हरीश चन्द्र मुखोपाध्याय

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हरीश चन्द्र मुखोपाध्याय (1824 – 1861), भारत के एक पत्रकार और देशप्रेमी थे जिन्होने नील की खेती करने वालों के हित के लिए संघर्ष किया और ब्रिटिश सरकार को इसमें बदलाव लाने के लिए मजबूर किया।

बंगाल के नील किसानों की समस्याओं और उनके दुःख-दर्द को सामने लाने में पत्रकार हरीश चंद्र मुखर्जी की बड़ी भूमिका रही है। उन्होंने यह काम अपने अखबार द हिंदू पेट्रियाट अखबार के जरिये किया। उन्होंने लगातार बंगाल के नील किसानों की व्यथा और शोषण की कहानियां प्रकाशित कीं। उनके रिपोर्ट्स से नील प्लांटर्स इतने परेशान हुए कि उन्होंने हिंदू पेट्रियाट अखबार को मुकदमे में फंसाने की कोशिश शुरू कर दी। किन्तु अच्छी बात यह थी कि हिंदू पेट्रियाट अखबार ब्रिटिश टेरिटरी से बाहर भवानीपुर के इलाके से प्रकाशित होता था, इसलिए वे अखबार का प्रकाशन बन्द नहीं कर पाये। लेकिन उन्होंने हरीशचंद्र मुखोपाध्याय को कई तरह से प्रताड़ित किया। नतीजा यह हुआ कि केवल 37 साल की उम्र में उनकी मृत्यु हो गयी। इतना ही नहीं उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी को भी मुकदमें में उलझाये रखा गया। मगर हरीशचंद्र मुखोपाध्याय के प्रयास इतने कारगर रहे कि ब्रिटिश सरकार को नील आयोग का गठन करना ही पड़ा।

जिस तरह हिंदी पत्रकारिता के क्षेत्र में गणेश शंकर विद्यार्थी का नाम अमर है, उसी तरह बंगाल की पत्रकारिता में हरीशचंद्र मुखोपाध्याय की कीर्ति आज भी है। उस काल में बंगाल में उनके नाम के गीत गाये जाते थे। हिंदू पेट्रियाट की पत्रकारिता के जरिये उन्होंने जो बदलाव की बुनियाद रखी, वह अविस्मरणीय है। एक संवाददाता के रूप में 1953 में उन्होंने इस अखबार में नौकरी की थी, पर केवल दो वर्ष में वे अखबार के प्रधान सम्पादक बन गये और फिर मालिक भी। उसी दौर में 1857 का विद्रोह हुआ, उन्होंने अपने अखबार में इसकी रिपोर्टिंग भी की और 1858 के नील बिप्लव की रिपोर्टिंग के लिए तो उनका नाम अमर ही हो गया।