"राग पूरिया": अवतरणों में अंतर

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'''समप्रकृति रागः-''' मारवा और सोहनी
'''समप्रकृति रागः-''' मारवा और सोहनी


'''इसको भी देखें - अब्सारों का तारा'''<ref>{{Cite web|url=www.malhars.in|title=Hindi shayari|last=|first=|date=|website=|archive-url=|archive-date=|dead-url=|access-date=}}</ref>
'''इसको भी देखें - अब्सारों का तारा'''<ref>{{Cite web|url=https://www.shayarilo.in/|title=Hindi shayari|last=|first=|date=|website=|archive-url=|archive-date=|dead-url=|access-date=}}</ref>

15:40, 13 सितंबर 2021 का अवतरण

राग पूरिया

कोमल रिषभ अरु तीरब तब, जहाँ न पंचम होई।

ग नी वादी-संवादी है, राग पूरिया सोई ।।

परिचय :- इस राग की उत्पत्ति मारवा थाट से मानी गयी है। इसमें कोमल ऋषभ तथा तीव्र मध्यम स्वर प्रयोग किये जाते है। इसमें वादी स्वर गन्धार और संवादी निषाद है। गायन- समय संध्याकाल का है।

आरोह :- सा, ऩि रे,  र्म ध नि रें सां ।

अवरोह :- रें नि र्म ध ग र्म ग रे सा ।

पकड़ः- ग र्म ध ग र्म ग, र्म रे ग, रे सा, ऩि ध़ ऩि ऽ रे सा।।

(नोट - र्म को तीव्र समझें)

विशेषता:-

1. इस राग की चलन मुख्यतः मन्द्रं सप्तकों में होती है।

2. यह पूर्वांग प्रधान राग है।

3. इस राग की प्रकृति गम्भीर है

4. इसमें गमक, कण और मींड का अधिक प्रयोग होता है।

5. यह संधिप्रकाश और परमेल प्रवेशक राग दोनों कहलाता है।

न्यास के स्वर:- सा ग और नि

समप्रकृति रागः- मारवा और सोहनी

इसको भी देखें - अब्सारों का तारा[1]

  1. "Hindi shayari".