अखिल भारतीय आयुर्वेद महासम्मेलन

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अखिल भारतीय आयुर्वेद महासम्मेलन (All India Ayurvedic Congress) की स्थापना १९०७ में वैद्य शास्त्री शंकर दाजी पदे द्वारा 24 मई, 1907 को नासिक में एक बैठक में की गई थी जिसमें अच्छी संख्या में वैद्य और विद्वानों ने भाग लिया था। वे आयुर्वेद और संस्कृत के महान विद्वान थे। उनके पिता पं. दाजी पाडे शास्त्री ज्योतिष शास्त्र के महान विद्वान थे। उनके पूर्वज वेद के विद्वान और पेशवाओं के राज पंडित थे।

शास्त्री शंकर दाजी पदे शास्त्री का जन्म 30 मार्च, 1867 को मुंबई के नागपारा इलाके में हुआ था। उन्होंने आयुर्वेद न्याय के अतिरिक्त व्याकरण और मीमांसा का भी अध्ययन किया। उन्हें मराठी और हिंदी का भी अच्छा ज्ञान था। उन्होंने वर्ष 1883 में 'राजवैद्य' और 1888 में 'आर्य-भिषक' नामक आयुर्वेद की मासिक पत्रिका शुरू की। उन्होंने 1904 में एक हिंदी पत्रिका 'सद्वैद्य कौस्तुभ' का संपादन भी किया।

वडोदरा के तत्कालीन राजा महाराजा गायकवाड़ उनके बहुत बड़े समर्थक थे और सभी उनकी प्रशंसा करते थे। उन्होंने 1906 में सयाजी राव आयुर्वेद विद्यापीठ नाम से एक आयुर्वेदिक स्कूल शुरू किया। संस्कृत एवं प्राच्य विद्या के महान सम्मेलन के दौरान 1907 में उनके द्वारा अखिल भारतीय आयुर्वेदिक महासम्मेलन की स्थापना की गयी, जिसकी अध्यक्षता कुँवर सरयू प्रसाद नारायण सिंह जी ने की। 1908 में उनके द्वारा प्रयाग में आयुर्वेदिक कांग्रेस की एक शाखा की स्थापना की गई।

अखिल भारतीय आयुर्वेद महासम्मेलन का दूसरा वार्षिक सत्र 1908 में मुंबई के पास पनवेल में आयोजित किया गया था। वह 1909 में वाराणसी में अखिल भारतीय आयुर्वेदिक कांग्रेस का तीसरा सत्र आयोजित करना चाहते थे लेकिन 30 मार्च, 1909 को उनकी मृत्यु हो गई। उन्होंने अपनी पूरी संपत्ति रुपये दान कर दी।

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