प्रेम प्रकाश सिंह

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प्रेम प्रकाश सिंह

कार्यकाल
2012 से 2017

राष्ट्रीयता भारतीय

प्रेम प्रकाश सिंह, भारत के उत्तर प्रदेश की सोलहवीं विधानसभा सभा में विधायक रहे। 2012 उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इन्होंने उत्तर प्रदेश की बरहज विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र (निर्वाचन संख्या-342) से चुनाव जीता था।[1][2]

प्रारंभिक जीवन

प्रेम प्रकाश का जन्म देवरिया के पैना, बरहज में हुआ था। लेकिन उनके बचपन का ज्यादातर हिस्सा बस्ती शहर में ही बीता था। शुरुआती पढ़ाई भी वहीं पर हुई थी। पिता सरकारी नौकरी में थे, इस वजह से उनका ट्रांसफर अलग-अलग जगहों पर होता रहता था। जिसकी वजह से उनकी शुरुआती पढ़ाई किस्तों में पूरी हुई। खासकर हाईस्कूल तक की पढ़ाई। जब वह कक्षा तीन में पढ़ रहे थे तभी उनके पिता की पोस्टिंग नैनीताल में हो गई, जहां पर उनकी प्राथमिक शिक्षा पूरी हुई। आगे की पढ़ाई के लिए सीआरएसटी में दाखिला लिया, यानी चेतराम साह टूलभैया इंटर कॉलेज, भीमताल, नैनीताल में हुई। हालांकि जिंदगी में आने वाली कई बाधाओं की वजह से भी उनकी पढ़ाई बाधित होती रही। इसी वजह से उन्होंने अपनी हाई स्कूल की पढ़ाई सिलसिलेवार पूरी नहीं कर सके। आगे की पढ़ाई का पूरा न होने की एक और वजह थी, पिता की पोस्टिंग लखनऊ हो गई। फिर कुछ महीनों में ही पिता अपनी नौकरी के आखिरी दिनों में लखीमपुर में तहसीलदार हो गए थे। बाकी की पढ़ाई उन्होंने लखीमपुर के पृथ्वी राज केसरी इंटर कॉलेज में पूरी की। प्रेम प्रकाश अपने पांच भाइयों में चौथे नंबर पर थे। उनकी पत्नी का नाम मंजूलता सिंह है। वह भी एक बार सितारगंज की ब्लाक प्रमुख चुनी गईं थीं। उनके तीन बेटे और दो बेटियाँ हैं। बड़े पुत्र ठाकुर शिव वर्धन सिंह, अंतरराष्ट्रीय शूटर हैं। दूसरे बेटे जयवर्धन सिंह और तीसरे डा. शक्ति वर्धन सिंह राजनीति में सक्रिय हैं। बेटी डा. आरती हल्द्वानी के सुशीला तिवारी मेडिकल कालेज में सेवारत हैं। दूसरी बेटी पूजा अपने परिवार के साथ अमेरिका में रहती हैं।

नैनीताल ( वर्तमान में सितारगंज, उधम सिंह नगर, उत्तराखंड) में नौकरी करने के दौरान प्रेम प्रकाश के पिता ने कुछ जमीनें खरीदीं थीं। जब रिटायरमेंट के बाद, वह अपनी जिंदगी के आखिरी दिनों को बिताने वहां गए उनकी जमीनों पर किसी का कब्ज़ा था। हालाँकि कब्ज़ा करने वाले को लगा कि जमीन खाली पड़ी है, इसलिए उसने उस पर खेती करना शुरू कर दिया। फिर जमीन को पाने की लड़ाई शुरू हुई। कोर्ट की लड़ाई व्यक्तिगत लड़ाई में बदल गई। लड़ाई करीब कई सालों तक चली। इस बीच दोनों पक्ष को काफी जान माल का नुकसान हो हुआ। आखिर में विवाद समझौते पर ख़त्म हुआ। उस जमीन के एवज में प्रेम प्रकाश पक्ष ने दूसरे पक्ष को दूसरी जगह जमीन दी। हालाँकि दूसरे पक्ष का कहना था कि यह समझौता पहले ही हो जाता। क्योंकि प्रेम प्रकाश के पिता ने उन्हें यही ऑफर पहले भी दिया था। लेकिन बर्चस्व की लड़ाई में किसी को कुछ समझ नहीं आया। बल्कि आज दूसरे पक्ष की जमीन की कीमत प्रेमप्रकाश की जमीन से ज़्यादा है। आज दोनों पक्षों में प्रेम व्यव्हार है। दोनों एक दूसरे के सुख दुःख में आते हैं। इस लड़ाई में प्रेम प्रकाश को दो बार गोली लगी। दोनों बार उनकी किस्मत अच्छी थी, बच गए। एक बार उनके छोटे बेटे शक्ति वर्धन ने बताया था कि, मरने से करीब दो साल पहले कुछ छर्रे ऑपरेशन करके उनके पीठ से निकाले गए थे।

राजनीतिक जीवन

बचपन में उन्हें पहलवानी का शौक था। लेकिन जमीनी विवाद के चलते उन्हें सत्ता की शक्ति का पता चला। यहां से उनका रुख राजनीति की तरफ मुड़ गया। प्रेम प्रकाश सिंह उन नेताओं में से थे जिनकी हर पार्टी में पकड़ थी। कांग्रेस, बसपा, सपा और भाजपा में उनका बराबर सम्मान था। उन्होंने अपनी राजनीतिक जिंदगी की शुरुआत 1986 में सितारगंज, उधम सिंह नगर उत्तराखंड से शुरू की थी। 1986 में सितारगंज के ब्लॉक प्रमुख चुने गए। सबसे पहले उनमें एक जननेता का गुण कांग्रेस पार्टी को दिखा। हालांकि प्रेम प्रकाश सिंह कांग्रेस में ले जाने का श्रेय एनडी तिवारी को देते थे। सबसे पहले 1993 में कांग्रेस ने ही उन्हें बरहज से अपना विधानसभा प्रत्याशी बनाया, लेकिन वह हार गए। इस हार के बाद उन्होंने राजनीति को और अच्छे से समझना शुरू किया। उन्हें राजनीति में मजा आने लगा।  फिर जब 1996 में बसपा-कांग्रेस का गठबंधन हुआ तो फिर उन्होंने बरहज से ही चुनाव लड़ा। इस बार उन्हने विजय मिली। मायावती ने उन्हें अपना पशुपालन, सहकारिता, रेशम उद्योग, मत्स्य पालन विभाग का मंत्री बनाया गया। उसके बाद बसपा-बीजेपी का गठबंधन हुआ। हालांकि वह गठबंधन ज्यादा दिनों तक नहीं चला। लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने प्रेम प्रकाश सिंह की राजनीतिक प्रतिभा को पहचान लिया। भाजपा ने उन्होंने दो बार विधायकी का टिकट दिया। पहली बार 2002 में और दूसरी बार 2007 में। लेकिन उस समय उनकी किस्मत अच्छी नहीं थी। उन्हें दोनों बार हार का मुंह देखना पड़ा। इसी बीच उनकी मुलाकात समाजवादी पार्टी में अपना प्रमुख स्थान रखने वाले अमर सिंह से हुई। अमर सिंह ने उन्हें मुलायम सिंह से मिलवाया। मुलायम सिंह खुद एक जमीनी नेता थे। इसलिए उन्हें एक जमीनी नेता को पहचानने में देर नहीं लगी। हालाँकि इससे पहले भी मुलायम सिंह उनके बारे में सुन चुके थे। उन्हें बाद में पता चला कि, अमर सिंह का मुलायम सिंह से उनका मिलवाना एक प्लान था। खैर वह उनके लिए सही साबित हुआ। वह 2012 में फिर एक बार सपा से विधायक बने।

प्रेम प्रकाश सिंह जमीनी और जननेता माने जाते थे। उन्होंने एक बार अपने इंटरव्यू में कहा था कि, आज की राजनीति पहले की राजनीति से एकदम अलग है। आज आप सोशल मीडिया पर अपने को किसी भी रूप में स्थापित करवा सकते हैं। लेकिन पहले वही नेता जनप्रिय होता था, जो जनता की नब्ज पहचानता था और जनता की नब्ज पहचानने के लिए उसके बीच जाना पड़ता है। राजनीति में आने से पहले उन्हें राजनीति की एबीसीडी नहीं मालूम थी। वह जनता के बीच जाते गए और जनता उन्हें अपना नेता बनाती चली गयी।

राजनीतिक जिंदगी में उन्होंने जो कुछ भी हासिल किया जनता की बदौलत किया। एक बार रामपुर में मशहूर अभिनेता संजय दत्त और अभिनेत्री जयाप्रदा की जनसभा होने वाली थी। वे लोग अमर सिंह के साथ हेलीकॉप्टर से रामपुर की तरफ जा रहे थे। अचानक अमर सिंह का हेलीकॉप्टर सितारगंज में लैंड हुआ। इस प्लान से संजय दत्त और जयप्रदा पूरी तरह से अनभिज्ञ थे। उन्हें लगा, ऐसा कौन सा नेता है जिसके लिए अमर सिंह जैसे व्यक्तित्व को अपना हेलीकॉप्टर यहाँ उतारना पड़ा। वह उसे जनसभा स्थल पर भी बुलवा सकते थे। तभी सामने से ऊँचे कद के प्रेम प्रकाश सिंह आते दिखाई दिए। संजय दत्त और जयप्रदा को तब तक उनकी राजनीतिक प्रतिभा के बारे में पता नहीं था जब तक वह मंच पर नहीं आये। भीड़ जितना संजय दत्त और जयप्रदा के लिए उत्साहित थी उससे कहीं ज़्यादा प्रेम प्रकाश के मंच पर आने से हुई। वह अपने बेबाक अंदाज के लिए जाने जाते थे। वह बिना लिखे भाषण देते थे। इसके बारे में उन्होंने एक बार कहा था कि, वह हमेशा जनता के बीच में जाते थे। उनके साथ खाते पीते थे। और जब आप किसी के साथ खाते पीते हैं तो उनके हालात को अच्छे से समझने लगते हैं। जब आप बोलते हैं, तो आपकी बात में सच्चाई नजर आती है।

बाद में वह उधम सिंह नगर, उत्तराखंड में रहने लगे थे। इसी वजह से वह एक बार दो जगह की मतदाता सूचि में नाम होने की वजह से कानूनी मसले में फंस गए थे।

उनकी मृत्यु 24 फरवरी, 2023 को अचानक ह्रदय गति रुक जाने से हुई थी।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "उत्तर प्रदेश विधान सभा". मूल से 11 अगस्त 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 जुलाई 2016.
  2. "यूपी के पूर्व कैबिनेट मंत्री ठाकुर प्रेम प्रकाश सिंह का निधन". 24 फ़रवरी 2023.