सदस्य:ओम शर्मा
हांथो में विजली चमक उठी ,
भुजदण्डों में सैलाब उठा ।
सम्मुख अरि को निज खड़ा देख ,
रानी ने फिर हुँकार भरा ।।
निज अश्व बिराजित थी रानी.
कर में बो निज तलबार लिए ।
आंखों से उगल रहीं ज्वाला .
सिंघो जैसी चिंघाड़ लिए ।।
श्री महाकाल का रूप लिए .
रण मध्य बिराजित थीं रानी ।
हो रहा प्रतीत कुछ ऐसा था
.
रण में आ गए हो शमशानी ।।
काल अश्व पर हो सवार.
बन महाकाल करती संहार ।
जिस ओर मुड़ीं लग गया उधर ,
अरि दल की लाशों का अम्बार ।।
सीने में थी वह तूफान लिए ,
निज बल पर वह आसमान लिए ।
अरि सेना पर वह टूट पड़ी ,
श्री महाकाल का नाम लिए ।।
वह झपट झपट अरि को मारे ,
चुन चुन के संहार करे ।
काल अश्व पर हो सवार.
रस्ते की बाधा काट धरे ।।
उसका घोड़ा भी अद्भुत था .
पल भर में ही मुड़ जाता था ।
रानी की नजरें जिधर मुड़ी .
घोड़ा लेकर उड़ जाता था ।।
वह पवन वेग से दौड़ रहा .
कांटे बरछी और भलो पर ।
अरि के मस्तक को कुचल रहा
.
अपने पैरों के तालों पर ।।
बन कभी शत्रु पर गाज गिरे .
निज अरि का दर्प मिटाने को ।
चढ़ अरि बक्ष हुँकार उठे .
उसको यमलोक पठाने को ।।
हो गया व्याप्त भय अरि दल में .
अरि सेना डर कर भाग रही ।
जिस ओर भाग सेना जाती .
निज सम्मुख रानी को पाती ।. .......................