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अवप्रवाह मण्डल

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अवप्रवाह मण्डल या अवप्रवाह क्षेत्र (अंग्रेज़ी: Hyporheic zone) नदी की तली के नीचे का वह क्षेत्र है जिसमें जल का प्रवाह गोलाश्मों और कंकड़ पत्थर के बीच से होता है और एक तरह से यह न तो स्वतंत्र धरातलीय प्रवाह होता है न ही भूजल प्रवाह। इस प्रवाह की दिशा भी वही होती है जो नदी की होती है।[1]

सामान्यतः नदी का प्रवाह उसी जल को माना जाता है जो तली के ऊपर और किनारों के बीच जलधारा के रूप में बहता है। किन्तु नदी की तली के नीचे भी पानी उसी दिशा में प्रवाहित होता रहता है जिसे अवप्रवाह कहा जाता है। किन्ही विशिष्ट दशाओं में यह प्रवाह नदी के दृष्टिगोचर जलधारा-प्रवाह से अधिक भी हो सकता है।

इसका सबसे अच्छा उदाहरण हिमालय की कई नदियाँ हैं जो पर्वतीय ढालों से मैदान में उतरते समय तराई के इलाकों में जमीन के नीचे बहती है तथा भाबर में पुनः धरातलीय सतह पर उनका आविर्भाव होता है। इस प्रकार ये नदियाँ तराई के क्षेत्र में अवप्रवाह के रूप में बहती हैं। एक दूसरा उदाहरण कार्स्ट प्रदेशों की नदियाँ हैं जो अपनी कुल लम्बाई में कभी-कभी काफ़ी दूरी धरातल के नीचे होकर प्रवाहित होती है।

अवाप्रवाह मण्डल नामक यह पेटी नदीजल और भूजल के बीच की स्थिति है।

अवप्रवाह शब्द का अंग्रेजी पर्याय hyporheic flow है जिसका सर्व प्रथम प्रयोग Traian Orghidan ने जर्मन भाषा के अपने लेख में किया। उन्होंने यह शब्द ग्रीक भाषा के hypo (सतह के नीचे) और rheos (प्रवाह) को मिलाकर गढ़ा था।[2]

अवप्रवाह शब्द अधोप्रवाह (Underflow) से अलग है जो भूजल के प्रवाह के लिये इस्तेमाल होता है।

इन्हें भी देखें

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सन्दर्भ

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  1. Lawrence, J.E.; M. Skold, F.A. Hussain, D. Silverman, V.H. Resh, D.L. Sedlak, R.G. Luthy, and J.E. McCrayHyporheic Zone in Urban Streams: A Review and Opportunities for Enhancing Water Quality and Improving Aquatic Habitat by Active Management, Environmental Engineering Science, volume =47, pages =480–501, 14 अगस्त 2013
  2. Orghidan T. (1959) Ein neuer Lebensraum des unterirdischen Wassers: Der hyporheische Biotop, in Archiv für Hydrobilogie, vol.55 pp. 392–414