आरोग्यकारी याचिका

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समीक्षा याचिका ख़ारिज या निःशेष हो जाने के बाद न्यायालय में अन्याय के मुआवज़े से सुरक्षा पाने के लिए आरोग्यकारी याचिका आख़िरी मौक़ा होता है। यह एक ऐसी अवधारणा है जो रूपा अशोक हुर्रा बनाम अशोक हुर्रा और अन्य (2002) के मामले में भारत के उच्चतम न्यायालय द्वारा विकसित की गई थी।[1] इस मामले में सवाल यह था कि क्या कोई पीड़ित व्यक्ति समीक्षा याचिका ख़ारिज हो जाने के बाद न्यायालय के अंतिम निर्णय के ख़िलाफ़ किसी राहत या मुआवज़े का हक़दार है। [2] उच्चतम न्यायालय ने यह स्वीकारा कि कोर्ट की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने और न्यायहानि का नीरोग करने के लिए, वह अपनी अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग करते हुए अपने पूर्वनिर्णयों पर पुनर्विचार कर सकती है। [3] उस उद्देश्य के लिए, अदालत ने एक उपचारात्मक याचिका नामक अवधारणा बनायी है जिसमें [4] याचिकाकर्ता को विशेष रूप से यह कहना आवश्यक है कि आरोग्यकारी याचिका में उल्लिखित आधार पहले फ़ाइल की गई समीक्षा याचिका में भी लिए गए थे और इसे परिचालन द्वारा ख़ारिज कर दिया गया था। इस चीज़ को किसी वरिष्ठ अधिवक्ता द्वारा प्रमाणित करवाना अनिवार्य होगा, ऐसा उच्चतम न्यायालय ने बताया। फिर आरोग्यकारी याचिका को तीन सबसे वरिष्ठ न्यायाधीशों और यदि उपलब्ध हो तो फ़ैसला सुनाने वाले न्यायाधीशों को ही भेजा जाता है। आरोग्यकारी याचिका दाख़िल करने के लिए कोई समय सीमा नहीं दी गई है, जबकि आम तौर पर समीक्षा याचिका को निर्णय के 30 दिनों के अंदर फ़ाइल करा जाता है। [5] आरोग्यकारी याचिकाएँ और यह प्रक्रिया भारतीय संविधान के अनुच्छेद 137 के तहत गारंटीशुदा है, जो उच्चतम न्यायालय को अपने निर्णयों और आदेशों की समीक्षा करने की शक्ति और अधिकारक्षेत्र देता है।

एक समीक्षा याचिका और एक आरोग्यकारी याचिका के बीच मुख्य अंतर यह है कि समीक्षा याचिका अंतर्निहित रूप से भारतीय संविधान में ही उपबंधित है। जबकि आरोग्यकारी याचिका का उद्भव उच्चतम न्यायालय द्वारा समीक्षा याचिका की व्याख्या के संबंध में है जो अनुच्छेद 137 में संजोयी गई है।

आवश्यकताएं[संपादित करें]

आरोग्यकारी याचिका पर विचार करने के लिए, उच्चतम न्यायालय ने कुछ विशिष्ट शर्तें रखी हैं:

  1. याचिकाकर्ता को यह स्थापित करना होगा कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का वास्तविक उल्लंघन हुआ है और न्यायाधीश और फ़ैसले के पक्षपात के डर से याचिकर्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
  2. याचिका में विशेष रूप से यह बताया जाना चाहिए कि उल्लिखित आधार समीक्षा याचिका में मौजूद थे और उन्हें गया था और इसे परिचालन द्वारा ख़ारिज कर दिया गया था।
  3. आरोग्यकारी याचिका के साथ साथ उपरिलिखित आवश्यकताओं की पूर्ति से संबंधित एक वरिष्ठ वकील द्वारा प्रमाणीकरण भी मौजूद होना चाहिए।
  4. याचिका को तीन वरिष्ठतम न्यायाधीशों और, यदि वह पीठ उपलब्ध हो, तो उस पीठ के न्यायाधीशों को भेजा जाना है जिन्होंने याचिका को प्रभावित करने वाला फ़ैसला किया था।
  5. यदि उपरोक्त पीठ के अधिकांश न्यायाधीश इस बात पर सहमत होते हैं कि मामले की सुनवाई की माँग वाजिब है, तो याचिका को उसी पीठ के पास भेजा जाता है, यदि संभव हो तो।
  6. यदि याचिकाकर्ता की याचिका में दम नहीं है तो न्यायालय उस पर "अनुकरणीय जुर्माना" लगा सकती है।

यह सभी देखें[संपादित करें]

संदर्भ[संपादित करें]

  1. "Rupa Ashok Hurra vs Ashok Hurra And Another on 10 April, 2002". www.indiankanoon.org. अभिगमन तिथि 10 July 2018.
  2. Anand, Utkarsh (29 July 2015). "Explained- 1993 Mumbai serial blast: What is curative petition?". The Indian Express. अभिगमन तिथि 6 September 2019.
  3. "The curious case of a curative petition". मूल से 29 July 2015 को पुरालेखित.
  4. "What is curative petition?".
  5. "Rupa Ashok Hurra vs Ashok Hurra & Anr". अभिगमन तिथि 7 May 2012.