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कशेरुकी प्राणी

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कशेरुकी
सामयिक शृंखला: 525–0 मिलियन वर्ष
Ordovician - Recent
वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत: प्राणी
संघ: रज्जुकी
उपसंघ: कशेरुकी
अधिवर्ग

वे जंतु जिनके पास मेरुदंड या रीढ़ की हड्डी पायी जाती है वह कशेरुकी जंतु (Vertebrates) कहलाते है आगे पढ़ें

कशेरुकी या कशेरुकदण्डी प्राणी जगत् के रज्जुकी संघ का सबसे बड़ा उपसंघ है जिसके सदस्यों में मेरुदण्ड विद्यमान रहते हैं। इस समुदाय में इस समय लगभग 58,000 प्रजातियाँ वर्णित हैं। इसमें अहनुमुखी चक्रमुखी तथा हनुमुखी उपास्थिल मत्स्य, अस्थिल मत्स्य, उभयचर, सरीसृप, पक्षी और स्तनधारी शामिल हैं। ज्ञात जन्तुओं में लगभग 5% कशेरूकी हैं और शेष अकशेरूकी

कशेरुकी उपसंघ के दो अधःसंघ हैं: अहनुमुखी तथा हनुमुखी

अहनुमुखी

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अहनुमुखी की एक ही वर्ग है–चक्रमुखी। इसके सभी प्राणी कुछ मछलियों के बाह्य परजीवी होते हैं। इनका शरीर दीर्घ होता है, जिसमें श्वसन के लिए 6-15 जोड़ी क्लोम रेखाछिद्र होते हैं। चक्रमुखी में हनुहीन चूषक तथा वृत्ताकार मुख होता है। इसके शरीर में शल्क तथा युग्मित पक्षों का अभाव होता है। कपाल तथा मेरुदण्ड उपास्थिल होता है। परिसंचरण तन्त्र बन्द प्रकार का है। चक्रमुखी समुद्री होते हैं; किन्तु जनन के लिए मीठा जल में प्रवास करते हैं। जनन के कुछ दिन के बाद वे मर जाते हैं। इसके डिम्भ कायान्तरण के पश्चात् समुद्र में लौट जाते हैं। उदाहरण: लैम्प्रे तथा मिक्सीन।

हनुमुखी

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हनुमुखी कशेरुकी हनु वाले प्राणी हैं। ये दो अधिवर्गों में विभक्त हैं, जिनका परिचय निम्नोल्लेखित हैं :

इस अधिवर्ग में सभी प्रकार की मछलियाँ आती हैं। मछलियाँ जलवासी जीव हैं और क्लोमों द्वारा श्वसन करती हैं।

क्लोम जीवन पर्यन्त उपस्थित रहते हैं। साधारणतया त्वचा शल्कों से ढकी रहती है। प्रचलन के लिए अंस तथा श्रोणि पक्ष और अयुग्म पृष्ठीय, औदरिक तथा पुच्छ पक्ष होते हैं। पक्षों में कंकालीय पक्षरश्मियाँ होती हैं। इनके अतिरिक्त अधिकतर मछलियों में वायुकोष उपस्थित होती है। हृदय एक अलिंद तथा एक निलय, दो खण्डों में विभक्त रहता है। इस अधिवर्ग को दो वर्गों में विभक्त किया जा सकता है: उपास्थिल मत्स्य तथा अस्थिल मत्स्य

चतुष्पाद

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ये मछली तथा उरग दोनों श्रेणियों के बीच के प्राणी हैं, जो जल तथा स्थल दोनों ही पर रह सकते हैं। इनकी त्वचा प्राय: कोमल, नम तथा चिकनी होती है और उसपर किसी प्रकार के शल्क नहीं होते। इनमें अधिकांश अपनी बेंगची अवस्था में गलफड़ों द्वारा ओर वयस्क अवस्था में फुफ्फुसों द्वारा श्वसन करते हैं, किंतु कुछ जीवन पर्यंत गलफड़ों द्वारा ही श्वसन करते हैं। शाखांग कभी पख के रूप में नहीं होते। शाखांग जब वर्तमान होते हैं तो उनकी रचना पंचांगुलिक होती है जो चलने फिरने तथा तैरने के लिए होते हैं तथा उनमें किसी प्रकार के नाखून नहीं होते। हृदय में दो अलिंद और एक निलय होता हैं। इनके जीवन में प्राय: रूपांतरण होता रहता है। इस श्रेणी के उदाहरण सैलामैंडर, दादुर, मेढक तथा सिसीलियन हैं।

इस श्रेणी के प्राणियों के पैर इतने छोटे होते हैं कि चलते समय ऐसा प्रतीत होता है मानो ये पेट के बल रेंग रहे हों। उरग शीतरक्तीय कशेरुकदंडी हैं। इनकी त्वचा शृंगी शल्कों से ढकी रहती है और कुछ में इन शल्कों के स्थान पर श्रृंगी या अस्थि पट्टिकाएँ होती हैं। हृदय में दो अलिंद और अपूर्ण रूप से, दाएँ तथा बाएँ में विभाजित, निलय होता है, किंतु मगरमच्छ में निलय पूर्ण रूप से दो खंडों में बँटा रहता है। इस श्रेणी में छिपकलियाँ, गिरगिट, साँप, कछुए, मगरमच्छ तथा नक्र इत्यादि आते हैं।

इस श्रेणी में वे जंतु सम्मिलित हैं जिन्हें हम पक्षी कहते हैं। ये उष्णरक्तीय दो पैरोंवाले जंतु होते हैं। इनका शरीर परों से ढँका रहता है। अग्रशाखांग डैनों में परिवर्तित होते हैं। ऊर्ध्व तथा अधोहन्विकाएँ मिलकर चोंच बनाती हैं, जो एक श्रृंगी छाद से ढकी रहती है। इन्हें दाँत नहीं होते। हृदय पूर्ण रूप से चतुष्कोष्ठीय (दो अलिंद तथा दो विलय) होता है। इस श्रेणी के अंतर्गत सभी प्रकार की चिड़ियाँ, जैसे कौवे, गौरैवा, चील, बाज, मुर्गा, बत्तख, शुतुरमुर्ग, नीलकंठ, कोयल, मोर, बुलबुल इत्यादि आते हैं।

स्तनधारी
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इस श्रेणी में वे कशेरुकदंडी जंतु आते हैं जिनकी मादा स्तनोंवाली होती हैं। बच्चों के पोषण के लिए स्तनों से दूध स्रावित होता है। नर में वृषण अंडकोश में स्थित होते हैं। इनके अतिरिक्त स्तनधारियों के शरीर पर बाल पाए जाते हैं; शरीर के मध्य अनुप्रस्थ दिशा में फैला हुआ एक महापट हृदय चतुष्कोठीय तथा कान का बाहरी छिद्र कर्णशुष्कुली से ढका होता है। ये उष्णरक्तीय तथा वायुश्वसनीय प्राणी हैं। इनके लाल रक्तकणों में केंद्रक का अभाव होता है। साधारणतया बच्चे पूर्ण विकसित अवस्था में ही मादा के शरीर से बाहर निकलते हैं। इस श्रेणी के उदाहरण वनचोंचा, चींटोखोर, कंगारू, बकरी, भेड़, गाय, भैंस, कुता, सियार, भालू, शेर, हाथी, ह्वेल, खरगोश, गिलहरी, बंदर तथा मनुष्य इत्यादि हैं।

विभिन्न कशेरुकों के अस्थिपंजर

सन्दर्भ

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इन्हें भी देखें

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