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'''प्रथम परिच्छेद''' में रचयिता ने काव्यसामान्य की परिभाषा देने के पश्चात् सर्वप्रथम काव्य के दीर्घ एवं गुण का विवेचन किया है। इसी संदर्भ में भोजदेव ने पद, वाक्य एवं वाक्यार्थगत दोष बताए हैं। हर प्रकार के दोषों की संख्या सोलह है। भोजदेव के अनुसार गुण, शब्दगत और वाक्यार्थ गत होते हैं और प्रत्येक के चौबीस भेद हैं। प्रथम परिच्छेद के अन्त में कतिपय दोष कहीं कहीं गुण बन जाते हैं। इस काव्यतत्व को उदाहरण द्वारा समझाते हुए उन्होंने काव्यदोषों का नित्यानित्यत्व स्वीकृत किया है।
'''द्वितीय परिच्छेद''' में
'''तीसरे परिच्छेद''' में अर्थांलकारों के स्वरूप एवं प्रकार भेद का विवेचन है जो इतर साहित्याचार्यों की अपेक्षा भिन्न स्वरूप को लिए हुए है।
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