खसिया ब्राह्मण

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कुमाऊँ की प्राचीन जातियों में कोलीयमुंड लोग शामिल हैं। माना जाता है कि ये लोग ही यहां प्राचीन समय से रह रहे हैं। इनके साथ ही किरात, नाग, राजी, थारु, बोक्सा, भोटिया, हूण, के साथ ही खस शामिल हैं। इनमें सबसे प्रभावशाली व सशक्त खस रहे हैं। कोलीय व मुंड के बाद यहां नाग और फिर किरात आए। इनके बाद खस आए और उन्होंने हिमालय की ढलानों को लहलहाते खेतों में बदल दिया, आबाद कर दिया। उत्तरी सीमाओं से मंगोल मूल के लोग आते रहे। बाद में मैदानों से वैदिक आर्य आए व अन्य भी आते रहे। इन सभी ने मिलकर आज का कुमायुंनी समाज बनाया। कत्यूरी शासन तक कमाऊँ और गढ़वाल एक ही प्रशासनिक इकाई के तहत थे। कुमाऊँ में चंदों और गढ़वाल में पंवारों के उदय के बाद ही ये पूरी तरह के अलग-अलग इकाइयों में बंट गए। कत्यूरी शासन के पतन के बाद कुमाऊँ में चंद शासन करने लगे। चंद झूसी या कन्नौज यानी मैदानी क्षेत्र से आए क्षत्रिय थे। चंदों के साथ मैदानी क्षेत्रों से बड़ी संख्या में ब्राह्मण व क्षत्रिय समेत विभिन्न जातियों के लोग आए। कत्यूरी शासन खत्म हो जाने से यहां के खस राजों का शासन भी खत्म हो गया। यहां जब मैदानों से आए वैदिक क्षत्रियों ने सत्ता पर कब्जा किया तो उनके साथ आए बहुत से ब्राह्मण (Brahmins of Kumaon) भी शासन में प्रमुख पदों पर असीन हो गए। इन्होंने खुद को दूसरे ब्राह्मणों से श्रेष्ठ घोषित कर दिया था। इसी तरह कुमायुं की सोर घाटी और नेपाल के डोटी क्षेत्र कभी चंदों के पास तो कभी डोटी राजाओं के शासन में रहते रहे। इसलिए कुमायुं में गढ़वाल तथा नेपाल के सीमावर्ती क्षेत्रों की जातियों के सरनेम वाले लोग बड़ी संख्या में मिलते हैं। इसके अलावा मैदानों ने आए ब्राह्मण व क्षत्रिय भी यहां बड़ी संख्या में हैं। कुमायुं का पौराणिक नाम मानसखंड है। मानसखंड यानी यानी कैलाश पर्वत और मानसरोवर तक का क्षेत्र कभी कुमायं का हिस्सा था। मैदानी क्षेत्रों के धार्मिक प्रवृति के लोग कैलाश-मानसरोवर के दर्शनों के लिए यहां कुर्मांचलकत्युरी राजवंश के राजाओं ने इस प्रदेश के अपने समग्र राज्य में बाहर से ब्राह्मण और क्षत्रियों को लाकर बसाया था। उनका स्थानीय खसिया लोगों के साथ जब रोटी-बेटी का व्यवहार आरंभ हुआ तो उनमें खस ब्राह्मण और खस क्षत्रिय के रूप में दो भेद हो गए।