असत्‌कार्यवाद

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असत्‌कार्यवाद, कारणवाद का न्यायदर्शनसम्मत सिद्धांत जिसके अनुसार कार्य उत्पत्ति के पहले नहीं रहता। न्याय के अनुसार उपादान और निमित्त कारण अलग-अलग कार्य उत्पन्न करने की पूर्ण शक्ति नहीं है किंतु जब ये कारण मिलकर व्यापारशील होते हैं तब इनकी सम्मिलित शक्ति ऐसा कार्य उत्पन्न होता है जो इन कारणों से विलक्षण होता है। अत: कार्य सर्वथा नवीन होता है, उत्पत्ति के पहले इसका अस्तित्व नहीं होता। कारण केवल उत्पत्ति में सहायक होते हैं। सांख्यदर्शन इसके विपरीत कार्य को उत्पत्ति के पहले कारण में स्थित मानता है, अत: उसका सिद्धांत सत्कार्यवाद कहलाता है। न्यायदर्शन भाववादी और यथार्थवादी है। इसके अनुसार उत्पत्ति के पूर्व कार्य की स्थिति मानना अनुभवविरुद्ध है। न्याय के इस सिद्धांत पर आक्षेप किया जाता है कि यदि असत्‌ कार्य उत्पन्न होता है तो शश-शृंग जैसे असत्‌ कार्य भी उत्पन्न होने चाहिए। किन्तु न्यायमंजरी में कहा गया है कि असत्कार्यवाद के अनुसार असत्‌ की उत्पत्ति नहीं मानी जाती। अपितु जो उत्पन्न हुआ है उसे उत्पत्ति के पहले असत्‌ माना जाता है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]