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[[File:One Rupee Indian coins.JPG|thumb|300px|भारतीय एक रुपये के यह सिक्के प्रतिमोच्य हैं - इनमें से कोई भी एक किसी भी अन्य से मूल्य और प्रयोग में बराबर है]]
'''प्रतिमोच्यता''' (Fungibility, फ़ंजिबिलिटी) किसी ऐसे प्रकार के माल या [[जिन्स]] जिसकी इकाईयाँ एक-दूसरे से सरलता से बदली जा सकें। उदाहरण के लिये एक किलो [[लोहा]] की एक इकाई किसी भी अन्य एक किलो लोहे के लगभग बराबर ही मानी जा सकती है। [[तेल]], [[गेंहू]], दस रुपये के नोट, इत्यादि ऐसी अन्य प्रतिमोच्य चीज़ों के उदाहरण हैं।<ref>Bartram, Söhnke M.; Fehle, Frank R. (March 2007). "[http://papers.ssrn.com/sol3/papers.cfm?abstract_id=311880 Competition without Fungibility: Evidence from Alternative Market Structures for Derivatives]". Journal of Banking and Finance 31 (3): 659–677. doi:10.1016/j.jbankfin.2006.02.004.</ref>
'''प्रतिमोच्यता''' (Fungibility, फ़ंजिबिलिटी) किसी ऐसे प्रकार के माल या [[जिन्स]] जिसकी इकाईयाँ एक-दूसरे से सरलता से बदली जा सकें। उदाहरण के लिये एक किलो [[लोहा]] की एक इकाई किसी भी अन्य एक किलो लोहे के लगभग बराबर ही मानी जा सकती है। [[तेल]], [[गेंहू]], दस रुपये के नोट, इत्यादि ऐसी अन्य प्रतिमोच्य चीज़ों के उदाहरण हैं।<ref>Bartram, Söhnke M.; Fehle, Frank R. (March 2007). "[http://papers.ssrn.com/sol3/papers.cfm?abstract_id=311880 Competition without Fungibility: Evidence from Alternative Market Structures for Derivatives]". Journal of Banking and Finance 31 (3): 659–677. doi:10.1016/j.jbankfin.2006.02.004.</ref>



06:47, 9 जून 2016 का अवतरण

भारतीय एक रुपये के यह सिक्के प्रतिमोच्य हैं - इनमें से कोई भी एक किसी भी अन्य से मूल्य और प्रयोग में बराबर है

प्रतिमोच्यता (Fungibility, फ़ंजिबिलिटी) किसी ऐसे प्रकार के माल या जिन्स जिसकी इकाईयाँ एक-दूसरे से सरलता से बदली जा सकें। उदाहरण के लिये एक किलो लोहा की एक इकाई किसी भी अन्य एक किलो लोहे के लगभग बराबर ही मानी जा सकती है। तेल, गेंहू, दस रुपये के नोट, इत्यादि ऐसी अन्य प्रतिमोच्य चीज़ों के उदाहरण हैं।[1]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. Bartram, Söhnke M.; Fehle, Frank R. (March 2007). "Competition without Fungibility: Evidence from Alternative Market Structures for Derivatives". Journal of Banking and Finance 31 (3): 659–677. doi:10.1016/j.jbankfin.2006.02.004.