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नाटक पट्कथा
हैड मोहर्रिर
दृश्य 1 थानाधिकारी अमरचंद अपने कार्यालय में बैठा है। वह अपना मोबाइल निकालता है और पुराने थानाधिकारी सुमेरचंद से फोन पर वार्ता करता है। थानाधिकारी अमरचंद : 'क्या हाल हैं सुमेरचंद जी, मैंने कल ही ज्वाइनिंग की। मेरे को दो दिनों में पता लगा है, आपने यहां से क्या कुछ नहीं बनाया। यार! हमारे को भी गुर दे दो।Ó दूसरी तरफ से सुमेरचंद : 'भई! यह तो स्टाफ वालों का कमाल है। मैं तो कौनसा यहां पैदा हुआ हूं। इस सर्किल में तो पहली बार आया था। हैडमोहर्रिर हैं ना, बहादरचंद, भई वो कमाल की चीज है। बिना लाइसेंस के ही शराब की दुकानें खुलवाईं। क्रिकेट बुक्कीवालों को यहां धंधा चलाने के लिए एक फिक्स रेट पर सैट किया, कुछ पर्ची सट्टा के किंग को भी नई कॉलोनियों में अपना ठिकाना बनाकर धंधा करने के लिए बढ़ावा दिया। बस फिर क्या था, हर रोज जेब गर्म हो जाती थीं।Ó अमरचंद : 'साहब! बहादरचंद तो कमाल की चीज है। वह वास्तव में थाने का हैड है। मेरा को लग रहा है कि अपनी सर्विस के कई साल जो टिब्बे में गुजारे हैं, वहां बारानी जीवन बिताया है, लगता है यहां तो रोज सावन होगा।Ó 'मेरे को समझ नहीं आ रहा, कि इतने दिन बढिय़ा बिताने के बाद फिर तबादला कैसे हो गया? क्या ऊपर आईजी तक कुछ नहीं पहुंचाते थे?Ó सुमेरचंद : 'साहबराम जी! आईजी साहब तक तो वक्त-बेवक्त पहुंचा देता था किंतु वक्त जब खराब आता है तो कुछ किया नहीं जा सकता। पैसे कमाने के चक्कर में सबकुछ भूल गया और हालात यह रहे कि हत्या में भी पैसे लेकर मुकदमों को गोलमोल करना आरंभ कर दिया था। बस यहीं गलती हो गयी।Ó अमरचंद हंसते हुए, 'तभी तो आपको डॉक्टर साहब कहते हैं! ऑपरेशन तो आप कर ही देते हो, किंतु ऑपरेशन करते हुए कैंची को पेट में ही कई बार छोडऩा भारी पड़ जाता है! लगता है कि इस बार आपने कैंची पेट में ही छोड़ दी थी। चलो छोडिय़े ...आपके जो चेले हैं जिन्होंने आपको भी कमाकर दिये हैं और खुद भी कमाये हैं, उनके बारे में तो बता दीजिये, हर माह कितने आते थे।Ó दूसरी तरफ से सुमेरचंद भी हंसते हुए, 'भई! मैंने तो हिसाब कभी रखा नहीं, वो एचएम है ना, वही पूरा हिसाब रखता था, उससे पूछ लेना, वो पूरी बात बता देगा।Ó मोबाइल फोन कट जाता है। इस दौरान एक फरियादी रौनकलाल आता है। फरियादी रौनकलाल : साहब! मैं तो लुट गया। जिंदगी भर की कमाई लुट गयी। मेरा तो बस आप ही जीवन बचा सकते हैं, नहीं तो मैं तो गाड़ी के नीचे आ जाउंगा। थानाधिकारी अमरचंद : 'भई! साफ-साफ बताओ, बात क्या है। कुछ बताओगे, तभी तो मैं कुछ कर पाउंगा! फरियादी : साहब, छोटा-मोटा दुकानदार हूं। सदर बाजार में मनियारी की दुकान है। घर तो आपके इलाके में है। बीती रात रिश्तेदार के यहां शादी थी। परिवार सहित वहीं गया था। ........वापिस आया तो....मेरे हलक सूख गये। घर के मेन गेट का ताला टूटा हुआ था। घर का पूरा सामान बिखरा हुआ था। अलमारी में से सोने के जेवरात और 3 लाख की चोरी हो गयी है। मेरी तो जिंदगी भर की कमायी थी। साहब! आप ही कुछ करें। पूरे 15 लाख के जेवरात थे।Ó थानाधिकारी : अरे! कल ही ज्वाइनिंग की है और आज ही तुम चोरी की खबर लेकर आ गये। शुरुआत ही बेकार है। चलो, तुम आये हो तो तुम्हारा तो कुछ करेंगे ही। थानाधिकारी घंटी बजाते हुए पूछते हैं, संतरी पहरे पर कौन है! एक कांस्टेबल आता है। ..जी हुकुम! मैं श्याम लाल! संतरी पहरे पर हूं! थानाधिकारी : श्यामलाल! डीओ कौन है? संतरी : हुकुम! रामचंद्र जी ... एएसआई साहब! थानाधिकारी : एचएम बहादरचंद को बुलाओ। संतरी चला जाता है। कुछ समय बाद हवलदार बहादरचंद आता है। एचएम बहादरचंद : जी साहब! थानाधिकारी : ऐसा करो, डीओ साहब को इनके साथ भेजो। इनसे रिपोर्ट ले लो। डीओ को बोलो, मौका मुआयना करने के बाद मेरे को बताये। एचएम बहादरचंद : जी साहब! फरियादी को डीओ रामचंद्र के साथ भेज दिया जाता है।
कुछ समय फाइलों को निपटाने के बाद डीएसपी हंसराज साहब आते हैं। थानाधिकारी के कमरे में जाते हैं। एसएचओ अपनी कुर्सी से खड़ा हो जाता है। डीएसपी हंसराज एसएचओ की कुर्सी पर बैठ जाते हैं। थानाधिकारी भी पास में पड़ी कुर्सी पर बैठ जाता है। थानाधिकारी : हुकुम! कैसे आने हुआ। हंसराज : अरे अमरचंद! तुम कल आये हो। कल तुम मिलने भी आये थे, उस समय तो तुम्हारे से पूरी तरह बात नहीं हो पायी। आज फ्री टाइम था, कोई ज्ञापन-वापन देने नहीं आ रहा था। सोचा! तुमसे सीधी बात कर ही आऊं। अमरचंद थानाधिकारी : जी हुकुम! फरमाइये। हंसराज: इस थाने से दो लाख रुपयेे की मंथली आती है! मेरे को पूरी जानकारी है। इसके अलावा मुकदमो से भी एसएचओ एक लाख कमा लैता है। मैं तुम्हारे से सारे पैसे तो नहीं मागूंगा। सुमेरचंद जो देता था, वही तुम दे देना। अमरचंद थानाधिकारी : साहब! हुकुम कीजिये, कितना देना होगा! हंसराज: पचास हजार रुपये! थानाधिकारी : साहब! कुछ ज्यादा हैं। ... जहां पहले था, वहां सीओ को 20 हजार देता था। हंसराज: भई! तुम पहले अकालग्रस्त क्षेत्र में थे। अब नहरी क्षेत्र में हो। इसका फर्क तो पड़ता ही है। मेरा मतलब समझ गये ना। कुछ क्षण रुककर हंसराज : अगर गड़बड़ करने की कोशिश की तो.......एक भी सट्टे की दुकान, शराब का अड्डा नहीं चलने दूंगा। थानाधिकारी : हुकुम! आप जैसा फरमायेंगे, वैेसा ही होगा। हंसराज : समझदार हो!........ अच्छा कल शाम को रिश्तेदार वापिस जयपुर जा रहे हैं। उनको जयपुर छोड़कर आना है। ऐसा करना एक कार का जयपुर तक के लिए प्रबंध करवाओ। एचएम को बोल देना, वह इंतजामात कर देगा। थानाधिकारी : जी हुकुम! थानाधिकारी : हुकुम! एडीशनल साहब को कितना? हंसराज: एडीशनल साहब की डिमांड तो ज्यादा हैं, किंतु उन्हें 10 हजार रुपये में सैट कर लेना। वो कौन सा फील्ड में जाते हैं। वे एसपी के पास चुगली नहीं करें, इस बात की हर महीने फीस ले लेते हैं। बाकी वो तो बारहवें खिलाड़ी हैं। बातचीत के दौरान ही दोनों थानाधिकारी चाय पीते हैं। कुछ समय बाद ही एएसआई रामचंद्र फरियादी के साथ लौट आता है। एएसआई रामचंद्र : साहब! यह चोरी संदिग्ध है। घर से सोना व नकदी तो चोरी होना तो लगता है, किंतु चोर टीवी और फ्रिज नहीं लेकर गये। अगर चोरी होती तो चोर उसको छोड़कर नहीं जाते। यह मामला संदिग्ध है। थानाधिकारी : अच्छा! .....ऐसा करो, मुकदमा अभी मत दर्ज करो। जो लट्टर हैं, उनको उठा लाओ और उनसे पूछो। अगर कोई स्वीकार करता है तो चोरी का मुकदमा दर्ज कर उससे बरामदगी कर लेना। थानाधिकारी : फरियादी से, ... ऐसा है, तुम्हारे से रिपोर्ट ले ली है। मौका मुआयना कर लिया गया है। कुछ सुराग लगेगा तो तुम्हें खबर कर देंगे। फरियादी : साहब! मुकदमा तो दर्ज कर लेते। थानाधिकारी : ..गुस्से से ..तुम तो ज्यादा होशियार बन रहे हो। मुकदमा दर्ज करने से चोर पकड़े जाते हैं क्या? एएसआई को तुम्हारे सामनेे कहा है कि बदमाशों को उठाकर लाओ। अगर कोई पकड़ा जाता है तो सामान बरामद हो जायेगा, तो तुम्हारा मुकदमा भी दर्ज हो जायेगा। हमें क्या पता तुम्हारे चोरी हुई भी या नहीं। फरियादी मुंह लटकाकर चला जाता है। डीएसपी भी इसके बाद चले जाते हैं।
कुछ समय बाद एक और फरियादी लालचंद आता है।
लालचंद : थानाधिकारी से, ...साहब! थानाधिकारी : हूं! लालचंद : साहब मेरी बेटी दो दिन से लापता है। थानाधिकारी : तो जाकर उसको ढूंढो। पुलिस ने तो तुम्हारी बेटी तो गायब की नहीं है। लालचंद : साहब! उसके कॉलेज का लड़का राकेश उसको बहला-फुसलाकर ले गया है। थानाधिकारी : कब से चल रहा है चक्कर? लालचंद : क्या मतलब। थानाधिकारी : अरे भाई! तुम्हारी बेटी कॉलेज में पढ़ती है। बच्ची थोड़े ही है, जो उसको कोई उठाकर ले जायेगा। कोई प्रेम... वगैरह का चक्कर होगा। लालचंद : साहब! मेरे को उसके गायब होने के बाद ही पता लगा कि वह किसी लड़के के चक्कर में थी। थानाधिकारी : ठीक है, तुम अपनी बेटी की गुमशुदगी रपट दे दो। एचएम को बुलाया जाता है : बहादरंचद! इनसे रिपोर्ट लेकर इनकी बेटी के गुम होने की रिपोर्ट दर्ज करो। किसी लड़के के साथ भाग गयी है। थानाधिकारी ने कहा। लालचंद : साहब! राकेश और मेरी बेटी प्रिया को ढूंढिये तो सही। एसएचओ : भाई! हमें क्या पता वो कहां है? पुलिस के पास जादू की छड़ी तो है नहीं जो घुमायेंगे और तुम्हारी बेटी को ढूंढ लेंगे। लालचंद : साहब! जो सेवा-पानी की जरूरत है। मैं करने को तैयार हूं। एसएचओ : तुम एचएम से बात करो। वो तुम्हें सब बात समझा देंगे।
फरियादी एचएम के कमरे में चला जाता है। लालचंद : एचएम साहब! जो कुछ सेवा पानी चाहिये वो बता दीजिये। बस,.. मेरे को बेटी चाहिये। एचएम बहादरचंद : ठीक है! तुम्हारी बेटी ही तुम्हें चाहिये या लड़के को सजा भी दिलानी है। लालचंद : क्या मतलब साहब? एचएम : अगर तुम्हारी बेटी ही तुम्हें चाहिये तो उसके पैसे कम हैं और अगर राकेश को सजा करवानी है तो उसके पैसे एक्सट्रा लगेंगे। लालचंद : ठीक है साहब! मेरे को तो लड़की ही चाहिये। लड़का उसके पास फिर से नहीं आये, यह जरूर करवा देना। एचएम : ठीक है 30 हजार रुपये लाओ। लालचंद उसको जेब से निकालकर 30 हजार रुपये दे देता है। एचएम : लड़के का मोबाइल नंबर है क्या? लालचंद : है। एचएम : तुम बताओ। एक-दो दिन तक लड़की मिल जायेगी। लालचंद एक कागज पर नंबर लिखकर देता है। पुलिस उससे एक कागज पर रिपोर्ट लिखवा लेती है। एचएम नंबर लेकर मोबाइल कंपनी से बात करता है और उस लड़के की लोकेशन बारे जानकारी प्राप्त करता है। लड़का-लड़की शहर में ही एक होटल में रूके होते हैं। पुलिस छापा मारकर वहां से दोनों को पकड़ लाती है। राकेश को मारा-पीटा जाता है। लड़की को जबरदस्ती उसके परिवारवालों के साथ भेज दिया जाता है। राकेश के परिजन भी पहुंचते हैं। वे एचएम से बात करते हैं। राकेश के पिता रूकमचंद्र : साहब! मेरे बेटे को मारिये मत! सेवा-पानी की जरूरत है तो बताइये। एचएम : ठीक है! डीएसपी साहब के ऑर्डर हैं कि लड़के को उलटा-लटकाया जाये। मैं आपकी कोई मदद नहीं कर सकता। लड़की को घर से भगाना संगीन अपराध है। रूकमचंद्र : आप कोई हल तो निकालियेे, जो भी कहेंगे, आपकी सेवा में हाजिर हो जायेगा। एचएम : अच्छा! तुम ज्यादा कह रहे हो तो मैं एसएचओ साहब से बात करता हूं। कुछ समय बाद एचएम एसएचओ के कमरे से बाहर आता है। एचएम बहादरचंद : साहब को मैंने मना लिया है। मांग तो ज्यादा थी, किंतु मैंने 10 हजार रुपये में साहब को मना लिया है। रूकमचंद्र : ठीक है! ... यह लीजिये। वह उन्हें सौ-सौ रुपयों की एक गड्डी थमा देता है। रूकमचंद्र : साहब! ... राकेश को अपनी मम्मी के हाथों बना खाना ही पसंद है। क्या मैं उसे घर से खाना लाकर दे दूं। एचएम : ठीक है। मंगा लो खाना। चिंता मत करो, उसकी पूरी देखभाल करेंगे। रूकमचंद्र चला जाता है और कुछ समय बाद घर से खाना लाकर अपने बेटे राकेश को खिला देता है। इसके बाद वह उससे बतियाता रहता है और फिर वापिस घर चला जाता है।
उधर एएसआई रामचंद्र भी चार अपराधिक छवि के युवकों को पकड़ लाता है। वह उन्हें एसएचओ के समक्ष पेश करता है। एएसआई : साहब! मैंने तस्दीक कर ली है। घटना के समय यह अपने घर पर मौजूद थे। इन लोगों ने वारदात को अंजाम नहीं दिया है। एसएचओ अमरचंद : इन लोगों ने नहीं दिया तो क्या हुआ, इनको बैठाओ, मैं डिप्टी साहब से बात करता हूं। एसएचओ मोबाइल पर डिप्टी हंसराज से बात करता है। अमरचंद : साहब! कुछ लड़कों को लाये हैं। मैं टेंशन नहीं लेना चाहता। अगर बाहर रहे तो रोज टेंशन देंगे। इनको फिट करना चाहता हूं। डिप्टी की आवाज : ठीक है। तुम जैसा चाहो करो! एसएचओ संतरी को आवाज लगाते हैं। संतरी : जी हुकुम! एएसआई रामचंद्र को बुलाओ। एएसआई रामचंद्र हाजिर होते ही: जी साहब। एसएचओ : चार लड़के जो लाए हो उनकी हिस्ट्री के बारे में बताओ। एएसआई : साहब! अनिल चोरी और हथियार सहित एक-दो बार पकड़ा गया है। मुकेश के खिलाफ चोरी के मुकदमे दर्ज हैं। रोहित व सलीम के खिलाफ एक-दो एनडीपीएस, मारपीट आदि के मुकदमे हैं। एसएचओ : ऐसा करो अनिल की पिस्तोल सहित गिरफ्तारी दिखाओ। मुकेश को कल तलवार सहित गिरफ्तार दिखा देना। रोहित को कल स्मैक और सलीम को पोस्त सहित गिरफ्तार दिखाओ। चारों को भेज दो, कुछ दिन के लिए ससुराल। एएसआई : जी साहब! एएसआई सैल्यूट देने के बाद वहां से चला जाता है। चारों को हवालात में डाल दिया जाता है और एसएचओ के आदेशानुसार उनकी गिरफ्तारी दिखा दी जाती है।
दृश्य दो नकबजनी का शिकार हुए रौनकलाल एक राजनेता के पास जाते हैं। नेता श्याम मौड़ : कहो!... कैसे आना हुआ रौनकलाल जी। रौनकलाल : नेताजी! आपकी पार्टी की सरकार है! फिर भी हमारी सुनवाई नहीं हो रही। चोरी हुई थी। मुकदमा दर्ज करवाने गया था। एसएचओ ने डांट पिलाकर भगा दिया। श्याम मौड़ : अच्छा! उसके ज्यादा पर निकल आये हैं। अभी फोन पर बात करता हूं। नेताजी फोन पर एसएचओ से बात करते हैं। श्याम मौड़ : एसएचओ अमरचंद जी! आपकी डिजायर की है, फिर भी आप हमारे कार्यकर्ताओं की नहीं सुनते। .......रौनक लाल की रिपोर्ट पर आपने मुकदमा दर्ज नहीं किया। एसएचओ : साहब! डिजायर की है तो उसके लिए आपको पूरे दो लाख दिये हैं। एक पेटी बीकानेर वाले बड़े साहब को देकर आया हूं। तब जाकर पोस्टिंग हुई है। एसएचओ : .......रही बात रौनकलाल के घर चोरी की। ...तो सुनिये जनाब, चार लोगों को पकड़कर लाये हैं लेकिन कोई भी उस दिन घर से गायब नहीं था। अब मोबाइल की कॉल डिटेल निकलवाते हैं। संभव है कि सफलता हासिल हो जाये। श्याम मौड़ : नहीं! नहीं! आप नाराज मत होइये! इनकी सहायता कीजिये। कार्यकर्ता हैं। इनकी तो सुननी ही पड़ेगी। ...ठीक है। आप जांच जारी रखिये। फोन काट दिया जाता है। नेता श्याम मौड़: रौनकलाल जी, एसएचओ को कह दिया है। वह जल्द ही चोर को पकड़ लेंगे। आप जाइये। आराम से सोइये। निराश हुआ रौनकलाल वहां से चला जाता है।
दृश्य तीन रौनकलाल अपने जान-पहचान वाले सटोरिये को पकड़ता है। सटोरिया दौलतराज सोनी : चिंता मत कीजिये। एचएम बहादरचंद जानकार हैं। उनसे सैटिंग करते हैं। काम बन जायेगा। दोनों पुलिस थाना जाते हैं। एचएम से मिलते हैं। सटोरिया दौलतराज सोनी : एचएम साहिब! आप तो गरीबों के रखवाले हैं। रौनकलाल जी की भी तो सुनिये। चोर पकडिय़े! नकदी आपकी, सोना हमारा। सौदा कीजिये। एचएम : अरे! भाईजी!... आप आये हैं तो कैसे मना करेंगे। समझो चोर पकड़े गये। पुलिस जगह-जगह छापा मारती है। नकबजन पकड़े जाते हैं। एचएम रौनकलाल को फोन मिलाते हैं। एचएम : रौनकलाल जी! आपके मेहमान मिल गये हैं। आ जाइये। रौनकलाल जी : जी, अभी आता हूं। कुछ समय बाद थाने में रौनकलाल जी आते हैं। एचएम : देखिये!... रौनकलाल जी। सारा सामान मिल गया है। रिपोर्ट आपकी हमारे पास है। कहो तो मुकदमा दर्ज कर लेते हैं, लेकिन रोज-रोज अदालतों की तारीख में जाते-जाते आप परेशान हो जायेंगे। यहीं सैट कर देते हैं। चोरों को किसी पुराने मुकदमे में फिट कर ही देंगे। रौनकलाल जी : मुझे तो अपने सामान से मतलब है। आप मुझे सोना दे दीजिये और सारी नकदी आप रख लीजिये। तय सौदे के मुताबिक तीन लाख की नकदी एचएम अपने पास रख लेता है और बिना मुकदमे की कार्रवाई के ही सोने की सुपुर्दगी रौनकलाल को कर दी जाती है।
शाम हो जाती है।
एसएचओ : अरे हैड साहिब! पूरा दिन निकलने को है और एक भी एक्ट की कार्रवाई नहीं हुई। टारगेट कैसे पूरा करेंगे। किसी सटोरिये को उठाकर तो लाओ। एचएम : सरकारी पेट्रोल क्यूं जलाते हैं साहिब! अभी सटोरिये को बुला लेते हैं। एचएम लक्ष्मणदास सिंधी सटोरिये को फोन मिलाता है। एचएम : लक्ष्मण जी! साहब नये आये हैं। ऐसा करो, एक आदमी को भेज दो। मुकदमा बनाना है। लक्ष्मण की आवाज : साहिब! इस महीने तीन मुकदमे बना चुके हैं। अब अगर और मुकदमे से बच जाते तो ठीक था। काफी खर्चा हो जाता है। एचएम साहब : रोज पचास हजार का सट्टा लगवाते हो। पांच हजार तुम्हारें है। फिर ऐसा कहोगे तो दुकान बंद करवा दूंगा। लक्ष्मण सिंधी : नहीं साहिब! भिजवाता हूं। मगर कितने की पर्ची और नकदी भेजूं। एचएम : ऐसा करो सात सौ भिजवा दो। चार सौ की पर्ची भेज दो। दो-तीन सौ रुपये तो सुबह फाइल और वकील पर खर्च हो जायेंगे। लक्ष्मण : जी सरकार! भिजवा रहा हूं। रामलखन नाम है उसका। एचएम : ठीक है। कुछ समय बाद ही रामलखन स्वयं पुलिस थाना में आता है। उसके पास चार सौ रुपये की पर्ची सट्टे की पर्चियां है। सात सौ रुपये नकद है। एचएम एसएचओ के पास जाता है एसएचओ : हां, क्या हुआ? एचएम : हुकुम! सटोरिया आ गया है। पर्ची भी ले आया है। गिरफ्तारी कहां दिखाऊं। एसएचओ : ऐसा करो, सूरतगढ़ बाईपास पर गिरफ्तारी दिखा दो। फर्द मेरी तरफ से ही बनाना। एचएम : जी हुकुम। सटोरिये पर मुकदमा बनाने के बाद उसकी जमानत ले ली जाती है और कुछ समय बाद ही वह घर चला जाता है और पर्दा गिर जाता है। !!इति!!
लेखक : सतीश बेरी
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