राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ

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राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ
अदालतभारतीय उच्चतम न्यायालय
पूर्ण मामले का नामराष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ
फैसला किया15 अप्रैल 2014
उद्धरण(एस)2014 INSC 275
मामले की राय
ट्रांसजेंडर लोगों को तीसरे लिंग का दर्जा, संविधान के तहत सभी मौलिक अधिकार लागू, लिंग की आत्म-पहचान का अधिकार, और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश और नौकरियों में आरक्षण

राष्ट्रीय क़ानूनी सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ (2014) भारत के उच्चतम न्यायालय का एक ऐतिहासिक निर्णय है, जिसने ट्रांसजेंडर लोगों को ' तीसरा लिंग ' घोषित किया, पुष्टि की कि भारत के संविधान के तहत दिए गए मौलिक अधिकार उन पर समान रूप से लागू होंगे, और उन्हें पुरुष, महिला या तीसरे लिंग के रूप में अपने लिंग की आत्म-पहचान का अधिकार दिया।

इस फ़ैसले को भारत में लैंगिक समानता की दिशा में एक बड़े क़दम के रूप में देखा गया है। [1] [2] [3] [4] और तो और, अदालत ने यह भी माना कि क्योंकि ट्रांसजेंडर लोगों के साथ सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के रूप में बर्ताव किया जाता है, इसलिए उन्हें शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश और नौकरियों में आरक्षण दिया जाएगा।


याचिका के दोनों पक्ष[संपादित करें]

भारतीय राष्ट्रीय क़ानूनी सेवा प्राधिकरण (नालसा) प्राथमिक याचिकाकर्ता था। इसका गठन भारतीय समाज के वंचित वर्गों को निःशुल्क क़ानूनी सहायता सेवाएँ प्रदान करने के प्राथमिक उद्देश्य से किया गया था।[5] मामले में अन्य याचिकाकर्ता थे: पूज्य माता नसीब कौर जी महिला कल्याण सोसायटी, एक पंजीकृत सोसायटी और गैर सरकारी संगठन, और लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी, एक प्रसिद्ध हिजड़ा कार्यकर्ता। [6]

पीठ[संपादित करें]

मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच के सामने हुई, जिसमें जस्टिस केएस पणिक्कर राधाकृष्णन और जस्टिस अर्जन कुमार सीकरी थे। न्यायमूर्ति राधाकृष्णन ने कई शैक्षिक और सामाजिक संगठनों के लिए स्थायी वकील के रूप में काम किया था और उच्चतम न्यायालय में अपनी पदोन्नति से पहले केरल, जम्मू और कश्मीर और गुजरात के उच्च न्यायालयों में उन्होनें नियुक्तियाँ सँभाली थीं। [7] न्यायमूर्ति सीकरी ने संवैधानिक मामलों, श्रम और सेवा मामलों और मध्यस्थता मामलों में विशेषज्ञता के साथ दिल्ली में कानूनी प्रैक्टिस शुरू की थी। उच्चतम न्यायालय में उनकी पदोन्नति होने के पहले, उन्होंने दिल्ली उच्च न्यायालय और पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में नियुक्तियाँ सँभाली।

निर्णय[संपादित करें]

अदालत ने केंद्र और राज्य सरकारों को लिंग पहचान को क़ानूनी मान्यता देने का निर्देश दिया है, चाहे वह पुरुष हो, महिला हो या तीसरा लिंग (परलैंगिक) हो:

  • तीसरे लिंग (ट्रांसज़ेंडर/परलैंगिक व्यक्तियों) को भारतीय क़ानून में मान्यता प्राप्ति: तीसरे लिंग (परलैंगिक या ट्रांसज़ेंडर) को क़ानूनी और संवैधानिक मान्यता देते हुए, न्यायालय ने माना कि परलैंगिक व्यक्तियों को भी मौलिक अधिकार उसी तरह उपलब्ध हैं जैसे कि पुरुषों और महिलाओं को हैं। इसके अलावा, विवाह, गोद लेने, तलाक आदि जैसे फ़ौजदारी और सिविल क़ानूनों में परलैंगिक व्यक्तियों की गैर-मान्यता परलैंगिक व्यक्तियों के लिए भेदभावपूर्ण है।
  • पुरुष/महिला बाइनरी के भीतर संक्रमण करने वाले व्यक्तियों के लिए कानूनी मान्यता: मान्यता की वास्तविक प्रक्रिया कैसे होगी, इस पर न्यायालय केवल इतना कहते हैं कि वे 'जैविक परीक्षण' के विपरीत ' मनोवैज्ञानिक परीक्षण' का उपयोग करना पसंद करेंगे। वे यह भी कहते हैं कि सरकार द्वारा किसी के लिंग को बदलने की शर्त के रूप में लिंग परिवर्तन सर्जरी (एसआरएस) पर जोर देना क़ानूनी रूप से अवैध है।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता: केंद्र और राज्य सरकारों को अस्पतालों में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को चिकित्सा देखभाल प्रदान करने और उन्हें अलग सार्वजनिक शौचालय और अन्य सुविधाएं प्रदान करने के लिए उचित उपाय करने का निर्देश दिया है। इसके अलावा, उन्हें ट्रांसजेंडर लोगों के लिए अलग एचआईवी/सीरो-निगरानी उपाय संचालित करने का निर्देश दिया है।
  • सामाजिक-आर्थिक अधिकार: केंद्र और राज्य सरकारों से परलैंगिक समुदाय को विभिन्न सामाजिक कल्याण योजनाएँ प्रदान करने और समुदाय को सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के रूप में मानने के लिए कहा है। सरकारों से शैक्षणिक संस्थानों और सार्वजनिक नियुक्तियों में ट्रांसज़ेंडर व्यक्तियों के लिए आरक्षण बढ़ाने के लिए भी कहा गया है।
  • कलंक और सार्वजनिक जागरूकता: यह सबसे व्यापक दिशा-निर्देश हैं : केंद्र और राज्य सरकारों को ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को समाज में शामिल करने और अछूतों के रूप में उनके साथ होते बर्ताव को समाप्त करने में बेहतर मदद करने के लिए सार्वजनिक जागरूकता पैदा करने के लिए कदम उठाने के लिए कहा है; समाज में उनका सम्मान और स्थान पुनः प्राप्त करने के लिए उपाय करना; और भय, शर्म, लिंग डिस्फोरिया, सामाजिक दबाव, अवसाद, आत्महत्या की प्रवृत्ति और सामाजिक कलंक जैसी समस्याओं का गंभीरता से समाधान करने को कहा है।

न्यायालय का कहना है कि इन घोषणाओं को पर्लैंगिक/ट्रांसजेंडर व्यक्तियों से संबंधित मुद्दों पर सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट के साथ में पढ़ा जाना चाहिए। [8]

यह सभी देखें[संपादित करें]

संदर्भ[संपादित करें]

  1. "India recognises transgender people as third gender". The Guardian. 15 April 2014. अभिगमन तिथि 15 April 2014.
  2. McCoy, Terrence (15 April 2014). "India now recognizes transgender citizens as 'third gender'". Washington Post. अभिगमन तिथि 15 April 2014.
  3. "Supreme Court recognizes transgenders as 'third gender'". Times of India. 15 April 2014. अभिगमन तिथि 15 April 2014.
  4. Mark E. Wojcik, Male. Female. Other. India Requires Legal Recognition of a Third Gender, 43:4 International Law News 1 (2014)(American Bar Association Section of International Law).
  5. "About NALSA". NALSA. अभिगमन तिथि 14 January 2023.
  6. "Archived copy" (PDF). मूल (PDF) से 2014-05-27 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2014-07-11.सीएस1 रखरखाव: Archived copy as title (link)
  7. "Supreme Court of India - CJI & Sitting Judges". मूल से 2014-07-26 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2014-07-26.
  8. "Report of the Expert Committee on the Issues relating to Transgender Persons" (PDF). Ministry of Social Justice and Empowerment, Government of India. मूल (PDF) से 20 October 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 July 2014.

बाहरी संबंध[संपादित करें]