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श्री लक्ष्मी पुराणनमस्ते कमळा मागो सागर दुल्लणी । |
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नमस्ते नमस्ते लक्ष्मी बिष्णुङ्क घरणी ।१। |
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नमस्ते कमळा मागो अति दय़ाबती । |
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स्थाबर जङ्गम कीट आदि पाळु निति ।२। |
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तोर दय़ाबळे मागो दरिद्र जनर । |
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हुअइ अचळ बित्त जिणइ कुबेर ।३। |
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तोर द्रोही जने मागो अन्न न मिळइ । |
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येते अरजिले केभेँ पेट न पुरइ ।४। |
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तोहर चरित मन देइ ये शुणइ । |
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किअबा भकति भाबे सर्बदा गुणइ ।५। |
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ताहार दरिद्र पण याए दूर होइ । |
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सर्बदा ताकु प्रसन्न हेउ महामाय़ी ।६। |
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एणु तो चरणे मागो अशेष प्रणाम । |
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करुछि पुराअ बारे मोर मनस्काम ।७। |
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तो चरित किञ्चिते मुँ करिबि रचन । |
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जगत जननी बारे दिअ दिब्य़ ज्ञान ।८। |
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दिनके नारद पराशर मुनि दुइ । |
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भ्रमि भ्रमि एक ग्रामे प्रबेशिले याइँ ।९। |
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सेहिदिन मार्गशीर मास गुरुबार । |
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पर्ब पड़िथिला सर्ब पुरबासीङ्कर ।१०। |
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प्रति घरद्वार गोमय़रे लिपा होइ । |
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लक्ष्मी पादपद्म चिता पड़िथिला तहिँ ।११। |
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नारीमाने स्नान सारि पिन्धि झीनबास । |
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लक्ष्मीङ्क पूजारे सर्बे होइछन्ति बश ।१२। |
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ब्राह्मणङ्क ठारु ये चण्डाळ परियन्ते । |
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लक्ष्मीङ्क पूजारे रत अछन्ति समस्ते ।१३। |
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हुळ हुळी शबदरे पुरिछि गगन । |
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देखि ए उत्सब रीति बिधाता नन्दन ।१४। |
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पचारन्ति पराशर मुनिङ्कु उदन्त । |
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कह कह तपीबर ए किस चरित ।१५। |
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ब्राह्मण चण्डाळ आदि समस्त जातिरे । |
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करुछन्ति कि उत्सब आनन्द मतिरे ।१६। |
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केउँ ब्रत कि उपास अटे एहा नाम । |
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काहाकु करन्ति पूजा तार कि निय़म ।१७। |
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एहा शुणि पराशर होइ हस हस । |
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कहन्ति बचन धीरे शुण बिधिशिष्य़ ।१८। |
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ए धान माणिका गुरुबार ये अटइ । |
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लक्ष्मी देबीङ्कर पूजा ए ब्रत अटइ ।१९। |
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सबु मास मानङ्करे मार्गशिर सार । |
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तहिँरे पड़इ येउँ येउँ गुरुबार ।२०। |
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:॥ इति श्री लक्ष्मी पुराण समाप्त ॥: |
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बळराम > बलराम |
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चाउळ > चाउल |
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कमळा >कमला |
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कदळी> कदली |
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कमळाङ्क, कदळीरे, येउँ |
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अलंकार, बंचित, अंगार, मंडल |
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सूर्योदय >सूर्योदय |