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प्रतिलेखन प्रक्रिया का सारांश

प्रतिलेखन[संपादित करें]

हमारा देह एक अतुल्य वस्तु है जो अपने कामकाज के लिए अनेक प्रोटीन, कार्बोहाईड्रेट, विटामिन, खनिज पदार्थ और एंजाइमों का प्रयोग करता है। प्रोटीन का गेहमारे तन में बहुमूल्य भूमिका है। प्रोटीन के निर्माण के लिए आरएनए की आवश्यकता होती है। डीएनए को टेम्प्लेट के रूप में प्रयोग करके आरएनए का निर्माण किया जाता है। इस के लिए डीएनए पर विशिष्ट अनुक्रम पाए जाते हैं। इस प्रक्रिया को प्रतिलेखन (ट्रांस्क्रिप्शन) कहते हैं। प्रतिलेखन की प्रक्रिया जीन अभिव्यक्ति में पहला अंश है। डीएनए और आरएनए, दोनों ही न्यूक्लिक एसिड हैं जो प्रतिलेखन में क्रमश:टेम्प्लेट बनते और उत्पादित होते हैं। इस प्रक्रिया में आरएनए पोलिमरेज़ नामक एंजाइम डीएनए टेम्प्लेट का प्रयोग कर नया आरएनए बनाता है। डीएनए (डीऑक्सीराइबो न्यूक्लिक अम्ल) का एक अणु चार अलग-अलग रास वस्तुओं से बना होता है जिन्हें न्यूक्लियोटाइड कहते है। इन चार न्यूक्लियोटाइडों को एडेनिन, ग्वानीन, थाइमीन और साइटोसीन कहा जाता है। आरएनए(राइबोज़ न्यूक्लिक अम्ल) का एक अणु डीएनए से सिर्फ एक ही तर पर अलग है कि जहां- जहां डीएनए में थाइमीन नामक न्यूक्लियोटाइड था, वहां- वहां यूरासिल नामक न्यूक्लियोटाइड मौजूग होता है। प्रतिलेखन के द्वारा बना यह प्रतिलेख एम-आरएनए है जो कोशिका के नाभिक में बनता है। अत: प्रतिलेखन की प्रक्रिया कोशिका के नाभिक में घटित होती है।[1]

आरएनए पोलिमरेज़[संपादित करें]

प्रतिलेखन की प्रक्रिया आरएनए पोलिमरेज़ नामक एंजाइम द्वारा समाप्त होता है जो डीएनए टेम्प्लेट का प्रयोग कर नया आरएनए बनाता है।[2] आरएनए पोलिमरेज़ केन्द्रित कोशिकाओं में तीन प्रकार के होते हैं- आरएनए पोलिमरेज़ १- आर- आरएनए की संरचना करता है जो राईबोसोम का मुख्य अंग बनता है। राईबोसोम सजीव कोशिका के कोशिका द्रव में स्थित बहुत ही सूक्ष्म कण हैं, जिनकी प्रोटीनों के संश्लेषण में महत्त्वपूर्ण भूमिका है।[3] आरएनए पोलिमरेज़ २- आरएनए पोलिमरेज़ २ एम- आरएनए की संरचना करता है, जो प्रोटीन बनाने के लिए ज़रूरी होता है। आरएनए पोलिमरेज़ ३- आरएनए पोलिमरेज़ ३ टी- आरएनए की उत्पत्ति के लिए ज़रूरी है। आरएनए पोलिमरेज़ ४ और ५ केवल पेड़- पौधों में मौजूद होता है और वह अन्य आरएनए की उत्पत्ति में वेशेष भूमिका नेभाता है।

प्रतिलेखन इकाई[संपादित करें]

प्रतिलेखन इकाई डीएनए के उस खंड को कहते हैं जिसके प्रतिलेखन से केवल एक आरएनए का निर्माण होता है। प्रतिलेखन इकाई के तीन भाग होते हैं – प्रारंभन स्थल, समापक स्थल तथा संरचनात्मक जीन। संरचनात्मक जीन डीएनए का वह भाग है जो प्रोटीन को बनाने के लिए जरूरी जानकारी रखता है। डीएनए का वह क्षेत्र जहां से प्रतिलेखन की प्रक्रिया प्रारंभ होती है, उसे प्रारंभन स्थल कहते हैं। प्रारंभन स्थल के पहले प्रमोटर स्थल होता है। प्रमोटर स्थल को उन्नायक भी कहा जाता है। इस स्थल में २० से २०० न्यूक्लियोटाइड पाए जाते हैं। प्रारंभिक स्थल तथा समापक स्थल के बीच संरचनात्मक जीन होती है। इस संरचनात्मक जीन के 5’- 3’ सूत्र को नॉन-टेम्पलेट सूत्र तथा 3’- 5’ सूत्र को टेम्पलेट सूत्र कहते हैं। टेम्पलेट सूत्र के अनुक्रम का उपयोग करके उसके पूरक अनुक्रम वाला आरएनए बनता है। टेम्पलेट सूत्र को नॉन कोडिंग रज्जुक भी कहते हैं, तथा नॉन-टेम्पलेट सूत्र को कोडिंग रज्जुक भी कहते है।[4]

प्रतिलेखन की प्रक्रिया[संपादित करें]

प्रतिलेखन की प्रक्रिया तीन भागों में संपन्न होता है-प्रारंभन(इनीशिएशन), दीर्घाकरण (इलांगेशन) और समाप्ति (टर्मिनेशन)। [5]

प्रारंभन (इनीशिएशन)[संपादित करें]

पहले होने वाले प्रक्रियाओं को प्रारंभन(इनीशिएशन) कहा जाता है। आरएनए पोलिमरेज़ और कुछ प्रतिलेखन तत्व डीएनए में मौजूद प्राईमर नामक भाग में संलग्न हो जाते हैं। आरएनए पोलिमरेज़ 'प्रतिलेखन बुलबुला' बनाता है। यह बुलबुला डीएनए के दोनों सूत्रों के बीच उदजन बंधनों के ह्टाने से बनता है। यही वह स्थान है जहां प्रतिलेखन की प्रक्रिया घटित होती है। प्रतिलेखन तत्वों की मदद से आरएनए पोलिमरेज़ पहले कुछ न्यूक्लियोटाइड जोड़कर आरएनए का एक छोटा सा सूत्र बनाता है। जीन में प्रमोटर स्थल टेम्पलेट सूत्र के 5’ सिरे की ओर पाया जाता है। अकेन्द्रिक कोशिकओं में डीएनए के प्रमोटर स्थल की पहचान करके सिग्मा तत्व उस से जुड़ जाता है और आरएनए पोलीमरेज़ एंजाइम डीएनए से जुड़कर उसकी कुंडलियों के नाइट्रोजन क्षार के मध्य पाए जाने वाले उदजन बंधन को तोड़ने का कार्य करता है। केन्द्रिक कोशिकओं में डीएनए के प्रमोटर स्थल की पहचान करके अन्य प्रारंभन तत्व उस से जुड़ जाता है और प्रारंभन दोनों कोशिकाओं में शुरु हो जाती है।

प्रारंभन प्रक्रिया

दीर्घाकरण (इलांगेशन)[संपादित करें]

अगले कुछ प्रक्रियाओं को दीर्घाकरण (इलांगेशन) कहा जाता है। आरएनए पोलिमरेज़ डीएनए को टेम्प्लेट के रूप में उपयोग करके, आरएनए के छोटा से सूत्र में और न्यूक्लियोटाइड जोड़ता जाता है। यह आरएनए के न्यूक्लियोटाइड जोड़ने की प्रक्रिया इस आधार पर होती है कि- जो न्यूक्लियोटाइड अनुक्रम डीएनए के टेम्प्लेट सूत्र में होता हैं, आरएनए का सूत्र उसी टेम्प्लेट डीएनए के साथ जुड़े दूसरे डीएनए सूत्र के समान होता है। अंतर केवल इतना है, कि आरएनए में थाइमीन के स्थान पर यूरासिल होता है। आरएनए पोलिमरेज़ जैसे-जैसे नए न्यूक्लियोटाइड जोड़ता है, वैसे-वैसे 'प्रतिलेखन बुलबुला' आगे बढ़ता है। 'प्रतिलेखन बुलबुला' के पीछे फिर से उदजन बंधन बन जाते है और डीएनए के दोनों सूत्र जुड़ जाते है, और आगे, उदजन बंधन तोड़े जाते हैं। इस तरह एम-आरएनए के छोटे से सूत्र की बढ़ती होती जाती है। जब दोनों सूत्र अलग हो जाते हैं, तो आरएनए पोलीमरेज़ डीएनए के प्रतिअर्थ सूत्र का उपयोग करके राइबोन्यूक्लियोटाइड ट्राई फास्फेट जोड़कर एक पूरक आरएनए सूत्र का संश्लेषण किया जाता है। राइबोन्यूक्लियोटाइड ट्राई फॉस्फेट चार प्रकार के होते है –यूरिडीनट्राईफॉस्फेट, ग्वानोसीनट्राईफॉस्फेट, साइटोसीनट्राईफॉस्फेट और एडिनिनट्राईफॉस्फेट। आरएनए पोलीमरेज़ राइबोन्यूक्लियोटाइड ट्राई फॉस्फेट का उपयोग करके उनको मोनो फॉस्फेट के रूप में जोड़ता है।

दीर्घाकरण प्रक्रिया

समाप्ति (टर्मिनेशन)[संपादित करें]

अंत में आने वाले प्रक्रियाओं को समाप्ति (टर्मिनेशन) कहते है। अकेंद्रित कोशिकओं में समाप्ति दो प्रकार से होती है- रो-अधीन और रो-स्वाधीन स्माप्ति। आरएनए पोलीमरेज़ जब जीन के समापन क्षेत्र तक पहुंचता है, तो रो तत्व डीएनए के सूत्र से जुड़ता है तथा डीएनए, आरएनए व आरएनए पोलिमरेज़ को पृथक कर देता है। इस प्रकार एक नए आरएनए का निर्माण होता है। इस तरह की समाप्ति को रो-अधीन समाप्ति कहते हैं। रो-स्वाधीन समाप्ति तब होती है जब पोलिमरेज़ ग्वानोसिन और साइटोसीन संपन्न अनुक्रम पाश के संपर्क में आता है जिसके आसन्न यूरिडीन की कतार होती है। केंद्रित कोशिकओं में समाप्ति तब होती है जब आरएनए के 3’ भाग में एडिनोसाइन का ढेर जोड़ा जाता है और आरएनए का अनुभेदन हो जाता है।

समाप्ति प्रक्रिया

प्रतिलेखन अनुसरण प्रक्रिया[संपादित करें]

प्रतिलेखन के तीन अंग जब समाप्त होते हैं, नया बना हुआ प्री-एम-आरएनए कोशिका केन्द्र से बाहर चला जाता है और कोशिका द्रव्य में मौजूद राईबोसोम से जुड़ता है। इसके उपरान्त, एम-आरएनए अनुवाद प्रक्रिया में संलग्न होता है। यह प्रक्रिया अकेंद्रित कोशिकाओं में इतना ही सरल होता है। किंतु केंद्रित कोशिकाओं में प्रतिलेखन अनुसरण प्रक्रिया होते हैं। प्रतिलेखन अनुसरण प्रक्रिया में कोशिका केन्द्र से बाहर आया हुआ प्री-एम-आरएनए में कुछ बदलाव होते हैं, जैसे, को प्री-एम-आरएनए से हटाया जाता है और साथ में जुड़ जाते है। यह स्प्लाईसिंग कहलाता है।[6] स्प्लाईस हुआ प्री-एम-आरएनए के 5’ सिरे पर एक ग्वानोसीन आच्छादन और 3’ सिरे पर एडिनोसीन की लंबी रज्जुक जुड़ जाती है। अभी प्री-एम-आरएनए प्राढ़ एम-आरएनए कहलाता है और अनुवाद प्रक्रिया में संलग्न होता है।[7]

संदर्भ[संपादित करें]