सूती साड़ी

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सूती साड़ी पतले सूती यार्न से बुनाई गई एक कपड़े का टुकड़ा है जिस्की लंबाई साडे-चार से आठ मीटर और चौड़ाई में एक मीटर तक होती है। यह कपड़ा भारतीय महिलाऍ अलग अलग तरीकों से शरीर के चारों ओर लपेटती है। साड़ी शरीर के एक ओर से लेकर कमर के चारों ओर लपेट कर, दूसरे ढीले ओर को कंधे पर आराम से छोड दिया जाता है या फिर सामने कमर के एक तरफ घुसाया जाता है।[1][2] सूती साड़ी दुनिया भर में महिलाऍ इच्छा से इन्हें पहनती है क्योंकि ये उन्के खूबसूरती को बढाती हैं।

व्युत्पत्ती[संपादित करें]

सूती साड़ी सबसे पुरानी परिधान है जिसने अपना रूप नही बदला और जो आज भी बहुत प्रचलित है। माना जाता है कि इसकी उत्पत्ति 3000 ईसा पूर्व और बाद में मेसोपोटामिया सभ्यता के दौरान हुई जब कपास की खेती और बुनाई की कला विकसित हुई थी। किसान होने के नाते वैदिक आर्यों ने प्राथमिक रूप से कपास की खेती की और अपने प्रवास के दौरान दुनिया भर में फैला दिया।[3] खुदाई के दौरान कुछ मलमल और कपास के टुकड़े हड़प्पा शहर में पाए गये थे जो उस समय भी कपास के अस्तित्व को साबित करता है। कपड़ों की इस शैली को सुमेर के निवासी, अश्शूरी, कसदियों और फारसियों ने भी अभ्यास किया।[4] आर्यों ने उत्तरी और दक्षिणी भारत की यात्रा की और शरीर के चारों ओर एक साधारण कपड़े को पहने की इस शैली को फैला दिया। इस सरल सूती कपड़े कि शैलि को विश्व प्रसिद्ध सूती साड़ी का अग्रदूत माना जाता है।

सूती साड़ियों के प्रकार[संपादित करें]

चाहे वह किसी क्षेत्र या राज्य के हैं उनकी सादगी, सुंदरता और आरामदायक गुणों के कारण सूती साड़ी सबसे अधिक महिलाओं के ईष्ट प्रिय रहे हैं।[1] देश में लंबे समय तक गर्मियों के महीनों के कारण वे अच्छे पोशाक के रूप में अधिक्तर उपयोगित रहे हैं। उनकी लोकप्रियता और उपयोगता बडी। समय के दौरान, सूती साड़ी के निर्माण में सुधार हुआ और आज यह विभिन्न प्रकार से बाजार में उपलब्ध हैं, जैसे: [5][2]

  • खादी: मोटे खादी सामग्री से बनी साड़ियां जिन्हे आज पूरे देश कि महिलाओं ने से स्वीकार कर लिया है।
  • टन्ट (बंगाल की साड़ी): यह व्यापक रूप से अपनी कुरकुरा बनावट के लिए महिलाओं द्वारा इस्तेमाल की जाती है जो आज बाजार में विभिन्न डिजाइनों मे उपलब्द है।
  • ढाकाइ: बांग्लादेश में उद्भूत, इस प्रकार कि कढ़ाई के कपडे कोलकत्ता में बनाए गये और साधारण रूप से ढाकाइ साड़ी और झांदनी ढाकाइ साड़ी के रूप मे बेची जाती है जो सुनहरे रंग कि कढ़ाई से रूपन्तिथ हैं।
  • लखनवी चिकन: लखनऊ में आधारित, इस तरह कि छिद्रित कढ़ाई है जो विषम रंगों के साथ की जाती है।
  • साबल्पुरि: ओडिशा में निर्मित, यह एक आकर्षक 'पल्लू' है जो विस्तृत कढ़ाई में डिजाइन किया गया है।
  • चंदेरी: इसका एक लंबा इतिहास है और यह वैदिक काल से ही प्रचलित है। इसमें बहुत से जरी का काम किया गया है और प्रदर्शन में राजसीय है।
  • जाम्दनी: ये कपास सुनहरी कढ़ाई साड़ियां हैं जो ज्यादातर उनके जटिल डिजाइन और रंग के लिए जानी जाती है।

लोकप्रियता[संपादित करें]

इन कपड़ों की स्वीकार्यता घर-घर से विवाह और पार्टियों में फैला हुआ है| भारत भर में कई फिल्म अभिनेत्रियों द्वारा पहने जाते हैं।[6]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "साड़ी कहानी - साड़ी गैलरी से साड़ी विश्वकोश". साड़ी.गैलरी. मूल से 24 मई 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि ९ जुलाई २०१४.
  2. "सूती साड़ी - उत्पत्ति और विकास". फाइबर२फैशन.कॉम. मूल से 31 जनवरी 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १६ मार्च २०१०.
  3. "साड़ी के मूल". इसंस्कृति .कॉम. मूल से 5 जुलाई 2015 को पुरालेखित.
  4. "सूती साड़ी - भारत के जादुई बुनाई". मेट्रोमेला.कॉम. मूल से 22 मई 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि ९ अक्टूबर २०१३.
  5. "सूती साड़ियों के प्रकार". शॉपिंग .रेडिफ .कॉम. मूल से 17 दिसंबर 2016 को पुरालेखित.
  6. "साड़ी". इनसाइक्लोपीडिया .कॉम. मूल से 17 जून 2015 को पुरालेखित.