अ
अ देवनागरी लिपि का पहला वर्ण तथा संस्कृत, हिंदी , मराठी, नेपाली आदि भाषाओं की वर्णमाला का पहला अक्षर एवं ध्वनि है। यह एक स्वर है। यह कंठ्य वर्ण है।। इसका उच्चारण स्थान कंठ है। इसकी ध्वनि को पाश्चात्य भाषाविज्ञान में श्वा कहा जाता है।
यह संस्कृत तथा भारत की समस्त प्रादेशिक भाषाओं की वर्णमाला का प्रथम अक्षर है। इब्राली भाषा का 'अलेफ्', यूनानी का 'अल्फा' और लातिनी, इतालीय तथा अंग्रेजी का ए (A) इसके समकक्ष हैं।
अक्षरों में यह सबसे श्रेष्ठ माना जाता हैं। उपनिषदों में इसकी बडी महिमा लिखी है। तंत्रशास्त्र के अनुसार यह वर्णमाला का पहला अक्षर इसलिये है क्योंकि यह सृष्टि उत्पन्न करने के पहले सृष्टिवर्त की आकुल अवस्था को सूचित करता है।[1]
श्रीमद्भग्वद्गीता में कृष्ण स्वयं को अक्षरों में अकार कहते हैं- 'अक्षराणामकारोस्मि'।
अ हिंदी वर्णमाला का स्वर वर्ण है उच्चारण की दृष्टि से अ निम्नतर,मध्य,अगोलित,ह्रस्व स्वर है कुछ स्थितियों में अ का उच्चारण स्थान ह वर्ण से पूर्व (ह्रस्व ऐ: ऍ) भी होता है जैसे कहना में वह में अ का उच्चारण स्थान (हृस्व ए) भी है [पूर्व प्रत्यय]अ हिंदी में पूर्व प्रत्यय के रूप में भी बहुप्रयुक्त वर्ण है अ पूर्व प्रत्यय के रूप में प्रयुक्त होकर प्रायः मूल शब्द के अर्थ का नकारात्मक अथवा विपरीत अर्थ देता है,जैसे-अप्रिय,अन्याय,अनीति ऊ अन्यत्र मूल शब्द के पूर्ण न होने की स्थिति भी दर्शाता है,जैसे-अदृश्य,अकर्म अ पूर्व प्रत्यय मूल शब्द के भाव के अधिकार को सूचित करता है,जैसे-अघोर।
अ से शब्द बनाने के लिए यहां कुछ उदाहरण हैं:[संपादित करें]
- अच्छा (Achha) - Good
- अगला (Agla) - Next
- अमर (Amar) - Immortal
- अनुभव (Anubhav) - Experience
- अपना (Apna) - Own
- अभियांत्रिकी (Abhiyantriki) - Engineering
- अर्थ (Arth) - Meaning
- अवसर (Avsar) - Opportunity
- अल्प (Alp) - Small
- अकेला (Akela) - Alone
- Application For Leave
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ये केवल कुछ उदाहरण हैं। हिंदी भाषा में अनेक शब्द उपलब्ध हैं,
शब्द रूप के लिए यहां देखें:
- Yat Shabd Roop Striling | यत् शब्द रूप स्त्रीलिंग संस्कृत में
- Vanam Shabd Roop | वनम् शब्द रूप संस्कृत में
- Shikshak Shabd Roop | शिक्षक शब्द रूप संस्कृत में
- Vidyalaya Shabd Roop | विद्यालय शब्द रूप संस्कृत में
- Tat Shabd Roop Pulling | तत् शब्द रूप पुल्लिंग संस्कृत में
- Vadhu Ka Shabd Roop | वधू का शब्द रूप संस्कृत में
बच्चों के वर्कशीट:
उच्चारण[संपादित करें]
पाणिनि के अनुसार इसका उच्चारण कंठ से होता है। उच्चारण के अनुसार संस्कृत में इसके अठारह भेद हैं:-
- (१) सानुनासिक :
- ह्रस्व उदात्त अनुदात्त स्वरित
- दीर्घ उदात्त अनुदात्त स्वरित
- प्लुत उदात्त अनुदात्त स्वरित
- (२) निरनुनासिक :
- ह्रस्व उदात्त अनुदात्त स्वरित
- दीर्घ उदात्त अनुदात्त स्वरित
- प्लुत उदात्त अनुदात्त स्वरित
हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में अ के प्राय दो ही उच्चारण ह्रस्व तथा दीर्घ होते हैं। केवल पर्वतीय प्रदेशों में, जहाँ दूर से लोगों को बुलाना या संबोधन करना होता है, प्लुत का प्रयोग होता है। इन उच्चारणों को क्रमश अ, अ२ और अ३ से व्यक्त किया जा सकता है। दीर्घ करने के लिए अ के आगे एक खड़ी रेखा जोड़ देते हैं जिससे उसका आकार आ हो जाता है। संस्कृत तथा उससे संबद्ध सभी भाषाओं के व्यंजन में अ समाहित होता है और उसकी सहायता से ही उनका पूर्ण उच्चारण होता है। उदाहरण के लिए, क= क्+ अ; ख= ख्+ अ, आदि। वास्तव में सभी व्यंजनों को व्यक्त करने वाले अक्षरों की रचना में अ प्रस्तुत रहता है। अ का प्रतीक खड़ी रेखा (।) है जो व्यंजन के दक्षिण, मध्य या ऊपरी भाग में वर्तमान रहती है, जैसे क में मध्य में है; ख, ग, घ में दक्षिण भाग में तथा ङ , छ , ट आदि में ऊपरी भाग में है।
अ स्वर की रचना के बारे में वर्णोद्धारतंत्र में उल्लेख है। एक मात्रा से हो रेखाएँ मिलती हैं। एक रेखा दक्षिण ओर से घूमकर ऊपर संकुचित हो जाती है; दूसरी बाईं ओर से आकर दाहिनी ओर होती हुई मात्रा से मिल जाती है। इसका आकार प्राय इस प्रकार संगठित हो सकता है।
चौथी शती ई. पू. की ब्राह्मी से लेकर नवीं शती ई. को देवनागरी तक इसके बहुत से रूप मिलते हैं।
अर्थ एवं प्रयोग[संपादित करें]
'अ' का प्रयोग अव्यय के रूप में भी होता है। तत्पुरुष समास में नकार का लोप होकर केवल अकार रह जाता है; अऋणी को छोड़कर स्वर के पूर्व अ का अन् हो जाता है। तत्पुरुष में अ का प्रयोग निम्नलिखित छह विभिन्न अर्थों में होता है
(1) सादृश्य- अब्राह्मण। इसका अर्थ है ब्राह्मण को छोड़कर उसके सदृश दूसरा वर्ण, (क्षत्रिय, वैश्य आदि)।
(2) अभाव- अपाप। पाप का अभाव।
(3) अन्यत्व- अघट। घट छोड़कर दूसरा पदार्थ, पट, पीठ आदि।
(4) अल्पता- अनुदरी। छोटे पेटवाली।
(5) अप्राशस्त्य- अकाल। बुरा काल, विपत्काल आदि।
(६) विरोध- असुर। सुर का विरोधी, राक्षस आदि।
इसी तरह अ का प्रयोग संबोधन (अ!), विस्मय (अ:), अधिक्षेप (तिरस्कार) आदि में होता है।
- तत्सादृश्यमभावश्च तदन्यत्वं तदल्पता।
- अप्राशस्त्यं विरोधश्च नर्ंथाा षट् प्रकीर्तिता।।
अ (पुंलिंग, संज्ञा) अर्थ में विष्णु के लिए प्रयुक्त होता है। कहीं-कहीं अकार से ब्रह्मा का भी बोध होता है। तंत्रशास्त्र के अनुसार अ में ब्रह्मा, विष्णु और शिव तथा उनकी शक्तियाँ वर्तमान हैं। तंत्र में अ के पर्याय सृष्टि, श्रीकंठ, मेघ, कीर्ति, निवृत्ति, ब्रह्मा, वामाद्यज, सारस्वत, अमृत, हर, नरकाटि, ललाट, एकमात्रिक, कंठ ब्राह्मण, वागीश तथा प्रणवादि भी पाए जाते हैं। प्रणव के (अ+ उ+ म) तीन अक्षरों में अ प्रथम है। योग साधना में प्रणव (आे३म्) और विशेषतः उसके प्रथम अक्षर अ का विशेष महत्त्व है। चित्त एकाग्र करने के लिए पहले पूरे ओ३म का उच्चारण न कर उसके बीजाक्षर अ का ही जप किया जाता है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इसके जप से शरीर के भीतरी तत्त्व कफ, वायु, पित्त, रक्त तथा शुक्र शुद्ध हो जाते हैं और इससे समाधि की पूर्णावस्था की प्राप्ति होती है।
सन्दर्भ[संपादित करें]
- ↑ हिंदी शब्दसागर, काशी नागरी प्रचारिणी सभा
- ↑ "1500+ आ की मात्रा वाले शब्द | Aa ki Matra Wale shabd - Easy » Aa Ki Matra Wale Shabd" (अंग्रेज़ी में). 2023-10-17. अभिगमन तिथि 2023-11-07.
- ↑ "1500+ आ की मात्रा वाले शब्द | Aa ki Matra Wale shabd – Easy". Aa ki Matra Wale shabd.