कार्ल लुई श्वेंडलर

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चिड़ियाघर परिसर में श्वेंडलर का एक स्मारक

कार्ल लुई श्वेंडलर (1838 - 1882) एक जर्मन विद्युत शास्त्री (इलेक्ट्रीशियन) थे और टंगस्टन आधारित उद्दीप्त प्रकाश बल्ब के पहले समर्थकों में से एक थे। उन्होंने ब्रिटिश भारत में तार विभाग में एक वरिष्ठ पद पर काम किया और तारप्रेषण पर एक प्रभावशाली पाठ्यपुस्तक भी प्रकाशित की। वे आगरा और कलकत्ता के बीच तार संचार स्थापित करने[1], जलमग्न केबलों के प्रसारण में समस्याओं को हल करना[2] आदि में सक्रिय रूप से शामिल थे। उन्हें रेलवे द्वारा भारतीय रेलवे स्टेशनों को बिजली के लैंप द्वारा रोशनी देने का व्यवहार्यता अध्ययन करने के लिए नियुक्त किया गया था।


श्वेंडलर एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल के सदस्य थे। 1867 में जोसफ फेयरर द्वारा एक चिड़ियाघर का प्रस्ताव रखा गया था और इस विचार को 1873 में श्वेंडलर द्वारा फिर से उठाया गया था।[3] श्वेंडलर ने कोलकाता में अलीपुर वन्य प्राणी उद्यान को शुरु करने के लिए अपनी छोटी सी वन्य पशुशाला (भारत छोड़ने से पहले) के सभी जानवर चिड़ियाघर को दे दिए थे।[4] अलीपुर स्थित इस वन्य प्राणी उद्यान का औपचारिक उद्घाटन 1 जनवरी, 1876 को प्रिंस ऑफ वेल्स (किंग एडवर्ड सप्तम) द्वारा किया गया था और मई में इसे जनता के लिए खोला गया। श्वेंडलर को इसका पहला अधीक्षक और राम ब्रह्म सान्याल को उनका सहायक नियुक्त किया गया। यह चिड़ियाघर 1875 में रॉबर्ट क्लाइव के कछुए, अद्वैत का घर बन गया, जिसे, 2006 में 255[5] वर्ष की आयु में उसकी मृत्यु होने तक दुनिया में सबसे लंबे समय तक जीवित रहने वाला जानवर माना जाता था। 1883 में चिड़ियाघर परिसर में श्वेंडलर का एक स्मारक बनाया गया था।[6]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Higgs, Paget (1885). Magneto-dynamo-electric machines: with a description of electric accumulators. London: Symons & Co. पृ॰ 208.
  2. Fahie, JJ (1901). A history of wireless telegraphy. Edinburgh: William Blackwood and Sons. पपृ॰ 111–117.
  3. Hyde, H (1874). "President's Address". Proceedings of the Asiatic Society of Bengal: 52.
  4. Anonymous (1876). "Annual Report". Proceedings of the Asiatic Society of Bengal: 24.
  5. BBC News (2006-03-23). "'Clive of India's' tortoise dies" (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2020-06-16.
  6. Anonymous (1883). "Annual Report". Proceedings of the Asiatic Society of Bengal: 19.