शंभूदान गढ़वी
शंभूदान गढ़वी गुजरात राज्य के कच्छ तालुका से एक पूर्व क्लर्क और भूविज्ञानी हैं जिन्होंने 1960 के दशक की शुरुआत में धोलावीरा की सिंधु घाटी सभ्यता पुरातत्व स्थल की खोज की थी। [1] [2]
धोलावीरा की खोज
[संपादित करें]1960 के दशक में कच्छ के अकाल के दौरान , शंभूदान गढ़वी कोटड़ा(धोलावीरा स्थल से 1 किमी दूर) में अकाल राहत कार्य की देखरेख कर रहे थे जब उन्होंने जानवरों के चित्र के साथ हड़प्पा की मुहरें पाईं। [3] [4] [5] [6]
मानसून के पानी को इकट्ठा करने के लिए एक छोटे से बांध की खुदाई का निरीक्षण करते हुए, उन्होंने कई कलाकृतियों की खोज की; उनमें से प्रमुख सिंधु घाटी सभयता के मुहरों के टुकड़े थे। उन्होंने पहचाना कि यह मुहरें हड़प्पा सभ्यता की थीं, उन्होने इनकी तुलना उन चित्रों से की जो उन्हें अपने बेटे की गुजरात सरकार द्वारा जारी इतिहास की पाठ्यपुस्तक में मिले थे। बाद में उन्होंने और मुहरों की खोज की और कई कलाकृतियां-सजावटी चीनी मिट्टी की चीज़ें, कारेलियन मोतियों के टुकड़े और धातु की वस्तुओं को एकत्र किया। [2] [7]
शंभूदान ने अपने घर में प्राचीन अवशेषों को संरक्षित किया और कच्छ विश्वविद्यालय में कई अवशेष भी भेजे। उन्होंने धोलावीरा साइट से कुछ मोतियों, मिट्टी के बर्तनों और कलाकृतियों को एकत्र किया और भुज में कच्छ संग्रहालय के क्यूरेटर के पास गए और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (पुरातत्व विभाग) को इस पुरातत्व स्थल की सूचना दी। [1] [2]
गढ़वी ने सरकार से आधिकारिक सहयोग हासिल करने के लिए भुज के 'कच्छमित्र' नामक अखबार में इस खोज की खबर भी प्रकाशित कारवाई। [3]
उत्खनन
[संपादित करें]शंभूदान गढ़वी के निरंतर प्रयासों के कारण अंततः 1990 में उत्खनन कार्य शुरू हुआ जो 2005 तक चला। भारत सरकार ने कोटड़ा में शोध कार्य शुरू किया। रवींद्र सिंह बिष्ट की देखरेख में, लगभग तीन वर्षों में, उन्हें एक शहर मिला। इससे एक ऐसे शहर का खुलासा हुया जिसमें एक गढ़, एक मध्यवर्ती शहर, एक निचला शहर, ताजे पानी के जलाशय, भूमिगत सीवेज पाइप, मनके बनाने की कार्यशालाएं, तांबा स्मेल्टर आदि थे। [8] [5] [3] [9]
आर.एस. बिष्ट 1980 के दशक के मध्य में साइट का दौरा करने वाले पहले एएसआई अधिकारी थे। उस समय तक, गढ़वी के पास अपने घर के पीछे का स्थान कलाकृतियों, मिट्टी के पात्र और साइट से संरचनात्मक वस्तुओं से लदा था। 1980 के दशक के उत्तरार्ध में गढ़वी आरएस बिष्ट के साथ एक महत्वपूर्ण सहयोगी रहे, जब खादिर द्वीप, जहां धोलावीरा स्थित है, की बस्ती का नक्शा बनाने के लिए क्षेत्र में व्यापक अन्वेषण कार्य चल रहा था। शंभूदान ने अन्य गांवों के लोगों से भी संपर्क किया ताकि एएसआई को और साइटों की खोज में मदद मिल सके। 1990 में एक बार उत्खनन कार्य शुरू होने के बाद, गढ़वी ने एएसआई को शिविर स्थापित करने और खुदाई के पहले सत्र के लिए धोलावीरा गाँव से मजदूरों की भर्ती करने में भी सहायता की। [2] [10]
मान्यता
[संपादित करें]धोलावीरा की खोज पर प्रकाश डालने के शंभूदान के प्रयासों के बावजूद, राज्य सरकार और एएसआई द्वारा उनके कार्य और प्रयासों को मान्यता प्रदान नहीं की गई। धोलावीरा की खोज का श्रेय इनके बजाय जे.पी. जोशी को दे दिया गया। [2] [1]
संदर्भ
[संपादित करें]- ↑ अ आ इ Arora, Namit (2021-01-18). Indians: A Brief History of A Civilization (अंग्रेज़ी में). Penguin Random House India Private Limited. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-93-5305-287-4.
Most guides also resent that all credit for the discovery of Dholavira went to J.P. Joshi of the ASI, with no mention at all of two villagers, Shambhudan Gadhavi, master clerk and amateur geologist, and Velubha Sodha, former sarpanch, who had earlier found the site
- ↑ अ आ इ ई उ Avikunthak, Ashish (2021-10-31). Bureaucratic Archaeology: State, Science and Past in Postcolonial India (अंग्रेज़ी में). Cambridge University Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-316-51239-5.
The official ASI marker—the painted iron board erected at the entrance of the Dholavira site—erased the local narrative of discovery and officially announced: "The Harappan site at Dholavira has been discovered by Shri Jagat Pati Joshi in 1967–1968".
- ↑ अ आ इ "Kutchhi Family Directory". asanjokutch.com. अभिगमन तिथि 2022-01-25.
when famine stroked on Kutch, the relief work was going on at Kotda half km. from Dholavira. Clark Shambudan Gadhavi found some seals of the shape of animals. He informed the museum of Kutch that is at Bhuj but didn't found much encouragement, so he published the news in 'Kutchmitra' at Bhuj. In 1990, the government of India started research in Kotda.
- ↑ Vasa, Pulin. "Nani Rayan | Read jain books online at Jainebooks.org". jainebooks.org (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2022-01-25.
- ↑ अ आ Bandyopadhyay, Brishti (2003-12-22). "5000 Years Old Quake-proof Town". Pitara Kids Network (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2022-01-25.
- ↑ "Crisscrossing Rann of Kutch and Rajasthan - Dholavira - Frozen In Time". मूल से 5 जून 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2022-01-25.
- ↑ Gopinath, P. Krishna (2017-07-15). "Ruins on the Tropic of Cancer". The Hindu (अंग्रेज़ी में). आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0971-751X. अभिगमन तिथि 2022-01-25.
- ↑ admin. "Sunday Story: Le village de Dholavira au Gujarat espère un renouveau grâce à l'étiquette du patrimoine mondial de l'UNESCO | AllInfo" (अंग्रेज़ी में). मूल से 25 जनवरी 2022 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2022-01-25.
- ↑ "Sunday Story: Gujarat's Dholavira village hopes for renewal via UNESCO world heritage tag". The Indian Express (अंग्रेज़ी में). 2021-09-05. अभिगमन तिथि 2022-01-25.
- ↑ "Excavations at Dholavifra 1989-2005 (RS Bisht, 2015) | PDF | Nature". Scribd (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2022-01-25.
How can I forget the untiring help and services of the villagers of Dholavira, Kharoda, Dungrani Vandh and Phapharani Vandh, in particular S/Shri Shambhudan, Ranmal Ahir, and Velubha Sodha!