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सदस्य:ओम शर्मा

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से

हांथो में विजली चमक उठी ,

भुजदण्डों में सैलाब उठा ।

सम्मुख अरि को निज खड़ा देख ,

रानी ने फिर हुँकार भरा ।।

निज अश्व बिराजित थी रानी.

कर में बो निज तलबार लिए ।

आंखों से उगल रहीं ज्वाला .

सिंघो जैसी चिंघाड़ लिए ।।

श्री महाकाल का रूप लिए .

रण मध्य बिराजित थीं रानी ।

हो रहा प्रतीत कुछ ऐसा था
. रण में आ गए हो शमशानी ।।

काल अश्व पर हो सवार.

बन महाकाल करती संहार ।

जिस ओर मुड़ीं लग गया उधर ,

अरि दल की लाशों का अम्बार ।।

सीने में थी वह तूफान लिए ,

निज बल पर वह आसमान लिए ।

अरि सेना पर वह टूट पड़ी ,

श्री महाकाल का नाम लिए ।।

वह झपट झपट अरि को मारे ,

चुन चुन के संहार करे ।

काल अश्व पर हो सवार.

रस्ते की बाधा काट धरे ।।

उसका घोड़ा भी अद्भुत था .

पल भर में ही मुड़ जाता था ।

रानी की नजरें जिधर मुड़ी .

घोड़ा लेकर उड़ जाता था ।।

वह पवन वेग से दौड़ रहा .

कांटे बरछी और भलो पर ।

अरि के मस्तक को कुचल रहा
. अपने पैरों के तालों पर ।।

बन कभी शत्रु पर गाज गिरे .

निज अरि का दर्प मिटाने को ।

चढ़ अरि बक्ष हुँकार उठे .

उसको यमलोक पठाने को ।।

हो गया व्याप्त भय अरि दल में .

अरि सेना डर कर भाग रही ।

जिस ओर भाग सेना जाती .

निज सम्मुख रानी को पाती ।. .......................