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'''सोम''' ([[संस्कृत]] में) या 'होम' [[अवेस्ता]]-भाषा में, प्राचीन ईरानी-आर्य लोगों का पेय था। [[ऋग्वेद]] में इसका बार-बार उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद के 'सोम मण्डल' में ११४ मंत्र हैं जो सोम के ऊर्जादायी गुण का वर्णन करते हैं।
'''सोम''' ( [[संस्कृत|वैदिक संस्कृत]] में) वेदों में वर्णित एक विषय है जिसका प्रमुख अर्थ उल्लास, सौम्यता और चन्द्रमा है । [[ऋग्वेद]] और सामवेद में इसका बार-बार उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद के 'सोम मण्डल' में ११४ सूक्त हैं, जिनमे १०९७ मंत्र हैं - जो सोम के ऊर्जादायी गुण का वर्णन करते हैं । पाश्चात्य विद्वानों ने इस सोम को [[अवेस्ता]]-भाषा में लिखे, 'होम' से जोड़ा है जो प्राचीन ईरानी-आर्य लोगों का पेय था ।

सनातन परंपरा में वेदों के व्याखान के लिए प्रयुक्त निरुक्त में सोम को दो अर्थों बताया गया है <ref>निरूक्त, अध्याय ११, प्रथम पाद, खंड २</ref> । पहले सोम को एक औषधि कहा गया है जो स्वादिष्ट और मदिष्ट (नंदप्रद) है, और दूसरे इसको चन्द्रमा कहा गया है । इन दोनो अर्थों को दर्शाने के लिए ये दो मंत्र हैं:

'''स्वादिष्ठया मदिष्ठया पवस्व सोम धारया । इन्द्राय पातवे सुतः ।। (ऋक् ९.१.१, सामवेद १)'''

'''सोमं मन्यते पपिवान्यत्सम्पिषन्त्योषधिम् । सोमं यं ब्रह्माणो विदुर्न तस्याश्नाति कश्चन ।। (ऋक् १०.८५.३)'''

निरूक्त में ही ओषधि का अर्थ उष्मा धोने वाला यानि क्लेश धोने वाला है ।

<nowiki>[[श्री अरोबिन्दो]]</nowiki>, <nowiki>[[कपाली शास्त्री]]</nowiki> आदि जैसे विद्वानों ने सोम का अर्थ ''श्रमजनित उल्लास'' बताया है । मध्वाचार्य परंपरा में सोम का अर्थात श्रीकृष्ण लिखा है ।


== बाहरी कड़ियाँ ==
== बाहरी कड़ियाँ ==

03:10, 5 नवम्बर 2017 का अवतरण

सोम ( वैदिक संस्कृत में) वेदों में वर्णित एक विषय है जिसका प्रमुख अर्थ उल्लास, सौम्यता और चन्द्रमा है । ऋग्वेद और सामवेद में इसका बार-बार उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद के 'सोम मण्डल' में ११४ सूक्त हैं, जिनमे १०९७ मंत्र हैं - जो सोम के ऊर्जादायी गुण का वर्णन करते हैं । पाश्चात्य विद्वानों ने इस सोम को अवेस्ता-भाषा में लिखे, 'होम' से जोड़ा है जो प्राचीन ईरानी-आर्य लोगों का पेय था ।

सनातन परंपरा में वेदों के व्याखान के लिए प्रयुक्त निरुक्त में सोम को दो अर्थों बताया गया है [1] । पहले सोम को एक औषधि कहा गया है जो स्वादिष्ट और मदिष्ट (नंदप्रद) है, और दूसरे इसको चन्द्रमा कहा गया है । इन दोनो अर्थों को दर्शाने के लिए ये दो मंत्र हैं:

स्वादिष्ठया मदिष्ठया पवस्व सोम धारया । इन्द्राय पातवे सुतः ।। (ऋक् ९.१.१, सामवेद १)

सोमं मन्यते पपिवान्यत्सम्पिषन्त्योषधिम् । सोमं यं ब्रह्माणो विदुर्न तस्याश्नाति कश्चन ।। (ऋक् १०.८५.३)

निरूक्त में ही ओषधि का अर्थ उष्मा धोने वाला यानि क्लेश धोने वाला है ।

[[श्री अरोबिन्दो]], [[कपाली शास्त्री]] आदि जैसे विद्वानों ने सोम का अर्थ श्रमजनित उल्लास बताया है । मध्वाचार्य परंपरा में सोम का अर्थात श्रीकृष्ण लिखा है ।

बाहरी कड़ियाँ

  1. निरूक्त, अध्याय ११, प्रथम पाद, खंड २