मन-शरीर द्वैतवाद

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रेने देकार्त का द्वैतवाद का चित्रण। देकार्त का मानना था कि इनपुट संवेदी इंद्रियों द्वारा मस्तिष्क में अधिप्रवर्ध (एपिफेसिस) तक और वहां से अभौतिक आत्मा तक पहुंचाए जाते थे।

मन दर्शन में, मन-शरीर द्वैतवाद (mind-body dualism) या तो इस दृष्टिकोण को दर्शाता है कि मानसिक परिघटनाएं गैर-भौतिक हैं, [1] या कि मन और शरीर अलग-अलग विशिष्ठ और वियोज्य हैं। [2] इस प्रकार, इसमें मन और पुद्गल (matter) के बीच संबंध, साथ ही विषय और वस्तु के बीच संबंधों के बारे में विचारों का एक समूह शामिल है, और मन-शरीर की समस्या में भौतिकवाद और सक्रियतावाद (enactivism) जैसे अन्य मतों के साथ इसकी तुलना की जाती है। [1] [2]

अरस्तू ने कई आत्माओं के बारे में प्लेटो के दृष्टिकोण को साझा किया और पौधों, जानवरों और मनुष्यों के विशिष्ट कार्यों के अनुरूप एक पदानुक्रमित व्यवस्था को और विस्तृत-वर्णित किया: विकास और चयापचय की एक पोषक आत्मा जो तीनों साझा करते हैं; दर्द, प्रसन्नता और इच्छा की एक बोधगम्य आत्मा जिसे केवल मनुष्य और अन्य जानवर साझा करते हैं; और तर्क की क्षमता जो केवल मनुष्यों के लिए अद्वितीय है। इस दृष्टिकोण में, आत्मा एक जीवनक्षम जीव का पुद्गलाकारवादी (हाइलोमोर्फिक) रूप है, जिसमें पदानुक्रम का प्रत्येक स्तर औपचारिक, आकरिक रूप से पिछले स्तर के द्रव्य पर निगरानी रखता है । अरस्तू के लिए, शरीर पर आधारित पहली दो आत्माएं, जीवित जीव के मरने पर नष्ट हो जाती हैं, [3] [4] जबकि मन का एक अमर और शाश्वत बौद्धिक हिस्सा बना रहता है। [5] हालाँकि, प्लेटो के लिए, आत्मा भौतिक शरीर पर निर्भर नहीं थी; वह मेटेमसाइकोसिस, पुनर्जन्म अर्थात् आत्मा के एक नए भौतिक शरीर में स्थानांतरण में विश्वास करते थे। [6] इसे कुछ दार्शनिकों द्वारा अपचयवाद (reductionism) का एक रूप माना गया है, क्योंकि यह मन या शरीर के साथ अपने अनुमानित जुड़ाव के कारण चरराशि के बहुत बड़े समूहों को अनदेखा करने की प्रवृत्ति में सक्षम होता है, न कि जब अध्ययन की गई घटना को समझाने या प्रागुक्ति करने की बात आने पर इसके वास्तविक मूल्य में। [7]

द्वैतवाद रेने देकार्त (1641) के विचारों से निकटता से जुड़ा हुआ है, जो मानते हैं कि मन एक गैर-भौतिक है - और इसलिए, गैर-स्थानिक-द्रव्य है। देकार्त ने स्पष्ट रूप से मन को चेतना और आत्म-जागरूकता के साथ पहचाना और इसे बुद्धिमत्ता के केंद्र के रूप में मस्तिष्क से अलग किया। [8] इसलिए, वह पहले प्रलेखित पश्चिमी दार्शनिक थे जिन्होंने मन-शरीर की समस्या को उस रूप में प्रस्तुत किया जिस रूप में यह आज भी मौजूद है। [9] द्वैतवाद की तुलना विभिन्न प्रकार के एकत्ववाद से की जाती है। द्रव्य द्वैतवाद की तुलना भौतिकवाद के सभी रूपों से की जाती है, लेकिन गुण द्वैतवाद को कुछ अर्थों में उभरते भौतिकवाद (उद्भूत गुण) या गैर-अपचायक भौतिकवाद का एक रूप माना जा सकता है।

  1. Hart, W. D. 1996. "Dualism." pp. 265–267 in A Companion to the Philosophy of Mind, edited by S. Guttenplan. Oxford: Blackwell.
  2. Crane, Tim; Patterson, Sarah (2001). "Introduction". History of the Mind-Body Problem. पपृ॰ 1–2. the assumption that mind and body are distinct (essentially, dualism)
  3. Aristotle. [c. mid 4th century BC] 1907. On the Soul (De anima), edited by R. D. Hicks. Cambridge: Cambridge University Press; 1968. Books II-III, translated by D.W. Hamlyn, Clarendon Aristotle Series. Oxford: Oxford University Press.
  4. Aristotle. [c. mid 4th century BC] 1924. Metaphysics (Metaphysica), edited by W. D. Ross. Oxford: Oxford University Press, 2 vols.
  5. Aristotle, De Anima III:
  6. Duke, E. A., W. F. Hicken, W. S. M. Nicoll, et al., eds. 1995.
  7. "Reductionism in Biology". Stanford Encyclopedia of Philosophy. 2017.
  8. Robinson, Howard. [2003] 2016.
  9. Descartes, René. [1641] 1984.