जय जय गरवी गुजरात
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जय जय गरवी गुजरात (अर्थ : 'गर्व करने योग्य गुजरात की जय हो!') महान गुजराती कवि नर्मद द्वारा सन १८७३ में रचित एक प्रसिद्ध कविता है। गुजरात सरकार के समारोहों में इस कविता का 'राज्य गान' के रूप में गायन किया जाता है।
- जय जय गरवी गुजरात
- जय जय गरवी गुजरात!
- जय जय गरवी गुजरात,
- दीपे अरुणुं परभात,
- जय जय गरवी गुजरात !
- ध्वज प्रकाशशे झळळ कसुंबी,
- प्रेम शौर्य अंकित;
- तुं भणव भणव निज संतजि सउने,
- प्रेम भक्तिनी रीत
- ऊंची तुज सुंदर जात,
- जय जय गरवी गुजरात।
- उत्तरमां अंबा मात,
- पूरवमां काळी मात,
- छे दक्षिण दिशमां करंत रक्षा, कुंतेश्वर महादेव;
- ने सोमनाथ ने द्वारकेश ए,
- पश्विम केरा देवछे सहायमां साक्षात,
- जय जय गरवी गुजरात।
- नदी तापी नर्मदा जोय,
- मही ने बीजी पण जोय।
- वळी जोय सुभटना जुद्ध रमणने,
- रत्नाकर सागर;
- पर्वत उपरथी वीर पूर्वजो,
- दे आशिष जयकर संपे सोये सउ जात,
- जय जय गरवी गुजरात।
- ते अणहिलवाडना रंग,
- ते सिद्धराज जयसिंग।
- ते रंग थकी पण अधिक सरस रंग,
- थशे सत्वरे मात!
- शुभ शकुन दीसे मध्याह्न शोभशे,
- वीती गई छे रात।
- जन घूमे नर्मदा साथ,
- जय जय गरवी गुजरात।