अंधा युग
अंधा युग | |
---|---|
मुखपृष्ठ | |
लेखक | धर्मवीर भारती |
देश | भारत |
भाषा | हिंदी |
विषय | साहित्य - नाटक |
आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ | 8122501028 |
अंधा युग, धर्मवीर भारती द्वारा रचित हिंदी काव्य नाटक है। इस गीतिनाट्य का प्रकाशन सन् 1954 ई. में हुआ था। इसका कथानक महाभारत युद्ध के अंतिम दिन पर आधारित है। इसमें युद्ध और उसके बाद की समस्याओं और मानवीय महत्त्वाकांक्षा को प्रस्तुत किया गया है।
कथानक
[संपादित करें]इसका कथानक महाभारत के अठारहवें दिन से लेकर श्रीकृष्ण की मृत्यु तक के क्षण पर आधारित है।
पात्र
[संपादित करें]इस गीतिनाट्य में विभिन्न पात्रों की योजना की गई है। जैसे- अश्वत्थामा, गान्धारी, धृतराष्ट्र, कृतवर्मा, संजय, वृद्ध याचक, प्रहरी-1, व्यास, विदुर, युधिष्ठिर, कृपाचार्य, युयुत्सु, गूँगा भिखारी, प्रहरी-2, बलराम, कृष्ण इत्यादि।
मंचन
[संपादित करें]यह् नाटक चार दशक से भारत की प्रत्येक भाषा में मंचित हो रहा है। इब्राहीम अलकाजी, एम के रैना, रतन थियम, अरविन्द गौड़, राम गोपाल बजाज, मोहन महर्षि और कई अन्य भारतीय रंगमंच निर्देशको ने इसका मंचन किया है। इराक युद्ध के समय निर्देशक अरविन्द गौड़ ने आधुनिक अस्त्र-शस्त्र के साथ इसका मन्चन किया।
विशेषताएं
[संपादित करें]इस गीतिनाट्य का आरंभ मंगलाचरण से होता है। यह अंकों में विभाजित कृति है। 'कौरव नगरी' इस कृति का प्रथम अंक है। इसके दूसरे अंक का प्रारंभ 'पशु का उदय' नामक अध्याय से होता है। 'अश्वत्थामा का अर्द्धसत्य' इसका तीसरा अंक है। चौथे अंक का आरंभ 'गांधारी का शाप' से होता है। 'विजय:एक क्रमिक आत्महत्या' इसका पाँचवाँ अंक है। अंतिम अध्याय 'समापन' 'प्रभु की मृत्यु' के साथ ही इस नाट्य की समाप्ति होती है। इसे नए संदर्भ और कुछ नवीन अर्थों के साथ लिखा गया है। इसमें धर्मवीर भारती ने रंगमंच निर्देशको के लिए ढेर सारी संभावनाएँ छोड़ी हैं। कथानक की समकालीनता नाटक को नवीन व्याख्या और नए अर्थ देती है। नाट्य प्रस्तुति में कल्पनाशील निर्देशक नए आयाम तलाश लेता है। इस नाटक में कृष्ण के चरित्र के नए आयाम और अश्वत्थामा का ताकतवर चरित्र है, जिसमें वर्तमान युवा की कुंठा और संघर्ष उभरकर सामने आते हैं।