गढ़वाल का लोक नृत्य

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जहां का संगीत इतना समृद्ध है, वहां का लोकनृत्य भी उसी श्रेणी का है। इनमें पुरुष व स्त्री, दोनों ही के नृत्य हैं, एवं सम्मिलित नृत्य भी आते हैं। इन लोक नृत्यों में प्रमुख हैं:

  • लांगविर नुल्याः
  • बरादा नटि
  • पान्डव नृत्य
  • धुरंग एवं धुरिंग

लांगविर नुल्याः[संपादित करें]

यह एक कलाबाजी नृत्य है जो पुरुषों द्वारा निष्पादित किया जाता है। कलाबाज नर्तक खम्भे के शीर्षक पर चढ जाता है तथा शीर्ष पर अपने पेट को स्वयं संतुलित करता है। खम्भे के नीचे वाधकारों का एक समूह ढोल एवं दमाना बजाता है जबकि खम्भे के शीर्ष पर नर्तक अपने हाथ पैरों से अनेकों करतब दिखाता हुआ घूमता है। यह लोकनृत्य टिहरी गढ़वाल क्षेत्र में काफी लोकप्रिय है।

बरादा नाटी:[संपादित करें]

यह नृत्य देहरादून जिले में चकराता तहसील के जौनसार बाबर क्षेत्र में काफी लोकप्रिय है। यह लोकनृत्य कुछ धार्मिक त्यौहारों या कुछ सामाजिक कार्यकुलों के अवसर पर प्रस्तुत किया जाता है। बालक एवं बालिकाएं दोनों रंग बिरंगी पारम्परिक वेशभूषा में नृत्य में भाग लेते हैं।

पान्डव नृत्यः[संपादित करें]

महाभारत की कथा से सम्बद्ध पान्डव नृत्य विशिष्ट रूप से गढ़वाल क्षेत्र में अत्यधिक लोकप्रिय है। पान्डव नृत्य कुछ अन्य नहीं है वरन नृत्य एवं संगीत के रूप में महाभारत की कहानी का सरल रूप में वर्णन है। इसका प्रदर्शन अधिकांशतः मार्गशीर्ष व पौष माह में किया जाता है। पान्डव नृत्य चमोली,टिहरी,रुद्रप्रयाग जिले में एवं पौडी गढ़वाल में लोकप्रिय है।

धुरंग एवं धुरिंगः[संपादित करें]

भूटिया जनजाति के लोगों के मुख्य नृत्य धुरंग एवं धुरिंग है जिसका प्रदर्शन मृत्यु के अवसर पर किया जाता है। इस नृत्य का उद्देश्य मृत व्यक्ति की आत्मा को विमुक्त करना जिसके बारे में यह विश्वास है कि आत्मा एक बकरी या अन्य पशु के शरीर में निवास करती है। यह नृत्य हिमाचल प्रदेश के पशुनृत्य या नागालैन्ड के आखेट नृत्य के समान है।