सदस्य:Dr. shashi singhal

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पुस्तक समीक्षा : मैं , मैं और मैं

नारी की मन:स्थिति का मार्मिक चित्रण[संपादित करें]

-शशि सिंघल-

आज के सामाजिक परिवेश में नारी की मनोदशा , अस्मिता संकट तथा संवेदनात्मक परिस्थितियों का आईना है “ मैं , मैं और मैं ” काव्य संग्रह ।काव्य सृजन के मामले में उत्कृष्ट इस काव्य संग्रह में कवयित्री कमलेश संधू नेअपने अंतर्मन की अनुभूतियों , अनुभवों , विचारों तथा चिंतन को बड़े ही सहज व सरल ढंग से पेश किय है , जिससे पाठक कविताओं का अर्थ व उनमें छिपे मर्म को समझ सकें ।

छोटी बड़ी लगभग ९१ ( निनन्यानवे ) कविताओं से सहेज गया समूचा काव्य संग्रह नारी जीवन की धड़कन की गाथाऔर व्यथा के अनेक रंगों को बयां कर रहा है । इनमें संबंधों , स्मृतियों और अधिकरों का सहज द्वन्द्व है तो वहीं आसपास के बदरंग व मायूसी भरे जीवन ने स्वाभाविक गतिविधियों पर ग्रहण लगा दिया है । इस संद्रह की सभि अलग – अलग कविताएं अलग –अलग अनुभूतियों का प्रतिनिधित्व करती हैं । इनमें छिपी गहराई सामान्य मानवीय चेतन को प्रभावित करने में सक्षम है ।

पुस्तक का शीर्षक “मैं , मैं और मैं “ एकदम सटीक है । पुस्तक की पहली कविता भी “मैं , मैं और मैं “ ही है। अनुप्रासअलंकार की छटा बिखेरते हुए तीन बार प्रयुक्त ये “ मैं “ शब्द नारी के बचपन से लेकर ब्रह्माण्ड तक के सफर में उतरते – चढ़ते मनोभावों का आईना है । इसमें नारी जीवन वेदना , लाचारी व सामाजिक विसंगतियों से बड़ी शिद्दत से जूझता जान पड़ता है ....... आखिर क्यों ?

कविताओं में बार – बार पुरुष वर्चस्व , पितृ सत्ता एवं पौरुष अभिमान को चुनौती दी गई है तो वहीं जिक्र है कि सामाजिक व अमानवीय परिस्थितियों में फंसकर आज की सुविज्ञा नारी भी कितनी छटपटा रही है । पुरुष के हिंसक होने की सच्चाई को दुत्कारते हुए भी वह बस अपने अनुभूतियों पर ही संतोष कर लेने की भूमिका निभाये जा रही है ।

’ उसकी सरहद ’ हो या ’ कल की अनाड़ी आज की खिलाड़ी ’ , ’ दर्द से नाता ’ हो या ’ अबूझ दर्द ’ , ’अग्नि परीक्षा’ हो या ’ हमें पता नहीं ’ , ’मन के नीड़ में प्यार ’ , ’ सौगात’ , ’ छटपटाहट’ , ’ मेरी प्रयोगशाला ’ जैसी कई कविताएं कवयित्री के मन में उठते हुये भावों और अन्तर्व्यथाओं की भिन्न – भिन्न विचार तरंगें हैं ।

भावों की ताजगी लिये डॉ. संधू की कविताओं की भाषा सरल , सहज , प्रवाहमय और लयात्मक है ।कम शब्दों में ज्यादा से ज्यादा सारगर्भित बात पाठकों तक पहुंचाने का सफल प्रयास है । लेकिन आम भारतीय पढ़ी – लिखी महिलाओं का प्रतिनिधित्व करती डॉ. संधू की कविताओं में एक प्रश्न मौन खड़ा है कि ये पुरुष समाज नारी की निजी मनोस्थिति की पड़ताल कब तक करता रहेगा ? बहरहाल कोई भी परिवर्तन धीरे – धीरे होता है रातोंरात नहीं  । बेहतर समाज के निर्माण और मानसिक परिवर्तन लाने में ऎसी कविताएं ही महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं ।

पुस्तक   :   “मैं , मैं और मैं “

कवयित्री :    डॉ.  कमलेश संधू

प्रकाशक :   पुस्तक पथ

पृष्ठ         :  १६४

मूल्य       :  ₹ २५०

                                                                                                                    शशि सिंघल                                                                                                                

                                                                                                                मोबाइल नं. – 9899665007