[1]

फ़ीस लेकर साधारण रूप से लोग पेशेवर संबंध में बंध जाते हैं। परंतु कई बार इसके विपरीत भी देखा गया है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक जज ने 2021 में एक मुक़दमे को सुनते हुए कहा था कि वकील जहाँ एक तरफ अदालत से समयबद्ध फ़ैसले चाहते हैं, पर उसके लिए वे स्वयं के कामकाज को हल्के में नहीं ले सकते। जाहिर है, वकीलों ने अपनी पेशेवर फीस ली होगी और उसके बाद वे काम से परहेज कर रहे हैं और दूसरी तरफ, वे संबंधित अदालत को एक निश्चित अवधि के भीतर मामले का फैसला करने के लिए निर्देश देने की मांग करते हैं[2], जिसके लिए उनके खुद के सक्रीय और सकारात्मक योगदान की आवश्यकता बनी रहती है।

सन्दर्भ[संपादित करें]