यूनाइटेड किंगडम का संविधान

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
यूनाइटेड किंगडम
की राजनीति और सरकार

पर एक श्रेणी का भाग
यूनाइटेड किंगडम प्रवेशद्वार

यूनाइटेड किंगडम का संविधान उन सभी कानूनों एवं सिद्धान्तों के समुच्चय को कहते हैं जिसके अन्तर्गत यूनाइटेड किंगडम का शासन चलता है। ब्रिटिश संविधान दुनिया का एक मात्र ऐसा संविधान है, जिसका निर्माण न तो किसी योजनानुसार हुआ है और न ही इसे कभी लेखबध्द किया गया है। ब्रिटिश संविधान एक लम्बे समय के ऐतिहासिक विकास का परिणाम है। ब्रिटिश संविधान वास्तव में एक विकासशील संविधान है। समय तथा परिस्थितियों ने इस  मे बहुत सी नई परम्पराएं डाल दी है। अन्य देशों के संविधान पूर्णतः लिखित रूप में हैं किन्तु यूके का कोई मूल संवैधानिक दस्तावेज (अर्थात संविधान) नहीं है। इसलिये प्रायः कहा जाता है कि यूके का संविधान अलिखित, अकोडित है। किन्तु 'अलिखित' शब्द प्रायः भ्रामक है क्योंकि ब्रितानी संविधान का अधिकांश भाग विभिन्न रूपों में लिखित रूप में है।

ब्रिटिश संविधान की विशेषताएं[संपादित करें]

ब्रिटिश संविधान को सभी ”संविधानों की जननी” कहा जाता है क्योंकि सबसे पुराने इस संविधान ने बाद के सभी संविधानों के लिए मार्गदर्शक का काम किया । वेध राजतंत्र वादी ब्रिटेन में ही आधुनिक विश्व की पहली प्रजातांत्रिक शासन प्रणाली अस्तित्व में आयी । कुलीनवाद से प्रेरित रहे ब्रिटेन में राजतंत्र के रहते हुए भी प्रजातांत्रिक संस्थाओं और प्रतिनिधिक शासन का विकास हुआ और अलिखित ब्रिटिश संविधान पर राजतंत्र, कुलीनतंत्र और जनतंत्र तीनों का असर आया ।

ब्रिटिश संविधान की विशेषताओं को इन संदर्भों में ही निम्नानुसार समझा जा सकता हैं:

1. अलिखित संविधान:

विश्व के विभिन्न प्रगतिशील देशों के संविधान जहां लिखित है, ब्रिटिश संविधान अलिखित है । यही नहीं वहां सरकारी काम काज के नियम आदि का भी अधिकांश भाग अलिखित है । वस्तुतः ब्रिटिश संविधान का विकास क्रमिक रूप से अन्य संस्थाओं के विकास के साथ हुआ और उसे कभी लेखबद्ध नहीं किया गया क्योंकि उसकी जरूरत उन्हें महसूस नहीं हुई ।

इसके पीछे मुख्य कारण उनकी व्यवहारिक और स्पष्ट सोच है । विधि के शासन का प्रतीक ब्रिटन बिना लिखित संविधान के इस प्रतीक को बनाये हुए है, यह विलक्षण विशेषता है । लेकिन यह भी एक तथ्य है कि लिखित न्यायिक निर्णयों, संसदीय अधिनियमों और शासनादेशों के रूप में संविधान का अंशतः लेखीकरण भी हो गया है । ऐसा संविधान को लिखित स्वरूप देने के उद्देश्य से नहीं हुआ है । यही कारण है कि ब्रिटिश संविधान एक अलिखित दस्तावेज ही है ।

2. परंपरागत रूप से क्रमिक विकास:

ब्रिटिश संविधान कोई एक दिन या एक वर्ष में एक स्थान पर बैठकर नहीं बनाया गया । इसका विकास पाँचवीं सदी से लेकर आज तक निरंतर रूप से हुआ और हो रहा है । इस संविधान के अधिकांश आधारभूत सिद्धांत या तर्क परंपराओं पर आधारित हैं ।

जे.एस.मिल ने इन परंपराओं को ”संविधान के अलिखित नीतिवचन” की संज्ञा दी है । यद्यपि ये परंपराएं न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय (लागू करने की बाध्यता) नहीं है तथापि वहाँ की शासन प्रणाली में मानवीय और पालनीय है । उनका महत्व इसी बात में है कि उनके बिना ब्रिटिश राज व्यवस्था की कल्पना नहीं की जा सकती ।

जैसे:

(1) ताज का मंत्रिमंडल के परामर्श से काम करना ।

(2) जन प्रतिनिधि सदन (हाउस आफ कामंस) के बहुमतधारी दल के नेता को ताज द्वारा प्रधानमत्री नियुक्त करना ।

(3) जन प्रतिनिधि सदन के प्रति मंत्रिमंडल का सामूहिक और वैयक्तिक/व्यक्तिगत उत्तरदायित्व ।

(4) संसदीय अधिनियमों को ताज द्वारा स्वीकृति ।

(5) प्रधानमंत्री की सलाह पर जनप्रतिनिधि सदन की ताज द्वारा समाप्ति ।

(6) शासन का जनता के प्रति जवाबदेह होना । अपनी पुस्तक ”थॉट्‌स ऑन द कंस्टीट्‌यूशन” में एल. एस. एमरी कहते हैं कि ”ब्रिटिश संविधान कानून, पूर्ववर्तिता तथा परंपरा का मिश्रण है ।”

3. सिद्धांत एवं व्यवहार में अंतर:

ब्रिटेन में संविधान के अलिखित सिद्धांत प्रचलित हैं लेकिन व्यवहार में कुछ भिन्नताएं नजर आती हैं ।

जैसे:

(i) ब्रिटेन विधि के शासन को अंतिम मानता है लेकिन वहां प्रशासनिक विधि का प्रचलन निरंतर बढ़ रहा है ।

(ii) वहाँ सिद्धांततः संसदीय प्रजातंत्र है लेकिन नाम मात्र की कार्यपालिका निर्वाचित नहीं वंशानुगत है ताज ।

मुनरो के अनुसार- ”ब्रिटिश संविधान की एक अद्‌भुत विशेषता यह है कि यह जैसा दिखता है वैसा है नहीं और जैसा है, वैसा दिखता नहीं ।”

4. संसदीय प्रजातंत्र:

प्रजातंत्र का संसदीय स्वरूप ब्रिटेन की देन है ।

ब्रिटिश संसदीय व्यवस्था में:

(i) दोहरी कार्यपालिका है- ताज के रूप में नाम मात्र की कार्यपालिका और मंत्रिपरिषद के रूप में वास्तविक कार्यपालिका । ताज राज्य का प्रमुख है जबकि मंत्रिपरिषद सरकार की प्रमुख है ।

(ii) यहां विधायिका से सरकार (मंत्रिपरिषद) निकलती है अर्थात मंत्रिपरिषद और विधायिका में सजातीय संबंध हैं ।

(iii) जनप्रतिनिधि सदन (हाउस ऑफ कामंस) में बहुमत प्राप्त दल सरकार बनाता है । और सरकार इसी सदन के प्रति उत्तरदायी होती है । यह उत्तरदायित्व मंत्रिपरिषद का सामूहिक और मंत्रियों का वैयक्तिक दोनों प्रकार का होता है ।

(iv) प्रधानमंत्री की सलाह पर ताज (राजा या रानी जो भी हो) निम्न सदन को भंग कर सकता है ।

(v) ब्रिटेन में विशिष्ट किस्म का गणतंत्र है । क्योंकि इस लोकतांत्रिक देश में वैध राजतंत्र मौजूद है । ताज का चुनाव नहीं होता और वह वंशानुगत पद है । ताज जिस व्यक्ति (उत्तराधिकारी) के सर पर रख दिया जाता है, वह राजा (या रानी) बन जाता है । जान आग इसलिये इस ”मुकुटधारी” गणतंत्र कहते हैं ।

5. संसदीय सर्वोच्चता:

ब्रिटिश राजव्यवस्था का आधार है- संसदीय सर्वोच्चता का सिद्धांत ।

इससे आशय है कि:

(i) संसद को कोई भी कानून बनाने, संशोधित करने या निरस्त करने का अंतिम अधिकार है । डे लोल्मे कहते हैं- ”ब्रिटिश संसद किसी औरत को आदमी और आदमी को औरत से बदलने के सिवा कुछ भी कर सकती है ।”

(ii) ब्रिटिश संसद एक ही सामान्य प्रक्रिया से सामान्य या विशिष्ट या संवैधानिक कानून बनाती है ।

(iii) ब्रिटिश कानूनों को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है ।

(iv) ताज को संसदीय कानूनों पर हस्ताक्षर करने ही होते हैं । बेजहॉट लिखते हैं- ”यदि संसद के दोनों सदन उसके (सम्राट) मृत्यु-आदेश को पारित कर उसके पास प्रेषित करें तो हमें उस पर भी हस्ताक्षर करने ही पड़ेंगे ।”

6. विधिका शासन:

ब्रिटेन विधि के शासन के लिये विश्व विख्यात है क्योंकि विधि के शासन की न सिर्फ यहीं से शुरूआत हुई अपितु अपने श्रेष्ठतम अर्थ में वह ब्रिटेन में ही लागू है । विधि के शासन का अर्थ है – सामान्य कानून की सर्वोच्चता ।

डायसी ने ”दि ला ऑफ कॉस्टीट्‌यूशन” (1885) में विधि के शासन के तीन अर्थ बताये हैं:

(i) सामान्य कानून की सर्वोच्चता:

देश में सामान्य कानून ही सर्वोच्च है, जिस पर किसी स्वेच्छाचारी शक्ति का प्रभाव नहीं है । प्रत्येक व्यक्ति केवल कानून द्वारा ही शासित है ।

(ii) कानून के समक्ष समानता:

कानून के समक्ष सब व्यक्ति एक समान हैं चाहे उनकी सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक हैसियत कुछ भी हो । सबके लिए एक ही कानून है ।

(iii) स्वयं संविधान कानून की देन है:

इंग्लैण्ड में नागरिक अधिकारों का स्त्रोत सामान्य कानून है जो न्यायिक निर्णयों के द्वारा लागू है । वहां विधान स्वयं ही इन निर्णयों-कानूनों के परिणामस्वरूप विकसित हुआ है ।

7. लचीलपन:

ब्रिटेन का संविधान प्रकृति में लचीला है और उसे आसानी से संशोधित किया जा सकता है । वहां सामान्य कानून और संवैधानिक कानून में अंतर नहीं किया जाता अर्थात संशोधन उसी सामान्य संसदीय प्रक्रिया से हो जाते हैं जिससे सामान्य कानून बनाये जाते हैं ।

8. एकात्मक संविधान:

ब्रिटिश संविधान एकहरा संविधान है । यह न सिर्फ संपूर्ण ग्रेट ब्रिटेन के लिये एक है, अपितु यह इकहरी नागरिकता, एक ही कानून आदि को सुनिश्चित करता है ।

9. नागरिक अधिकार:

ब्रिटेन का संविधान नागरिकों को अनेक अधिकार प्रदान करता है जैसे दैहिक स्वतंत्रता, सभा-सम्मेलन की स्वतंत्रता, शस्त्रधारण करने की स्वतंत्रता, विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता इत्यादि ।

10. एकात्मक राज्य:

ब्रिटेन का संविधान संपूर्ण ब्रिटेन को संघ के स्थान पर ”एकात्मक राज्य” घोषित करता है । इसमें संपूर्ण शक्ति केंद्र सरकार में निहित मानी जाती है और वह अपनी शासन सुविधा के लिये क्षेत्रीय इकाइयां, स्थानीय सरकार आदि का गठन और विघटन कर सकती है ।

11. द्वि-दलीय राजनीतिक व्यवस्था:

ब्रिटेन ने संसदीय प्रजातंत्र को अपनाते हुए भी बहुदलीय के स्थान पर द्वि-दलीय व्यवस्था को अपनाया है । यहां अनुदार दल (कंजर्वेटिव पार्टी) और मजदूर दल (लेबर पार्टी) नामक दो दलों का अस्तित्व है ।

12. संविधान के पूरक अधिनियम:

ब्रिटेन में लिखित संविधान का अभाव होते हुए भी ऐसे अधिनियम हैं जो संवैधानिक महत्व रखते हैं, जैसे ..1215 का अधिनीयम ।1689 का मेगनाकाटा हेबियस कॉपर्स एक्ट (1679) स्टेटयूट ऑफ वेस्टमिं स्टर (1931), मिनिस्टर्स ऑफ क्राउन एक्ट (1937), पीपुल्स रिप्रजेंटेशन एक्ट (1948) इत्यादि ।

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]