"हाशमी रफ़संजानी": अवतरणों में अंतर

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'''अकबर हाशमी रफ़संजानी''' 1989 से 1997 के बीच दो बार [[ईरान]] के राष्ट्रपति रह चुके हैं. रफ़संजानी काफ़ी दिनों से सरकारी व्यवस्था का हिस्सा नहीं रहे हैं. रफ़संजानी को यथार्थवादी और परंपरावादी नेता माना जाता है.रफ़संजानी ने राष्ट्रपति के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान पश्चिमी देशों के साथ संबंधों को नई दिशा दी और ईरान को एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में स्थापित किया. रफ़संजानी ने [[ईरानी क्रांति]] के तुरंत बाद ख़ुद को एक ताक़तवर नेता के रूप में स्थापित किया और [[इस्लामी रिपब्लिकन पार्टी]] की स्थापना की. इस पार्टी ने 1987 तक देश की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई लेकिन 1987 में यह पार्टी अंदरूनी मतभेदों की वजह से बिखर गई. हाशमी रफ़संजानी 1980 से 1988 तक ईरानी संसद, जिसे [[मजलिस]] कहा जाता है, के अध्यक्ष रहे. 1980 से 1988 तक चले [[ईरान-इराक़ युद्ध]] के आख़िरी वर्षों में [[आयतुल्ला ख़मेनेई]] ने रफ़संजानी को सशस्त्र सेनाओं का कार्यकारी कमांडर इन चीफ़ भी बनाया था.
'''अकबर हाशमी रफ़संजानी''' 1989 से 1997 के बीच दो बार [[ईरान]] के राष्ट्रपति रह चुके हैं. रफ़संजानी काफ़ी दिनों से सरकारी व्यवस्था का हिस्सा नहीं रहे हैं. रफ़संजानी को यथार्थवादी और परंपरावादी नेता माना जाता है.रफ़संजानी ने राष्ट्रपति के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान पश्चिमी देशों के साथ संबंधों को नई दिशा दी और ईरान को एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में स्थापित किया. रफ़संजानी ने [[ईरानी क्रांति]] के तुरंत बाद ख़ुद को एक ताक़तवर नेता के रूप में स्थापित किया और [[इस्लामी रिपब्लिकन पार्टी]] की स्थापना की. इस पार्टी ने 1987 तक देश की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई लेकिन 1987 में यह पार्टी अंदरूनी मतभेदों की वजह से बिखर गई. हाशमी रफ़संजानी 1980 से 1988 तक ईरानी संसद, जिसे [[मजलिस]] कहा जाता है, के अध्यक्ष रहे. 1980 से 1988 तक चले [[ईरान-इराक़ युद्ध]] के आख़िरी वर्षों में [[आयतुल्ला ख़मेनेई]] ने रफ़संजानी को सशस्त्र सेनाओं का कार्यकारी कमांडर इन चीफ़ भी बनाया था.

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03:30, 23 मार्च 2007 का अवतरण

अकबर हाशमी रफ़संजानी 1989 से 1997 के बीच दो बार ईरान के राष्ट्रपति रह चुके हैं. रफ़संजानी काफ़ी दिनों से सरकारी व्यवस्था का हिस्सा नहीं रहे हैं. रफ़संजानी को यथार्थवादी और परंपरावादी नेता माना जाता है.रफ़संजानी ने राष्ट्रपति के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान पश्चिमी देशों के साथ संबंधों को नई दिशा दी और ईरान को एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में स्थापित किया. रफ़संजानी ने ईरानी क्रांति के तुरंत बाद ख़ुद को एक ताक़तवर नेता के रूप में स्थापित किया और इस्लामी रिपब्लिकन पार्टी की स्थापना की. इस पार्टी ने 1987 तक देश की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई लेकिन 1987 में यह पार्टी अंदरूनी मतभेदों की वजह से बिखर गई. हाशमी रफ़संजानी 1980 से 1988 तक ईरानी संसद, जिसे मजलिस कहा जाता है, के अध्यक्ष रहे. 1980 से 1988 तक चले ईरान-इराक़ युद्ध के आख़िरी वर्षों में आयतुल्ला ख़मेनेई ने रफ़संजानी को सशस्त्र सेनाओं का कार्यकारी कमांडर इन चीफ़ भी बनाया था.