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इस्लाम

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इस्लामिक स्वर्ण युग[संपादित करें]

प्रस्ताव[संपादित करें]

अब्बासियों के राज में इसलाम का स्वर्ण युग शुरु हुआ।अब्बासि खलीफा ज्ञान को बहुत महत्व देते थे। मुस्लिम दुनिया बहुत तेजी से विश्व का बौद्धिक केन्द्र बनने लगी। कई विव्दानों ने प्राचीन युनान ,भारत ,चीन और फारसी सभ्यताओं की साहित्य, दर्शनशास्त्र, विज्ञान , गणित इत्यादी से संबंधित पुस्तकों का अध्ययन किया और उनका अरबी में अनुवाद किया। विशेषज्ञों का मानना है कि इस के कारण बहुत बडा ज्ञानकोश इतिहास के पन्नों में खोने से रह गया। मुस्लिम विव्दानों ने सिर्फ अनुवाद ही नहीं किया। उन्हों ने इन सभी विषयों में अपनी छाप भी छोडी।

इतीहास[संपादित करें]

चिकित्सा विज्ञान में शरीर रचना और रोगों से संबंधित कई नई खोजें हूई जैसे कि खसरा और चेचक के बीच में जो फर्क है उसे समझा गया। इब्ने सीना (९८०-१०३७) ने चिकित्सा विज्ञान से संबंधित कई पुस्तकें लिखी जो की आगे जा कर आधुनिक चिकित्सा का पिता भी कहा जाता है। इसी तरह से अल हैथाम को प्रकाशिकी विज्ञान का पिता और अबु मूसा जबीर को रसायन शास्त्र का पिता भी कहा जाता है। अल ख्वारिज्मी की किताब किताब-अल-जबर-वल-मुकाबला से ही बीजगणित को उसका अंग्रेजी नाम मिला। अल ख्वारिज्मी को बिजगणित की पिता कहा जाता है।

इस्लामी दर्शनशास्त्र में प्राचीन युनानी सभ्यता के दर्शनशास्त्र को इस्लामी रंग से विकसित किया गया। इब्ने सीना ने नवप्लेटोवाद,अरस्तुवाद, और इस्लामी धर्मशास्त्र को जोड कर सिद्धांतों की एक नई प्रणाली की रचना की। इससे दर्शनशास्त्र में एक नई लहर पैदा हुई जिसे इबनसीनावाद कहते हैं। इसी तरह इबन रशुद ने अरस्तू के सिद्धांतों को इस्लामी सिद्धांतों से जोड कर इबनरशुवाद को जन्म दिया । द्वंद्ववाद की मदद से इस्लामी ध्रर्मशास्त्र का अध्यान करने की कला को विकसित किया गया। इसे कलाम कहते हैं । मुहम्म्द साहब के उद्धरण,गतिविधियां इत्यादी के मतलब खोजना और उनसे कानून बनाना स्वयँ एक विषय बन गया। सुन्नी इसलाम में इससे विव्दानों के बीच मतभेद हुआ और सुन्नी इस्लाम कानूनी मामलों में ४ हिस्सों में बट गया।

राजनैतिक तौर पर अब्बासी सम्राजया धीरे धीरे कमजोर पडता गया। अफ्रीका में कई मुस्लिम प्रदेशों ने ८५० तक अपने आप को लगभग स्वतंत्र कर लिया। ईरान में भी यही हाल हो गया। सिर्फ कहने को यह प्रदेश अब्बसियों के अधीन थे। मह्मूद गजनी (९७१-१०३०) ने अपने आप को तो सुल्तान भी घोषित कर दिया। सल्जूक तुर्को ने अब्बासियों की सेना शक्ति नष्ट करने में अहम भूमिका निभाई । उन्होंने मध्य एशिया और ईरान के कई प्रदेशों पर राज किया। हालांकि यह सभी राज्य आपस में युद्ध भी करते थे पर एक ही इस्लामी संस्कृति होने के काराण आम लोगों में बुनियादी संपर्क अभी भी नहीं टूटा था। इस का कृषिविज्ञान पर बहुत असर पडा। कई फसलों का नई जगह ले जाकर बोया गया। यह मुस्लिम कृषि क्रांती कहलाती है।

इस्लामवाद का विभ्राम[संपादित करें]

इस्लामवाद के विकास में मिस्त्र के विश्वविद्यालय अल-अजहर ने काफी योगदान दिया। काफिर,फताव,जिहाद,शैतान,जिन,दारुल-इस्लाम जैसी शब्दावाली प्रचालन में आई। महिलाओं पर तमाम तरह के प्रतिबन्ध लगने लगे। अल-अजहर और अन्य अरब विश्वविधालयों से पडकर निकले अधकचरे 'विद्वानों'ने इस्लाम को ऐसा रूप दे दिया जो अपने यहाँ के लोकतन्त्र और मानवाधिकारों को रौंदते हुए पश्चिम व ईसाइयत से टकराने लगा।

प्रसंग[संपादित करें]

https://hi.wikipedia.org https://books.google.co.in https://www.islamreligion.com/