सदस्य:Harsha2528/प्रयोगपृष्ठ

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मुद्रा और बैंकिंग[संपादित करें]

मुद्रा विनिमय का एक सर्वमन्य माध्यम है। ऐसी अर्थव्यवस्था, जो व्यक्ति विशेष से बनी हो, उसमे वस्तुओ का कोई विनिमय नहीं हो सकता और इसलिए वहाँ मुद्रा की कोइ भुमिका नहीं होती है। एक से अधिक अर्थिक एजेंट बाज़ार के माध्यम से स्वयंव्यवहार शुरु करते है, मुद्रा विनिमय को सुविधाजनक बनाने का एक महत्वपूर्ण साधन बन जाती है। मुद्रा की मुख्य भुमिका विनिमय को सुगम बनाना है, किन्तु यह अन्य उधेश्यों की पुर्ति मे भी सहायक होता है। आधुनिक अर्थव्यवस्था मे मुद्रा के निम्नलिखित महत्वपूर्ण कार्य है।

मुद्रा के कार्य[संपादित करें]

  • मुद्रा की सर्वप्रथम भुमिका यह है कि यह विनिमय के माध्यम के रूप मे कार्य करती होगी।
  • मुद्रा सुविधाजनक लिखा की एक इकाई के रूप मे कार्य करती है।
  • मुद्रा व्यक्तियो के लिए मुल्य सन्चय का काम करती है।

मुद्रा की माँग[संपादित करें]

  • स्वयंव्यवहार प्रयोजन
  • सट्टा उधेश्य प्रायोजन

मुद्रा की पूर्ति[संपादित करें]

आधुनिक अर्थव्यवस्था मे मुद्रा के अन्तर्गत मुख्य रूप से देश के मौद्रिक प्राधिकरण द्वारा जारी करेंसी नोट और सिक्के आते है। भारत में करेंसी नोट रिज़र्व बैंक जारी करता है जो की भारत का मौद्रिक प्राधिकरण है। किंतु सिक्के भारत सरकार द्वारा जारी किए जाते है। करेंसी नोट और सिक्के के अतिरिक्त, व्यवासायिक बैंको में लोगो द्वारा जमा किए बचत खाते को भी और चालू खाते को भी मुद्रा कहा जाता है, क्योंकि इन खातो से आहरित चेकों का उपयोग स्वयंव्यवहार के लिए किया जाता है। एसी जमा को माँग जमा कहते है, जो खाताधारी की माँग पर बैंक द्वारा भुगतान योग्य होता है। अन्य जमा, जैसे आवधि जमा की परिपक्वता की आवधि निश्चित होती है और इसे आवधिक जमा कहते है।

वैध परिभाषाएँ: संकुचित और व्यापक मुद्रा[संपादित करें]

मुद्रा की पूर्ति एक स्टॉक परिवर्तक होती है। एक निश्चित समय में लोगो में संचरण करने वाली कुल मुद्रा को मुद्रा की पूर्ति कहते है। भारतीय रिज़र्व बैंक मुद्रा की पूर्ति के वैकल्पिक मपों को चार रूपों में प्रकाशित करता है, नामत: M1, M2,M3 और M4। ये सभी निम्नलिखित रूपों से परिभाषित किए जाते है -

 M1 = CU + DD
 M2 = M1 + डाकघर बचत बैंको में बचत जमाएँ 
 M3 = M1 + व्यावसायिक बैंको की निवल आवधिक जमाएँ 
 M4 = M3 + डाकघर बचत संस्थाओं में कुल जमाएँ 

यहाँ, CU लोगो द्वया रखी गई करेंसी है, और DD व्यावसायिक बैंको द्वारा रखी गई निवल माँग जमा है। M1 और M2 संकुचित मुद्रा कहलाती है। M3 और M4 को व्यापक मुद्रा कहते है।

भारतीय रिज़र्व बैंक का थप्पा

मुद्रा नीति के उपकरण और भारतीय रिज़र्व बैंक[संपादित करें]

अर्थव्यवस्था में मुद्रा में स्टॉक का कुल परिमाण उच्च शक्तिशाली मुद्रा के परिमाण से बहुत अधिक होता है। व्यावसायिक बैंक अपनी का एक अंश क़र्ज़ अथवा निवेश साख के रूप में प्रदान करके मुद्रा के इसी अतिरिक्त मात्रा का सृजन करता है।

किसी भी आर्थिक संकट की स्थिति में भारतीय रिज़र्व बैंक व्यावसायिक बैंको का जमानतदार होता है और वह इन बैंको की संपन्नता निश्चित करने के लिए ऋण प्रदान करता है। मुद्रा प्राधिकरण की इस भूमिका को अंतिम ऋणदाता के रूप में जाना जाता है।

भारतीय रिज़र्व बैंक भारत सरकार और राज्य सरकार के बैंकर के रूप में भी काम करता है। सरकार द्वारा बजटीय घाटे की पूर्ति के लए वित्त प्रबंध को केंद्रीय बैंक ऋणग्रहण के मध्यम से घाटे का वित्त प्रबंध कहते है।

अर्थव्यवस्था के लिए सर्वाधिक मौद्रिक नीति का संचालन करने के लए भारतीय रिज़र्व बैंक एक स्वतंत्र प्राधिकर्ण है। वह अर्थव्यवस्था में उच्च शक्तिशाली मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि अथवा कमी करता है तथा व्यवसायिक बैंको के निवेशकों को क़र्ज़ अथवा साख प्रडम करने के लए प्रोत्साहित या निरूत्साहित करता है। भारतीय रिज़र्व बैंक मोद्रिक नीति के संचालन के लए निम्नलिखित उपकरणों का प्रयोग करता है-

  • खुली बाज़ार करवाई
  • बैंक दर नीति
  • आरक्षित आवश्यकताओं में अंतर करके

मुद्रा पूर्ति एक बहुत ही महत्वपूर्ण समष्टि अर्थशास्त्रीय परिवर्त है। किसी अर्थव्यवस्था के निर्गत, कीमत स्तर और ब्याज की साम्य दर की मूल्यों पर इसके कुल प्रभाव का बहुत महत्व है।

[1]

सन्दर्भ[संपादित करें]

साँचा:टिप्पणिसूची

  1. http://www.examrace.com/NCERT-Books/Economics/NCERT-Hindi-Class-12-Economics-Part-1.html#pdfsection_6ac783a5-page_45-locus_0