आगा खां तृतीय
आगा खां तृतीय शियाओं के इस्मायली इमाम | |
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His Highness | |
दर्जा | 48वें निज़ारी इमाम |
नाम | सुल्तान सर मुहम्मद शाह |
जन्म | 2 नवम्बर 1877 |
मृत्यु | 11 जुलाई 1957 |
उपाधियां | आगा खां तृतीय |
अली · हसन · हुसैन आगा खां प्रथम · आगा खां द्वितीय |
सुल्तान सर मुहम्मद शाह, आगा खां तृतीय, मूल नाम : सुल्तान सर मुहम्मद शाह,48वां इमाम (अरवी : سيدي سلطان محمد شاه، الآغاخان الثالث जन्म:2 नवम्बर 1877, जन्म स्थान : वर्तमान कराची, पाकिस्तान, मृत्यु : 11 जुलाई 1957, वरसोई, स्विट्जरलैंड), शियाओं के निजरी इसमाईली मत के आध्यात्मिक नेता। ये आगा खान द्वितीय के एकलौते बेटे थे। 1885 में अपने पिता के उत्तराधिकारी के रूप में वह निजारी इस्माईली संप्रदाय के इमाम बने।[1]
जीवन परिचय
[संपादित करें]इनकी माँ ईरान की शाही परिवार से थीं। उनकी देखरेख में आगा खाँ को इस्माईली और पूर्वी शिक्षा के साथ-साथ पश्चिमी शिक्षा भी दी गयी। अपने समुदाय के मामलों को कर्मठता से निपटाने के अलावा उन्होने भारत के मुसलमानों में तेज़ी से अग्रणी स्थान हासिल कर लिया। 1906 में भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों के हितों को प्रोत्साहित करने के लिए वाइसराय से मिलने गए मुस्लिम शिष्टमंडल का उन्होने नेतृत्व किया। 1909 के मार्ले-मिंटो सुधारों से अंतत: अलग मुस्लिम निर्वाचक मण्डल बन गया।
राजनीतिक गतिविधियां
[संपादित करें]आगा खाँ तृतीय अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के प्रारंभिक वर्षों में अध्यक्ष रहे तथा अलीगढ़ में मुस्लिम महाविद्यालय को विश्वविद्यालय का दर्जा दिलाने के लिए उन्होने एक कोश का गठन किया। यह दर्जा उसे 1920 में मिला। प्रथम विश्व युद्ध शुरू होने पर आगा खाँ ने मित्र राष्ट्रों के उद्देश्यों का समर्थन किया, लेकिन इसके बाद के शांति सम्मेलन में उन्होने आग्रह किया कि तुर्की के साथ उदारता से पेश आया जाय। प्रथम विश्व युद्ध में उनकी सहायता के लिए उन्हें नाइट की उपाधि दी गयी। उन्होने लंदन में भारतीय वैधानिक सुधारों पर हुए गोलमेज़ सम्मेलन (1930-32) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1932 में जीनेवा में विश्व निरस्त्रीकरण सम्मेलन तथा 1932 में और 1934 से 1937 तक लीग ऑफ नेशंस की सभा में आगा खाँ तृतीय ने भारत का प्रतिनिधित्व किया। 1937 में उन्हे लीग का अध्यक्ष बनाया गया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान वह स्वीटजरलैंड में रहे और राजनाइटिक गतिविधियां छोड़ दी।
महात्मा गांधी को 1942 से 1945 तक पूना (वर्तमान पुणे) में आगा खां महल में बंदी बनाकर रखा गया था। आगा खाँ को घुड़दौड़ों के लिए श्रेष्ठ नस्ल के घोड़ों के सफल मालिक और प्रवजनक के रूप में भी जाना जाता था।
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ भारत ज्ञान कोश, खंड : 1, प्रकाशक: पोप्युलर प्रकाशन मुंबई, पृष्ठ संख्या : 119