सयाग्यी उ बा खिन

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(सायज्ञी यू बा खिन से अनुप्रेषित)

सयाग्जी उ बा खिन (बर्मी: ဘခင်; 6 मार्च 1899 - 19 जनवरी 1971) को मुख्यतः विपश्यना ध्यान के पुनरुजागरण का जनक माना जाता है.[१] उन्हें २०वीं शताब्दी में विपशयना का एक प्रमुख विशेषज्ञ और शिक्षक/गुरु के रूप में जाना जाता है।वे बर्मा संघ के पहले महालेखाकार भी थे। श्री सत्यनारायण गोयनका, जिन्हे विपश्यना को भारत वापस लाने का श्रेय प्राप्त है, ने सयाज्यी उ बा खिन से ही विपश्यना की शिक्षा ली थी.

जीवन एवं कार्य

बा खिन का जन्म मार्च 1899 में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन [2] के दौरान यांगून में हुआ था। उनकी पहली नौकरी द सन नामक एक बर्मी समाचार पत्र के साथ थी, लेकिन कुछ समय बाद उन्होंने बर्मा के महालेखाकार के कार्यालय में एक लेखा लिपिक के रूप में काम करना शुरू किया। सन 1926 में उन्होंने भारत की प्रांतीय सरकार द्वारा दी गई लेखा सेवा परीक्षा उत्तीर्ण की। जब बर्मा भारत से अलग हुआ तो उन्हे बर्मा का पहला स्पेशल ऑफिस सुपरिन्टेन्डेन्ट नियुक्त किया गया। [3]

सन 1937 में बा ख़िन की मुलाकात साया थेट गी के एक छात्र से हुई। थेट गी एक धनी किसान और प्रसिद्ध गुरु लेदी सयादव के शिष्य थे, जिन्होंने उन्हें बुद्ध द्वारा सिखाया गया ध्यान का एक रूप, आनापान, का उपदेश दिया। जब बा खिन ने यह कोशिश की, तो उन्होंने अच्छी एकाग्रता का अनुभव किया, जिसने उन्हें इतना प्रभावित किया कि उन्होंने विपश्यना ध्यान में एक पूर्ण पाठ्यक्रम पूरा करने का संकल्प लिया। बा खिन ने इस पहले दस-दिवसीय पाठ्यक्रम के दौरान अच्छी प्रगति की, और वे निरंतर इस साधना तो करते रहे. सन 1941 में, एक घटना घटित हुई जो उनके जीवन में महत्वपूर्ण थी। ऊपरी बर्मा में सरकारी व्यवसाय के दौरान, वह संयोग से वेबू सयादव, जो एक बौद्ध भिक्शु थे, से मिले। वेबू सयादव बा खिन की ध्यान में प्रवीणता से प्रभावित थे, और वे उन्हें इस शिक्षा को बाटने का आग्रह किया। [५]

जनवरी 4, 1948 को, जिस दिन बर्मा ने स्वतंत्रता प्राप्त की, बा खिन को बर्मा संघ का पहला महालेखाकार नियुक्त किया गया। [6]

बा खिन अंततः 1967 में सरकारी सेवा में अपने उत्कृष्ट करियर से सेवानिवृत्त हुए। सन् 1971 में सर्जरी की जटिलताओं से होने वाली उनकी आकस्मिक मृत्यु से पूर्व तक वो नियमित विपश्यना का ज्ञान बाटते रहे। [१०]

श्र्री सत्य नारायण गोयनका, जिन्हे विपश्यना भारत लाने का श्रेय प्राप्त है, ने उ बा खिन से विपश्यना की शिक्षा ग्रहण की थी. बाद मे सयाग्जी उ बा खिन ने श्री स ना गोएनका से आग्रह किया कि विपश्यना वापस भारत जानी चाहिये क्योकि यह विद्या वही से आयी।

विरासत

बा खिन की मृत्यु के बाद, उनके कुछ छात्रों ने विभिन्न देशों में उनकी परंपरा के ध्यान केंद्रो की स्थापित की।

बा ख़िन परंपरा में छात्रों की बर्मी बौद्ध शाखा द्वारा आयोजित छह अंतर्राष्ट्रीय ध्यान केंद्र हैं। पश्चिम में इन केंद्रों में से प्रत्येक रंगमून, बर्मा के अंतर्राष्ट्रीय ध्यान केंद्र का हिस्सा हैं, जिसे बा खिन द्वारा स्थापित किया गया था।

स ना गोएङ्का ने लगभग दो सौ से अधिक केन्द्रो को स्थापित करने की स्वीकृति दी, जो दुनिया के विभिन्न देशों में स्थित है, और् सयाग्जी उ बा खिन की विपश्यना ध्यान परम्परा का अनुपालन करते है।

[1] [2] सन्दर्भ त्रुटि: <ref> टैग के लिए समाप्ति </ref> टैग नहीं मिलाSayagyi U Ba Khin Journal: a collection commemorating the teaching of Sayagyi U Ba Khin (2nd ed.). Igatpuri, India: Vipassana Research Institute. 1998. pp. 8–11. ISBN 81-7414-016-6./ref>

  1. see Modern Buddhist Masters by Jack Kornfield
  2. Pierluigi Confalonieri, ed. (1999). The Clock of Vipassana Has Struck: a tribute to the saintly life and legacy of a lay master of Vipassana Meditation (First USA ed.). Seattle, USA: Vipassana Research Publications. p. 23. ISBN 0-9649484-6-X.