धलभूम

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धलभूम, बंगाल के जंगल महल स्थित एक परगना का प्राचीन नाम है, जो स्वर्णरेखा नदी की मध्य घाटी पर स्थित थी।[1] यह वर्तमान झारखण्ड के सिंहभूम और पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले के झाड़ग्राम तक फैली थी। इसे घाटशिला परगना के नाम से भी जाना जाता था, परगना के राजा को धलभूम राजा या घाटशिला राजा कहा जाता था।[2]

भूगोल[संपादित करें]

घाटशिला के धल (धवल देव) राजाओं के नाम पर परगना का नाम धलभूम पड़ा। धलभूम का मुख्यालय घाटशिला था। यह स्वर्णरेखा नदी की मध्य घाटी पर स्थित एक बड़ा राज्य था। धलभूम के पूर्व में मिदनापुर और बांकुड़ा परगना, पश्चिम में सिंहभूम परगना, उत्तर में बड़ाभूम और मानभूम परगना तथा दक्षिण में मयूरभंज परगना स्थित था। धलभूम जंगलों और पहाड़ों से घिरा एक राज्य था।

राजघराना[संपादित करें]

धलभूम राजपरिवार वास्तव में भूमिज आदिवासी वंशज थे, जो बाद में खुद को क्षत्रिय बताने लगे।[3] इसके प्रमुख राजाओं में राजा जगन्नाथ धल, राजा रामचंद्र धल, राजा चित्रेश्वर धल, राजा शत्रुघ्न धल, आदि शामिल हैं।[4][5] राजा जगन्नाथ धल अंग्रेजों के विरुद्ध प्रथम आंदोलन करने वाले क्रांतिकारियों में से एक थे।

इतिहास[संपादित करें]

इलाहाबाद की संधि (1765) में दिल्ली के मुग़ल बादशाह शाह आलम द्वितीय ने बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी ईस्ट इण्डिया कम्पनी को सौंप दी। 1765 में, बंगाल में अंग्रेजों का आगमन सर्वप्रथम धलभूम में हुआ। कम्पनी द्वारा दीवानी अधिकार प्राप्त करने के बाद स्थानीय जमींदारों बेदखल कर नए जमींदारों को नियुक्त किया, जिनमे से कुछ ने अंग्रेज़ों की अधीनता स्वीकार ली तथा कुछ ने उनका विद्रोह किया। सर्वप्रथम विद्रोह करने वालों में धलभूम और बड़ाभूम परगना की जमींदार और सरदार थे। जंगल महल में अपनी पकड़ बनाने की बाद से ही इसकी नीति अधिकतम संभव कर वसूली की रही। इस उद्देश्य में स्थानीय व्यवस्था को बाधक मानकर नयी प्रणालियाँ और नियामक (रेगुलेशन) लगाये जाने शुरू हुए और 1765 के बाद एक बिलकुल नए किस्म के कर युग का आरंभ हुआ जिससे स्थानीय व्यवस्था, स्थानीय लोग और जमींदार भी बर्बाद होने लगे।

1766 में, धलभूम के दामपाड़ा के सरदार-घाटवाल जगन्नाथ पातर ने सर्वप्रथम ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के नीतियों के विरुद्ध विद्रोह किया, जिसे प्रथम चुआड़ विद्रोह कहा जाता है। 1767-77 में राजा जगन्नाथ धल का विद्रोह हुआ, जिसका सरदार जगन्नाथ पातर ने भी समर्थन दिया।[6] 1769 में धलभूम में भूमिज चुआड़ों का एक बड़ा विद्रोह हुआ। 1809 में बैद्यनाथ सिंह का विद्रोह हुआ। 1832 में गंगा नारायण सिंह के नेतृत्व में सम्पूर्ण जंगल महल में भूमिज विद्रोह हुआ, धलभूम में इस विद्रोह का नेतृत्व रघुनाथ सिंह ने किया।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. O'Malley, Lewis Sydney Steward (2011). Bengal District Gazetteers: Sinhbhum, Saraikela and Kharsawan (अंग्रेज़ी में). Concept Publishing Company. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7268-215-6.
  2. J, Reid (1912). Final Report on the Survey and Settlement of Pargana Dhalbhum in the District of Singhbhum, 1906 to 1911 (अंग्रेज़ी में). Bengal Secretariat Book Departmentôt.
  3. Commissioner, India Census (1903). Census of India, 1901 (अंग्रेज़ी में). Printed at the Government central Press.
  4. Calcutta Weekly Notes (अंग्रेज़ी में). Weekly Notes Office. 1902.
  5. Revenue, Bihar (India) Board of; Lacey, Walter Graham (1942). Final Report on the Revisional Survey and Settlement Operations of Pargana Dhalbhum in the District of Singhbhum (1934-38) (अंग्रेज़ी में). Superintendent, Government Print.
  6. O’malley .l. S.s. (1910). Bengal District Gazetteers Singhbhum, Saraikela And Kharsawan.