महात्मा गांधी के एकादश व्रत
गांधी जी ने आश्रम में रहने वालों के लिए ग्यारह व्रतों का पालन अनिवार्य रखा था। यह ग्यारह व्रत है[1][2]–
- अहिंसा
- सत्य,
- अस्तेय,
- ब्रह्मचर्य,
- असंग्रह (अपरिग्रह)
- शरीर श्रम,
- अस्वाद,
- सर्वत्र भय वर्जनं,
- सर्वधर्म समानत्वं,
- स्वदेशी,
- स्पर्श भावना
अहिंसा[संपादित करें]
अहिंसा अर्थात कीसीभी व्यक्ति या पशु के प्रति हिंसा न करना । गांधीजी की ये अहिंसा की विचारभावना न केवल शारीरिक रूप में है। वे मन, कर्म और वचन से हिंसा ना करने की शीख देते है । वे मानते है की अहिंसा के बिना सत्य की नहीं हो शकती। उनके लीऐ अहिंसा सर्वाधिक महत्वपूर्ण है ।
सत्य[संपादित करें]
सत्य शुद्ध आत्म बल
अस्तेय[संपादित करें]
पर वस्तु को ग्रहण ना करना
ब्रह्मचर्य[संपादित करें]
अपरिग्रह[संपादित करें]
शरीर श्रम[संपादित करें]
शरीर से श्रम करना
अस्वाद[संपादित करें]
सर्वत्र भय वर्जनं[संपादित करें]
सर्वधर्म समानत्वं[संपादित करें]
स्वदेशी[संपादित करें]
स्पर्श भावना[संपादित करें]
सन्दर्भ[संपादित करें]
- ↑ "Eleven vows" (अंग्रेज़ी में). मूल से 11 जनवरी 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 11 जनवरी 2018.
- ↑ "एकादश व्रत". मूल से 15 नवंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 11 जनवरी 2018.