स्वदेशी स्टीम नेविगेशन कंपनी

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स्वदेशी स्टीम नेविगेशन कंपनी ( एसएसएनसी ) भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के समय स्थापित पहली स्वदेशी भारतीय जलयान कंपनियों में से एक थी। सन् 1906 में [1] वीओ चिदम्बरम पिल्लई ने ब्रिटिश इंडिया स्टीम नेविगेशन कंपनी (बीआईएसएनसी) के एकाधिकार को समाप्त करने के लिये इसकी स्थापना की थी। [2] यह तूतीकोरिन और कोलंबो के बीच जलयान चलाती थी। अंग्रेज सरकार के पक्षपातपूर्ण नीतियों तथा चिदम्बरम पिल्लै को दो आजीवन कारावास देने के कारण सन १९११ में यह कम्पनी समाप्त हो गयी।

पृष्ठभूमि[संपादित करें]

20वीं सदी की शुरुआत में, ब्रिटिश इंडिया स्टीम नेविगेशन कंपनी (बीआईएसएनसी) का हिंद महासागर क्षेत्र में व्यापार पर एकाधिकार था। दक्षिण भारत स्थित तूतीकोरिन के व्यापारियों ने एकाधिकार को तोड़ने का फैसला किया। उन्होंने तूतीकोरिन और सीलोन (अब श्रीलंका) की राजधानी कोलंबो के बीच चलाने के लिए शॉलाइन स्टीम कंपनी से एक जहाज किराए पर लिया। किन्तु ब्रिटिश राज के दबाव के कारण शॉलाइन स्टीम कंपनी ने किराये पर ली गयी जहाज को वापस ले लिया। [3]

इस अवधि में, तूतीकोरिन के एक वकील वीओ चिदंबरम पिल्लई ने ब्रितानियों के राजनीतिक और वित्तीय एकाधिकार को समाप्त करने के उद्देश्य से एक नौकायन (नेविगेशन) कंपनी शुरू की। [3] चिदम्बरम पिल्लै स्वदेशी आंदोलन में शामिल थे और भारत को आर्थिक और राजनैतिक रूप से अपने पैरों पर खड़ा करने के प्रबल समर्थक थे।

कंपनी[संपादित करें]

चिदम्बरम पिल्लै ने 16 अक्टूबर 1906 को स्वदेशी स्टीम नेविगेशन कंपनी पंजीकृत की। [3] उन्होंने 40,000 शेयर जारी किये जिनका कुल मूल्य उस समय 10 लाख रूपये था (2019 की कीमतों में 2,000 करोड़ रूपये)। उन्होंने इस कंपनी का गठन लाभ के लिए नहीं बल्कि राष्ट्रवाद के आदर्शों के लिए किया था। एशिया का कोई भी व्यक्ति शेयर रखने के लिए पात्र था। [3] पलावनथम के जमींदार पंडितुरई थेवर ने २ लाख रूपये के शेयर खरीदे। इसके लिये उन्होंने पम्बुर नामक एक गाँव को बेच दिया।[4] थेवर इस कम्पनी के अध्यक्ष बने और पिल्लई सहायक सचिव बने। [3] कंपनी का उद्देश्य तूतीकोरिन और कोलंबो के बीच जहाज चलाना और एशियाई लोगों को नेविगेशन और जहाज निर्माण में प्रशिक्षित करना था। [3] चिदम्बरम पिल्लई ने कंपनी के लिए धन जुटाने के लिए पूरे भारत का दौरा किया। [5] कवि सुब्रमण्यम भारती ने इसके महत्व के बारे में निबंध लिखे। [6] एसएस गैलिया, बाल गंगाधर तिलक और अरबिंदो घोष [7] की मदद से फ्रांस [5] से पहला जहाज खरीदा गया था और 1907 में तूतीकोरिन पहुंचा था। जहाज तूतीकोरिन और कोलंबो के बीच यात्रा करता था और 1300 यात्रियों और 40,000 बैग कार्गो ले जा सकता था। [8] जहाज पर " वंदे मातरम् " का नारा लिखा हुआ एक झंडा लगा हुआ था। [8] बाद में एक अन्य फ्रांसीसी जहाज, एसएस लावो भी इसमें सम्मिलित किया गया।[5]

अब एसएसएनसी और बीआईएसएनसी के बीच व्यापार युद्ध छिड़ गया। जब बीआईएसएनसी ने किराया घटाकर एक रुपया कर दिया, तो पिल्लई ने किराया घटाकर 50 पैसे कर दिया। इसके बाद बीआईएसएनसी ने यात्रियों को मुफ्त छाते दिए। [9] राष्ट्रवादी भावना के कारण, एसएसएनसी को व्यापारियों और यात्रियों से तब भी समर्थन मिला जब बीआईएसएनसी ने मुफ्त सेवा की पेशकश की। [5] ब्रिटिश राज की मदद से बीआईएसएनसी ने एसएसएनसी को [10] परेशान करना शुरू किया। उदाहरण के लिये एसएसएनसी यात्रियों की चिकित्सा क्लीयरेन्स और सीमा शुल्क क्लीयरेन्स में देरी की जाने लगी। उन्हें बन्दरगाह की समयसारणी में जगह नहीं दी गयी। [8] चिदम्बरम पिल्लै भी उस समूह का हिस्सा थे जिसने 1908 में बिपिन चंद्र पाल की जेल से मुक्ति को स्वराज्य दिवस के रूप में मनाने की योजना बनाई थी। [11] इससे नाराज होकर आंग्रेज सरकार ने 12 मार्च 1908 को सरकार के खिलाफ बैठकें आयोजित करने के लिए सुब्रमण्यम शिवा और चिदम्बरम पिल्लई को राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। [12] पिल्लई को दो आजीवन कारावास (40 वर्ष) की सजा सुना दी गई। [13] जब वे जेल चले गये तब ब्रिटिश राज ने उनकी कंपनी की गतिविधियों को और अधिक दबाना शुरू किया। अधिकारियों के उत्पीड़न के बाद शेयरधारकों ने कंपनी वापस ले ली। [3] 1911 में एसएसएनसी का परिसमापन हो गया, और एक जहाज उसकी प्रतिद्वंद्वी ब्रिटिश कंपनी को बेच दिया गया। [13]

प्रभाव[संपादित करें]

17 जून 1911 को टिननेवेली जिले के कलेक्टर रॉबर्ट ऐश की मनियाच्ची जंक्शन रेलवे स्टेशन पर वंचीनाथन ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। [11] वंचीनाथन एक गुप्त सोसायटी के सदस्य थे। जाँच के बाद पता चला कि वंचिनाथन ने एसएसएनसी के दमन के लिए कलेक्टर ऐश को जिम्मेदार माना था। [11]

तमिलनाडु में चिदम्बरम पिल्लै को "कपाल्लोत्य्य तमिलन" कहा जाता है। इसका अर्थ है "जलयान चलाने वाले तमिल"। [14] स्वतन्त्रता संग्राम में उनके योगदान की याद में भारत सरकार ने तूतीकोरीन पोर्ट ट्रस्ट का नाम बदलकर "वी ओ चिदम्बरम पिल्लै पोर्ट ट्रस्ट" कर दिया।

संदर्भ[संपादित करें]

  1. Manian, Ilasai (20 October 2012). "Swadeshi ship on the blue waters of Tuticorin". अभिगमन तिथि 17 August 2014.
  2. J, Arockiaraj (25 December 2011). "VOC's descendants found in dire straits". Madurai. TNN. अभिगमन तिथि 17 August 2014.
  3. R.N.Sampath; Pe. Su. Mani (30 August 2017). V.O.Chidambaram Pillai. Publications Division Ministry of Information & Broadcasting. पपृ॰ 50–55. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-230-2557-5.
  4. R.N.Sampath; Pe. Su. Mani (30 August 2017). V.O.Chidambaram Pillai. Publications Division Ministry of Information & Broadcasting. पृ॰ 112. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-230-2557-5.
  5. Indian Navy (1989). Maritime Heritage of India. Notion Press. पृ॰ 38. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-93-5206-917-0.
  6. "First call to 'make in India' came from Bharati in 1909". Times of India Blog. 12 September 2016.
  7. "Doyen of Swadeshi shipping". The Hindu. 2001-09-22. मूल से 2002-02-28 को पुरालेखित.
  8. Sunil Khilnani (25 February 2016). Incarnations: India in 50 Lives. Penguin Books Limited. पृ॰ 251. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-241-20823-6.
  9. Augustine, Seline (22 November 2018). "Unsung hero". The Hindu.
  10. "How Indians fought back on high seas". Times of India Blog. 2 November 2015.
  11. Venkatachalapathy, A.R. (September 2009). "An Irish link". Frontline. 26 (19).[मृत कड़ियाँ]
  12. S, Mohamed Imranullah (7 July 2014). "Remembering July 7, 1908, the judgement day". The Hindu.
  13. "This Fiery Freedom Fighter From Tamil Nadu Challenged the British Raj on the Seas!". The Better India. 2 August 2018.
  14. Prosperous Nation Building Through Shipbuilding. KW Publishers Pvt Ltd. 15 March 2013. पृ॰ 39. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-93-85714-81-8.