कुनान पोशपोरा वाकिया

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कुनान पोशपोरा वाकिया इंडियन फौज पर लगा एक इल्ज़ाम है, जिस के मुताबिक भारतीय फौजीयों की एक टुकड़ी ने 1991 में जम्मू-कश्मीर के कुनान और पोशपोरा नाम के दो गावों के औरतों के साथ गैंगरेप कीये थे। सब से छोटी रेप विकटिम की उम्र सिर्फ 14 साल थी। पुलिस FIR में 23 औरतों ने अपने साथ रेप कीये जाने की शिकायत दर्ज करवायी थी। 2007 में 40 औरतें जम्मू-कश्मीर ह्युमन राइटस कमीश्न के पास इनसाफ की गुहार ले कर पहुँची थी। फौज और सरकार इस इल्ज़ाम को बेबुनियाद बताते हैं, जबकि घटना पर पहुँचने वाले पहिले सरकारी अफसर और उस वक्त के कुपवाड़ा के डिपटी कमीश्नर S M यासिन अपनी रिपोर्ट में लिखते हैं कि फौज ने "दरिंदो की तरह सलूक कीया था।"[1]

वाकिया[संपादित करें]

1991 की फरवरी की एक रात को भारतीय फौज की 68 ब्रीगेड की 4 राजपुताना राइफलस के जवान गश्त करते हूये कुनान और पोशपोरा के गावों में पहुँचे। वहां उन्होने दोने गावों के मरदों को कुनान के दो घरों में बंद कर दिया और वहां की औरतो के साथ रेप कीये। इल्ज़ाम लगाने वाली सब से बज़ुर्ग औरत 70 साल और सब से जवान औरत सिर्फ 14 साल की थी। वाकिये से कुछ दिन बाद तक किसी को गाँव से बाहर नही आने दीया गया। इस लिये रेप की इस घटना की FIR दो हफ़ते बाद 8 मार्च को लिखवायी गयी।[1]

जाँच[संपादित करें]

उस वक्त के कुपवाड़ा के डिपटी कमीश्नर S M यासिन कुनान पहुँचने वाले पहिसे सरकारी मुलाज़िम थे। उन्होने उस वक्त के कश्मीक के डिविजन कमिश्नर वजाहत हबीबुल्ला को लिखी एक रिपोर्ट में कहा कि वह इस ज़ियादती को काले अक्षरों में उतारते हुये शरमसार थे। हबीबुल्ला ने एक हफ़ते से ज़्यादा वक्त तक कोई जवाब नही दिया। फिर हबीबुल्ला ने गांवो का दौरा कीया और एक गुप्त रिपोर्ट लिखी जिस में उन्होने कहा कि रेप के इल्ज़ाम संदेहात्मक और बड़ा-चड़ा कर बताये लगते हैं। बाद में डिफैंस मिनिसट्री ने सच मालूम करने के लिये एक जाँच कमीश्न भेजा। उस वक्त के प्रैस काउंसिल के प्रैज़ीडैंट B G वेरगीज़ जाँच कमीश्न के चेअरमैन थे। उन्होने कहा कि यह रेप का इल्ज़ाम दहश्तगरद ग्रुप और उनके सहयोगियों की तरफ से बनाया गया एक बहुत बड़ा धोखा है।[1]

असर[संपादित करें]

तालीम पर[संपादित करें]

वाकिये ने कुनान और पोशपोरा के गांवो पर बहुत बुरा असर छोड़ा है। 21 जुलाई 2013 को The Indian Express में छपी एक रिपोर्ट इस बात को दसतावेज़ करदी है कि विकटिमों के परिवारवालों को बिरादरी से बेदख्ल कर दिया गया है। वाकिये के 22 सालों के दौरान सिर्फ दो सटुडैंट यूनिवरसिटी में पहुँचे हैं। बहुत से विद्यार्थी 8वीं जमात के बाद कुपवाड़ा और त्रेगाम के गांवो के लोगों के ताने और कटाक्ष बोल सुनने की बजाये सकूल छोड़ना पंसद करते है। दोनों गावों में सिर्फ एक सरकारी सकूल है जो 8वीं कलास तक तालीम देता है।[1]

विवाह[संपादित करें]

जो परिवार इस वाकिये से बेदाग़ बाहर आये थे, वह विकटिमों के परिवारों के साथ बातचीत नही करते। मां-बाप कहते हैं कि बच्चों की शादी करने बहुत मुश्किल है। कम से कम एक परिवार ने अपनी 16 सालों की बेटी को 50 बरसीय तीन बच्चों के रंडे बाप के साथ विवाहने की बात कबूली है क्योंकि गाँव में से कोई भी जवान लड़का आगे नही आया और वाकियो के बाद गांव के बाहर ने दुल्हा दरयाफत करना नामुमकिन था।[1]

डर का माहौल[संपादित करें]

गांव वालों ने 2007 में इनसाफ पाने के लिये कुनानपोशपोरा कोआरडीनेशन कमेटी (KCC) बनायी। KCC के हैड 70 सालों का ग़ुलाम अहमद दर हैं। उन्होने जुलाई 2013 में The Indian Express को बताया कि अगर कोई रिपोर्टर या ह्युमन राइटस कमीश्न का बंदा इन के गांव में आता है तो पुलिसवाले और IB के लोग पीछे-पीछे आ जाते हैं। अख़बार के मुताबिक गांवो के लोग मुस्सल चौकस रहते हैं, क्या पला सादे कपड़ों में कोई पुलिसवाला या जासूस ही ना हौ।[1]

हवाले[संपादित करें]

  1. Bashaarat Masood; Rifat Mohidin (2013-07-21). "The Silence of a Night". The Indian Express (अंग्रेज़ी में). पपृ॰ 10, 11. मूल से 27 जुलाई 2013 को पुरालेखित.