ज़िन्दगीनामा - ज़िन्दा रुख़
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ज़िन्दगीनामा - ज़िन्दा रुख़ | |
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[[चित्र:|]] | |
लेखक | कृष्णा सोबती |
देश | भारत |
भाषा | हिंदी |
विषय | साहित्य |
प्रकाशन तिथि |
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ज़िन्दगीनामा - ज़िन्दा रुख़ हिन्दी की विख्यात साहित्यकार कृष्णा सोबती द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् १९८० में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।[1] इसका प्रकाशन सन् 1979 में हुआ था।
कथावस्तु
[संपादित करें]इस उपन्यास पर प्रकाश डालते हुए गोपाल राय लिखते हैं कि- "जिन्दगीनामा बीसवीं शताब्दी के प्रथम पन्द्रह वर्षों में पंजाब के किसानों-ग्रामीणों के जीवन का चित्रण है । यह जिन्दगी निखालिस यथार्थ के रूप में सामने आती है; पंजाबी किसानों की मेहनत-मशक्कत से भरी अक्खड़, सन्तुष्ट और मुक्त जिन्दगी, जिसमें महाजन का शोषण और पुलिस का आतंक भी कोई ज्यादा हलचल नहीं पैदा करता ।"[2]
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "अकादमी पुरस्कार". साहित्य अकादमी. मूल से 15 सितंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 11 सितंबर 2016.
- ↑ गोपाल, राय (2014). हिन्दी उपन्यास का इतिहास. नई दिल्ली: राजकमल प्रकाशन. पृ॰ 321. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-267-1728-6.