ईंट का काम

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बारहवीं शती का ईंट का काम (अयुत्या, थाईलैण्ड)

ईंट के काम (Brickwork) या 'ईंट की चिनाई' का अर्थ है ईटों को इस प्रकार चिनना कि उनसे बनी दीवार सुदृढ़ हो।

ईटों की जोड़ाई या चिनाई में ईटों के बीच गारे (गीली मिट्टी), चूने और बालू, चूने और सुर्खी, छाई और चूने अथवा सीमेंट और बालू का प्रयोग किया जाता है। परंतु दीवारों की दृढ़ता केवल गारे आदि पर निर्भर नहीं है। ईटें इस प्रकार रखी जाती हैं कि वे एक दूसरे के सहारे टिकी रहती हैं, परंतु आवश्यकता पड़ने पर दीवार को बिना विश्रृंखलित किए ही उसमें से दो चार ईटें खींचकर बाहर निकाल भी ली जा सकती हैं।

शब्दावली : दीवार के अनुदिश रखी ईंट को वाराणसी की ओर पट्टा कहते हैं और अनुप्रस्थ रखी ईंट को तोड़ा या तुड़िया; ईंट की लंबाई के अनुदिश चीरकर दो आधी ईटों में से प्रत्येक को खंडा कहते हैं; चौड़ाई के अनुदिश तोड़कर दो आधी ईटों में से प्रत्येक को अद्धा कहते हैं। खंडे के आधे को रोड़ा कहते हैं।

प्रमुख रीतियां[संपादित करें]

एक ईंट दीवार में छ: प्रकार से रखी (चुनी) जा सकती है।

ईंट के काम में कई तरह की चाले (बॉण्ड) काम में लाई जाती हैं। उनमें से मुख्य रीतियाँ नीचे बताई गई हैं-

इंग्लिश रीति

इंग्शिल रीति - इस रीति में बाहर से देखने पर प्रत्येक रद्दे में या तो केवल पट्टे या केवल तोड़े दिखाई पड़ते हैं। पट्टे और तोड़ेवाले रद्दे एक के ऊपर एक आते रहते हैं।

द्विगुण फ़्लेमिश रीति - प्रत्येक रद्दे में पट्टे और तोड़े एक के बाद एक आते रहते हैं। दीवार के दोनों ओर ऐसा ही दिखाई पड़ता है।

फ्लेमिश रीति की जुड़ाई

एकल फ़्लेमिश रीति - मकान के बाहर से देखने पर प्रत्येक रद्दे में पट्टे और तोड़े एक के बाद एक आते रहते हैं, परंतु भीतर से देखने पर दीवार इंग्लिश रीति से जुड़ी जान पड़ती है।

केवल पट्टे - कुछ भीतें प्रत्येक रद्दे में केवल पट्टे रखकर बनाई जाती हैं। ऐसी भीत आधी ईंट मोटी होती है।

केवल तोड़े - प्रत्येक रद्दे में केवल तोड़े ही लगाए जा सकते हैं; मेहराबदार जुड़ाई, दीवार का पाद (नीचेवाला रद्दा), छज्जा, कार्निस आदि बनाने के काम में ऐसी जुड़ाई की जाती है।

बगीचे या हाते की भीत - ऐसी भीतों में तीन पट्टों की बगल में एक तोड़ा रहता है।

फ़्लेमिश जोड़ाई की अपेक्षा इंग्लिश जोड़ाई अधिक मजबूत होती है, परंतु फ़्लेमिश जोड़ाई से अधिक सपाट दीवार बनती है। उदाहरणत:, यदि 9 इंच लंबी हैं और 9 इंच मोटी दीवार बनानी है तो दो पट्टों के बीच में न्यूनाधिक गारा रखकर दीवार की मोटाई ठीक 9 इंच कर दी जा सकती है, परंतु ईटों की वास्तविक लंबाई न्यूनाधिक रहती है (यद्यपि कहने के लिए उनकी लंबाई 9 इंच होती है)। अब 9 इंच की दीवार जोड़ने पर जहाँ पट्टे रहेंगे वहाँ ईटों की छोटाई बड़ाई के अनुसार दीवार भीतर घुस जाएगी या बाहर निकल पड़ेगी। फ़्लेमिश जोड़ाई में पट्टे अधिक और तोड़े कम रहते हैं। इसी से फ़्लेमिश जोड़ाई अधिक सपाट होती है। हाते की चहारदीवारी के लिए भी इसी कारण तीन रद्दे पट्टों के और तब केवल एक रद्दा तोड़ों का रखा जाता है। इससे दीवार अवश्य कुछ कमजोर बनती है, परंतु ऐसी दीवार पर अधिक बोझ नहीं रहता कि विशेष मजबूती की आवश्यकता पड़े। दीवार पर पलस्तर करना हो तो भी दीवार यथासंभव सपाट ही बननी चाहिए, अन्यथा अधिक मसाला खर्च होता है।

ईंट के काम में सुव्यवस्थित एकरूपता केवल ईंट की नास कोर ठीक होने पर ही नहीं निर्भर रहती, बल्कि जोड़ की नाप पर भी निर्भर होती है, क्योंकि यदि प्रत्येक रद्दे के बीच के मसाले की उँचाई आपस में ठीक मेल नहीं खाएगी तो ईटें सच्ची रहकर ही क्या करेंगी? ईंट के काम में जोड़ की मोटाई नियंत्रित रखने के लिए चार रद्दे की मोटाई पहले से निर्धारित कर दी जाती है। उदाहरणत: यदि ईंट की उँचाई 2¾ इंच है और गारे के जोड़ की ऊँचाई को चौथाई इंच रखना है तो यह नियम बना दिया जा सकता है कि जोड़ाई के कार्य में प्रत्येक चार रद्दों की ऊँचाई ठीक 12 इंच रहे।

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]