"मधुमेह टाइप 2": अवतरणों में अंतर

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मधुमेह टाइप 2 (जिसे पहले इन्सुलिन-अनाश्रित मधुमेह (NIDDM) या वयस्क उम्र में उत्पन्न होने वाली मधुमेह कहा जाता था ) एक प्रकार का चयापचय विकार है जिसमें इन्सुलिन प्रतिरोध और अपेक्षाकृत इन्सुलिन अभाव के परिप्रेक्ष्य में उच्च रक्त ग्लुकोज पाया जाता है.[1] मधुमेह का प्रारंभिक उपचार अकसर अधिक व्यायाम और आहार के परिवर्तन द्वारा किया जाता है. जैसे-जैसे रोग बढ़ता है, दवाईयों की आवश्यकता पड़ सकती है.

टाइप 1 मधुमेह के प्रतिकूल, इसमें कीटोएसिडोसिस होने की संभावना बहुत कम होती है, हालांकि यह अज्ञात नहीं है. इसमें नॉनकीटोनिक रक्तशर्करा-आधिक्य हो सकता है. उच्च रक्त शर्करा की दीर्घकालीन जटिलताओं में हृदय के दौरे,लकवा,अंगविच्छेदन और गुर्दे के निष्क्रिय हो जाने का बढ़ा हुआ जोखम शामिल है.

संकेत और लक्षण

मधुमेह के खास लक्षण हैं – अधिक मूत्र आना,अधिक प्यास लगना और अधिक भूख लगना.

कारण

टाइप 2 मधुमेह मुख्यतः जीवनशैली और जननवैज्ञानिक कारणों से होती है.

जीवन-शैली

टाइप 2 मधुमेह की उत्पत्ति के लिये कई जीवनशैली कारकों को महत्वपूर्ण माना गया है. एक अध्ययन में पाया गया कि अधिक शारीरिक गतिविधि करने वाले, स्वस्थ आहार लेने वाले, धूम्रपान न करने वाले और नियंत्रित मात्रा में मद्यपान करने वाले लोगों में मधुमेह की दर 82% कम थी. जब सामान्य वजन वालों का इसमें समावेश किया गया तो दर 89% कम थी. इस अध्ययन में स्वस्थ आहार की परिभाषा थी, रेशे की अधिकता, उच्च बहुअसंतृप्त और संतृप्त वसा के बीच का अनुपात, और निम्न औसत रक्तशर्करा सूचकांक (ग्लाईसीमिक इंडेक्स).[2] लगभग 55% टाइप 2 मधुमेह के रोगियों में मुख्य कारण मोटापा पाया गया[3] और संतृप्त वसाट्रांस वसा अम्लों के सेवन को कम करके और असंतृप्त वसा की मात्रा बढ़ाकर जोखम को कम किया जा सकता है.[4] 1960 और 2000 के दशकों में बाल्यकाल के मोटापे की दर में हुई वृद्धि को बच्चों और किशोरों में टाइप 2 मधुमेह की वृद्धि के लिये जिम्मेदार समझा जाता है.[5]

पर्यावरणीय विषाक्त पदार्थ हाल में हुई टाइप 2 मधुमेह की दर में वृद्धि के लिये जिम्मेदार हो सकते हैं. कुछ प्लास्टिकों के घटक, बिस्फिनॉल ए की मूत्र में सांद्रता और टाइप 2 मधुमेह के बीच सकारात्मक संबंध पाया गया है.[6]

स्वास्थ्य विकार

ऐसे कई घटक हैं जो टाइप 2 मधुमेह को उत्पन्न या उसकी तीव्रता को बढ़ा सकते हैं. इनमें मोटापा, उच्च रक्तचाप, बढ़ा हुआ कॉलेस्ट्रॉल (रक्त में संयुक्त वसा का आधिक्य), और चयापचयी रोगसमूह नामक विकार (सिंड्रोम X, रीवन्स सिंड्रोम या CHAOS) शामिल हैं. अन्य कारणों में हैं, एक्रोमिगेली, कुशिंग्स सिंड्रोम, थॉयरोटक्सिसोसिस, फियोक्रोमोसाइटोमा, दीर्घकालिक अग्न्याशयशोथ, कैंसर और दवाईयां. इनके अतिरिक्त बुढ़ापा, अधिक वसायुक्त आहार[7] और कम सक्रिय जीवनशैली टाइप 2[8] मधुमेह के जोखम को बढाने वाले अन्य घटक हैं.[9]

अनैदानिक कुशिंग सिंड्रोम (कॉर्टीसॉल का आधिक्य) में मधुमेह टाइप 2 पाया जा सकता है.[10] मधुमेह से ग्रस्त जनता में अनैदानिक कुशिंग सिंड्रोम का प्रतिशत लगभग 9 है.[11] पिट्यूटरी माइक्रोएडीनोमा से ग्रस्त मधुमेह के रोगियों में इन माइक्रोएडीनोमाओं को निकाल देने पर इन्सुलिन संवेदनशीलता में सुधार हो सकता है.[12]

जननांग-अल्पता में अकसर कॉर्टीसॉल का आधिक्य होता है, और टेस्टोस्टीरॉन की कमी में भी मधुमेह टाइप 2 देखी जाती है,[13][14] हालांकि यह अभी तक ज्ञात नहीं है कि टेस्टोस्टीरॉन द्वारा इन्सुलिन संवेदनशीलता में सुधार की सही प्रक्रिया क्या है.

जनन विज्ञान

टाइप 2 मधुमेह का प्रबल आनुवंशिक जननवैज्ञानिक संबंध है – टाइप 2 से ग्रस्त रिश्तेदार (विशेषकर प्रथम दर्जे के) होने पर टाइप 2 मधुमेह होने का जोखम काफी बढ़ जाता है. इसके अलावा, आइलेट अमिलॉइड पॉलिपेप्टाइड जीन में विकृति के कारण जल्दी शुरू होने वाली अधिक तीव्र मधुमेह हो जाती है.[15][16]

टाइप 2 के करीब 55 प्रतिशत रोगी निदान के समय मोटे होते हैं[17] – दीर्घकालिक मोटापे के कारण इन्सुलिन प्रतिरोध बढ़ जाता है जो टाइप 2 में विकसित हो सकता है, संभवतः इसलिये क्यौंकि एडीपोज ऊतक (विशेषतः पेट में आंतरिक अवयवों के चारों ओर) अन्य ऊतकों (हारमोन और साइटोकाइन) को अनेक रसायनिक संकेतों देने वाला स्रोत (हाल में पहचाना गया) है.

अन्य शोथ द्वारा दर्शाया गया है कि टाइप 2 मधुमेह इन्सुलिन प्रतिरोध के कारण चयापचय में आए परिवर्तनों और अन्य अव्यवस्थित कोशिका-व्यवहार के परिणाम स्वरूप मोटापा उत्पन्न करती है.[18]

फिर भी, किसी भी जीन संबंधी घटक के अलावा टाइप 2 के विकास में पर्यावरण के कारक (निश्चित रूप से आहार और वजन) बड़ी भूमिका निभाते हैं. एक ही जीन पूल से भिन्न पर्यावरण में जाने वाले लोगों का टाइप 2 जानपदिकरोग प्रकार ग्रहण करने की क्रिया में यह बात देखी जा सकती है. उदाहरण के लिये, मूल देशों में कम लोगों में टाइप 2 होने की तुलना में पाश्चात्य विकसित देशों को प्रवास करने वालों में इसकी अधिकता होना.[19]

टाइप 2 मधुमेह का अधिक प्रबल आनुवंशिक पैटर्न होता है. टाइप 2 से ग्रस्त प्रथम दर्जे के संबंधियों वाले लोगों में टाइप 2 होने का काफी अधिक जोखम होता है, जो उन संबंधियों की संख्या के साथ बढ़ता है. मोनोजाइगोटिक जुड़वाओं में कॉनकार्डेंस करीब 100% होता है और रोग से ग्रस्त होने वालों के 25% तक लोगों में मधुमेह का पारिवारिक इतिहास होता है. टाइप 2 मधुमेह के विकास से मुख्य रूप से जुड़ी जीनों में TCF7L2 , PPARG , FTO , KCNJ11 , NOTCH2 , WFS1 , CDKAL1 , IGF2BP2 , SLC30A8 , JAZF1 , और HHEX शामिल हैं.[20] KCNJ11 (पोटेशियम भीतर की ओर रेक्टीफाइंग चैनल, सबफैमिली J, सदस्य 11), आइलेट एटीपी-संवेदनशील पोटेशियम चैनल Kir6.2 को एनकोड करता है, और टीसीएफ7एल2 (ट्रांसक्रिप्शन फैक्टर 7-लाइक 2) प्रोग्लुकोगॉन जीन अभिव्यक्ति और इस तरह ग्लुकोगॉन सदृश पेप्टाइड-1 को नियंत्रित करता है.[21] इसके अलावा मोटापा (जो टाइप 2 मधुमेह का एक स्वतंत्र जोखम कारक है) प्रबल रूप से आनुवंशिक होता है.[22]

मोनोजेनिक प्रकार, उदा. मोडी, सभी मामलों के 1–5 % तक होते हैं.0

विभिन्न आनुवंशिक रोगों में मधुमेह हो सकती है, उदा. मयोटोनिक डिस्ट्रॉफी और फ्रेड्रीच्स एटेक्सिया. वोल्फ्राम्स सिंड्रोम एक आटोसोमल रिसेसिव विकार है जो सबसे पहले बाल्यकाल में परिलक्षित होता है. इसमें डायाबिटीज इनसिपिडस, डायाबिटीज मेलिटस, आप्टिक एट्रॉफी, और बहरापन (deafness) होता है, इसलिये इसे संक्षिप्त में DIDMOAD कहा जाता है.[23]

वसा और ग्लुकोज युक्त आहार के द्वारा समर्थित जीन अभिव्यक्ति तथा मोटे लोगों में पाए जाने वाले शोथ-सबंधित साइटोकाइनों के उच्च स्तरों के परिणाम स्वरूप ऐसी कोशिकाओं की उत्पत्ति होती है जो "कम संख्या में और सामान्य से छोटे आकार के माइटोकॉंड्रिया का निर्माण करती हैं", और इस तरह इन्सुलिन प्रतिरोधक बन जाती हैं.[24]

दवाईयां

विभिन्न रोगों के उपचार के लिये प्रयुक्त कुछ दवाईयां इन्सुलिन नियंत्रण तंत्र में गतिरोध उत्पन्न कर सकती हैं और इससे संभवतः औषधि-जनित अधिकरक्तशर्करा हो सकती है. इसके कुछ उदाहरण,हर मामले में जीवरसायनिक प्रक्रिया के साथ निम्न हैं -

  • एटिपिकल एंटीसाइकोटिक्स-ये ग्राहक बंधक गुणों को परिवर्तित करते हैं, जिससे इन्सुलिन प्रतिरोध बढ़ जाता है.
  • बीटा-ब्लॉकर्स-ये इन्सुलिन के स्राव को कम करते हैं.
  • कैल्शियम चैनल ब्लॉकर्स-ये साइटोसॉलिक कैल्शियम निकास को बाधित करके इन्सुलिन के स्राव को रोकते हैं.
  • कॉर्टिकोस्टीरायड्स-ये परिधिक इन्सुलिन प्रतिरोध और ग्लुकोनियोजेनेसिस उत्पन्न करते हैं.
  • फ्लोरोक्विनोलोन्स-ये एटीपी संवेदनशील पोटाशियम चैनलों को अवरूद्ध करके इन्सुलिन स्राव में कमी लाते हैं.
  • नियासिन-अधिक मुक्त वसा अम्ल वहन द्वारा इन्सुलिन प्रतिरोधकता को बढ़ाता है.
  • फेनोथायाज़ीन्स-इन्सुलिन स्राव को रोकते हैं.
  • प्रोटियेज़ इनहिबिटर्स-प्रोइन्सुलिन का इन्सुलिन में परिवर्तन को रोकते हैं.
  • सोमाट्रॉपिन-कुछ लोगों में इन्सुलिन के प्रति संवेदनशीलता को कम कर सकते हैं.
  • थायाज़ाइड डाइयूरेटिक्स-हाइपोकैलिमिया के कारण होने वाले इन्सुलिन स्राव को रोकते हैं. ये मुक्त वसा अम्ल वहन द्वारा भी इन्सुलिन प्रतिरोधकता बढ़ाते हैं.

विकारीशरीरक्रिया

इन्सुलिन प्रतिरोध का मतलब है, इन्सुलिन की मौजूदगी में शरीर की कोशिकाओं का उचित प्रतिक्रिया न करना. टाइप 1 मधुमेह के प्रतिकूल इन्सुलिन प्रतिरोध सामान्यतः ग्राहक-पश्चात् होता है, अर्थात् यह समस्या इन्सुलिन के उत्पादन से संबंधित न होकर कोशिकाओं के इन्सुलिन के प्रति व्यवहार से संबंधित होती है.

यह टाइप 1 की अपेक्षा अधिक जटिल समस्या है, किंतु कभी-कभी इसका उपचार अधिक आसान होता है, विशेषकर प्रारंभिक वर्षों में जब इन्सुलिन का आंतरिक उत्पादन अभी भी जारी रहता है. अनुचित तरीके से उपचार की गई टाइप 2 मधुमेह में तीव्र जटिलताएं उत्पन्न हो सकती हैं जिनमें गुर्दे की निष्क्रियता, इरेक्टाइल डिस्फंक्शन, अंधापन, जख्मों का धीरे सूखना (शल्यचिकित्सा के चीरों सहित), और धमनियों के रोग (कोरोनरी धमनी रोग सहित) शामिल हैं. टाइप 2 का प्रारंभ अधिकतर अधेड़ उम्र और उसके बाद होता है, हालांकि अब यह बाल्यकाल के मोटापे और निष्क्रियता के कारण किशोरों और युवा वयस्कों में भी होने लगी है. मोडी नामक मधुमेह के एक प्रकार को किशोरों में अधिक देखा जा रहा है, लेकिन इसका वर्गीकरण टाइप 2 मधुमेह के रूप में न करके विशिष्ट कारण से हुई मधुमेह के रूप में किया गया है.

किसी ज्ञात कारण, जैसे अन्य रोगों, ज्ञात जीन विकार, चोट या शल्य चिकित्सा, या दवाईयों के प्रभाव के परिणामस्वरूप हुई मधुमेह को अधिक उपयुक्त रूप से द्वितीयक मधुमेह या विशिष्ट कारण से हुई मधुमेह कहा जाता है. उदाहरणों में शामिल हैं, मोडी या हीमोक्रोमेटोसिस, अग्न्याशय की अपर्याप्तताओं, या कुछ तरह की दवाओं (उदा.लंबे अर्से तक स्टीरायड का प्रयोग) द्वारा उत्पन्न मधुमेह.

निदान

2006 WHO Diabetes criteria[25]  सम्पादन
Condition 2 hour glucose Fasting glucose
mmol/l(mg/dl) mmol/l(mg/dl)
Normal <7.8 (<140) <6.1 (<110)
Impaired fasting glycaemia <7.8 (<140) ≥ 6.1(≥110) & <7.0(<126)
Impaired glucose tolerance ≥7.8 (≥140) <7.0 (<126)
Diabetes mellitus ≥11.1 (≥200) ≥7.0 (≥126)

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा की गई मधुमेह की परिभाषा है,लक्षणों के साथ एक बढ़ा हुआ ग्लुकोज स्तर,अन्यथा दो अवसरों पर निम्न में से एक का बढा हुआ स्तर -[26]

  • निराहार प्लाज्मा ग्लुकोज≥ 7.0 मिलीमॉल/ली (126 मिग्रा/डेली)
या

जल्दी पहचान के टेस्टों की परिशुद्धता

यदि ग्लुकोज के सेवन के 2 घंटों के बाद के कम से कम 11.1 मिलीमॉल/ली (200मिग्रा/डेली) ग्लुकोज स्तर को संदर्भ मानक के रूप में प्रयुक्त किया जाय तो > 7.0 मिलीमॉल/ली (126 मिग्रा/डेली) निराहार प्लाज्मा ग्लुकोज स्तर चालू मधुमेह का निम्न प्रकार से निदान करता है -[27]

> 6.7 मिलीमॉल/ली (120 मिग्रा/डेली) अक्रमिक कैपिलरी रक्त ग्लुकोज स्तर चालू मधुमेह का निदान निम्न तरह से करता है[28]:

बढ़ी हुई (5% से अधिक), लेकिन मधुमेह के दायरे से बाहर (7.0% से ऊपर नहीं) ग्लायकोसिलेटेड हीमोग्लोबिन रिपोर्टें यूएस स्त्री स्वास्थ्य पेशेवरों में भावी क्लिनिकल मधुमेह की सूचक मानी जाती हैं.[29] इस अध्ययन में 6% या कम ग्लाइकोसिलेटेड हीमोग्लोबिन वाले 1061 रोगियों में से 177 को 5 वर्षों के भीतर मधुमेह हो गई, जबकि 6.0% या उससे अधिक ग्लाइकोसिलेटेड हीमोग्लोबिन वाले 26281 रोगियों में से 282 को ही मधुमेह हुई. यह 6.0% से अधिक ग्लाकोसिलेटेड हीमोग्लोबिन निम्न के बराबर है -

जल्दी पहचान के लाभ

यूएसपीएसटीएफ घोषणा की प्रकाशन के बाद, एक अक्रमित नियंत्रित अध्ययन किया गया जिसमें 25 से 40 शरीर पिंड सूचकांक किलोग्राम में वजन को मीटर मे ऊंचाई के वर्ग से भाग देकर प्राप्त राशि वाले 40 से 70 वर्ष के बीच के पुरूषों और स्त्रियों की उच्च जोखम वाली जनता के रोगियों को एकार्बोज दी गई. वे अध्ययन के लिये योग्य थे यदि उन्हें विश्व स्वास्थ्य संगठन के नियमों के अनुसार आईजीटी हो और असामान्य निराहार ग्लुकोज (निराहार प्लाज्मा ग्लुकोज 100 और 140 मिग्रा/डीएल के बीच या 5.5 और 7.8 मिलीमॉल/ली के बीच) में 44 लोग (3.3 वर्ष के समय में) पाए गए जिनमें कोई बड़ी हृदय-नलिका घटना से बचाने के लिये इलाज की आवश्यकता थी.[30]

अन्य अध्ययनों में दिखाया गया है कि जीवनशैली में परिवर्तन,[31] आरलिस्टैट[32], और मेटफार्मिन[33] मधुमेह के शुरू होने में देरी कर सकते हैं.

जांच

मधुमेह की जांच की सिफारिश जीवन के विभिन्न पड़ावों पर कई लोगों, और विभिन्न जोखम कारकों वालों के लिये की जाती है. स्क्रीनिंग टेस्ट अवसर के अनुसार भिन्न होते हैं और अक्रमित रक्त ग्लुकोज टेस्ट, निराहार रक्त ग्लुकोज टेस्ट, 75 ग्राम ग्लुकोज लेने के दो घंटों के बाद रक्त ग्लुकोज टेस्ट, या अधिक औपचारिक ग्लुकोज सह्यता टेस्ट हो सकता है. अनेक स्वास्थ्य कार्यकर्ता 40 या 50 वर्ष की उम्र में सभी वयस्कों के लिये और उसके बाद नियमित अवधियों पर जांच की सिफारिश करते हैं. जोखम कारकों, जैसे मोटापा, मधुमेह का पारिवारिक इतिहास, उच्च जोखम वाली जाति (हिस्पैनिक, मूल अमेरिकन, अफ्रो-कैरिबियन, पैसिफिक आईलैंडर या मावरी) के लोगों के लिये इससे भी पहले जांच की सिफारिश की जाती है. [34][35]

अनेक रोगों में मधुमेह होती है और उनमें जांच की जरूरत पड़ती है. एक आंशिक सूची है-अनैदानिक कुशिंग्स सिंड्रोम,[10] टेस्टोस्टीरॉन[13] की कमी, उच्च रक्तचाप, पश्च-गर्भकालीन मधुमेह, पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम, दीर्घकालिक अग्न्याशयशोथ, वसायुक्त यकृत, सिस्टिक फाइब्रोसिस, अनेक माइटोकांड्रियल नाड़ीविकार और पेशीविकार (जैसे MIDD), मयोटॉनिक डिस्ट्रॉफी, फ्रेड्रिक्स एटेक्सिया, नवजात हाइपरइनंसुलिनिज्म के कुछ आनुवंशिक प्रकार. अनेक प्रकार की औषधियों के लंबे समय तक प्रयोग से मधुमेह होने का जोखम बढ़ जाता है, जिनमें स्टारॉयडों का दीर्घकालिक प्रयोग, कुछ कीमोथेरेपी एजेंट (विशेषकर एस्पराजिनेज़), व कुछ एंटीसाइकोटिक और मूड स्टेबिलाइज़र (विशेषकर फेनोथायाजी़न और कुछ एटिपिकल एंटीसाइकोटिक) शामिल हैं.

मधुमेह के निश्चित निदान वाले लोगों की नियमित रूप से जटिलताओं के लिये परीक्षा की जाती है. इसमें माइक्रोअल्बूमिनूरिया के लिये वार्षिक मूत्र जांच और आंख की रेटिना की रेटिनोपैथी के लिये जांच शामिल है.

रोकथाम

टाइप 2 मधुमेह के प्रारंभ होने में अकसर उचित पोषण और नियमित व्यायाम द्वारा देरी की जा सकती है.[36]

प्रत्यक्ष मधुमेह होने के पहले रोगियों के उपचार से होने वाले फायदों पर शोथ के कारण मधुमेह की रोकथाम में रूचि जगी है. हालांकि यूएस प्रिवेंटिव सर्विसेज़ टास्क फोर्स ने कहा है कि बिना लक्षण वाले वयस्कों में टाइप 2 मधुमेह,असामान्य ग्लुकोज़ सह्यता या निराहार ग्लुकोज़ के लिये नियमित स्क्रीनिंग की सिफारिश के लिये[37] पर्याप्त सबूत नहीं हैं,[38][27]2003 में प्रकाशित होने के समय यह एक ग्रेड I सिफारिश थी. फिर भी यूएसपीएसटीएफ उच्च रक्तचाप या हाइपरलिपिडीमिया से ग्रस्त वयस्कों में मधुमेह के लिये जांच की सिफारिश करता है. [39]

2005 में एजेंसी फार हैल्थकेयर रिसर्च एण्ड क्वालिटी द्वारा प्रस्तुत एक सबूत रिपोर्ट में कहा गया कि,[40]ऐसे सबूत उपलब्ध हैं जिनके अनुसार संयुक्त आहार और व्यायाम तथा औषधिक उपचार(मेटफार्मिन और एकार्बोज़)आईजीटी लोगों में मधुमेह के बढ़ने से रोकने में प्रभावशाली हो सकते हैं.[41]

दूध का संबंध भी मधुमेह की रोकथाम से दर्शाया गया है. चोइ और अन्य द्वारा 41,254 पुरूषों में किये गए एक प्रश्नावली अध्ययन,जिसमें 12 वर्ष तक अनुसरण भी किया गया,में यह संबंध देखा गया. इस अध्ययन में यह पाया गया कम वसा युक्त दुग्ध-उत्पाद में प्रचुर आहार पुरूषों में टाइप 2 मधुमेह के जोखम को कम कर सकता है. हालांकि इन फायदों को दूध के उपयोग से जोड़ा जा रहा है,फिर भी आहार का प्रभाव शरीर के समूचे स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला केवल एक कारक है.[42]

जीवनशैली

कई मामलों में टाइप 2 मधुमेह का जोखम आहार में परिवर्तन और शारीरिक व्यायाम बढ़ाकर कम किया जा सकता है.[31][43][44] अमेरिकन डायाबिटीज एसोसियेशन स्वस्थ वजन बनाए रखने,प्रति सप्ताह कम से कम 2½ घंटे व्यायाम करने(अनेक बार तेजी से चलना काफी है),नियंत्रित मात्रा में वसा का प्रयोग,और पर्याप्त रेशा(उदा.संपूर्ण अनाज से) खाने की सिफारिश करता है.

इस विषय में अपर्याप्त सबूत है कि कम ग्लाइसीमिक इंडेक्स वाले आहार खाने से लाभ होता है,यद्यपि इस बारे में सिफारिशें की गई हैं और आहार बतलाए गए हैं.[45]

बहुत कम संतृप्त वसा वाले आहार इन्सुलिन प्रतिरोधक और मधुमेह से ग्रस्त होने के जोखम को कम करते हैं.[46][47] ऐसे अध्ययन समूह भागीदार जिनके शारीरिक गतिविधि स्तर और आहार,धूम्रपान,और मद्यपान की आदतें कम जोखम वाले समूह में थीं,उनमें मधुमेह 82% कम पाया गया. [2] आहार-चलन और मधुमेह की घटना के एक और अध्ययन के अनुसार,मांस के संतप्त वसा और वसा-प्रचुर दुग्ध उत्पादों से भरपूर आहारों की जगह अहाइड्रोजनित मार्गरीन,फलियों और बीजों सहित वनस्पति तेलों से प्रचुर आहारों का सेवन करना चाहिये. आंशिक रूप से हाइड्रोजनित वसाओं का सेवन कम से कम करना चाहिये.[4]

अनेक अध्ययनों में कतिपय आहारों के सेवन या कुछ दवाईयों और टाइप 2 मधुमेह के कुछ पहलुओं के बीच संबंधों को दर्शाया गया है. माताओं में रोग के टाइप 2 की रोकथाम का संबंध स्तनपान से भी हो सकता है.[48]

दवाईयां

कुछ अध्ययनों में पूर्वाग्रही रोगियों में मेटफार्मिन,[43]रोज़िग्लिटाज़ोन[49] या वलसार्टान के रोकथामक प्रयोग द्वारा मधुमेह के विकास को धीमा होते दर्शाया गया है.[50] हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन पा रहे गठिया से पीड़ित रोगियों में मधुमेह की घटना 77% कम पाई गई,हालांकि इसकी प्रक्रिया स्पष्ट नहीं है.[51] वजन की कमी होने या न होने पर भी मेटफार्मिन की अपेक्षा जीवनशैली परिवर्तन मधुमेह की रोकथाम में अधिक प्रभावशाली हैं.[52]

उपचार

उपचार न करने पर मधुमेह टाइप 2 एक दीर्घकालिक,वर्धमान रोग होता है,लेकिन ऐसे अच्छे उपचार अब उपलब्ध हैं जो इस रोग के अब तक टाले न जा सकने वाले परिणामों को धीमा या पूरी तरह से होने से रोक सकते हैं. अकसर,इस रोग को वर्धमान माना जाता है क्यौंकि रक्त शर्करा के गलत उपचार के कारण अनेक बिगड़ने वाली समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं. लेकिन यदि रक्त शर्करा को उचित प्रकार से नियंत्रित किया गया तो यह रोग,एक सीमित हद तक, ठीक हो सकता है-यानी,रोगियों को नाड़ीविकार,अंधेपन,या कोई और उच्च रक्त शर्करा से संबंधित समस्या का अधिक जोखम नहीं होता,हालांकि इसमें निहित मुद्दे, रक्तशर्करा-आधिक्य को सीधे तरीके से निपटाया नहीं गया है. 2005 में यूसीएलए में किये गए एक अध्ययन में दिखाया गया कि आहार और व्यायाम के प्रितकिन कार्यक्रम ने मधुमेह और पूर्वमधुमेह से ग्रस्त लोगों को एक समूह में केवल तीन हफ्तों में नाटकीय सुधार लाया,जिससे करीब आधे लोगों में रोग के सबूत खत्म हो गए. [53] [54] [55]

उपचार के दो मुख्य लक्ष्य हैं -

  1. मृत्यु दर और रूग्णता(चुनी हुई मधुमेह की समस्याओं से) में कमी लाना
  2. जीवन की गुणवत्ता का संरक्षण

पहले लक्ष्य को अच्छे रक्तशर्करा नियंत्रण द्वारा प्राप्त किया जा सकता है(अर्थात्,सामान्य रक्त स्तरों के पास); मधुमेह के दुष्प्रभावों की तीव्रता में कमी को कई बड़े चिकित्सकीय अध्ययनों में बहुत अच्छी तरह से दर्शाया गया है और निर्विवाद रूप से स्थापित किया जा चुका है. दूसरे लक्ष्य को अकसर (विकसित देशों में)मधुमेह के स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की टीमों(सामान्यतः चिकित्सक,पीए,नर्स,आहार विशेषज्ञ या प्रमाणित मधुमेह शिक्षक) के समर्थन और ध्यान द्वारा संभाला जाता है. एंडोक्रिनोलाजिस्ट,पारिवारिक चिकित्सक और जनरल इंटर्निस्ट ऐसे विशेषज्ञ चिकित्सक हैं जो मधुमेह से ग्रस्त लोगों का इलाज करते हैं. जानकार रोगी सहभागिता चिकित्सकीय सफलता के महत्वपूर्ण है और इसलिये रोगी शिक्षा इस प्रयत्न का विशिष्ट पहलू है.

टाइप 2 का शुरू में आहार में परिवर्तन और व्यायाम,और विशेषकर मोटे रोगियों में वजन में कमी लाकर उपचार किया जाता है. चिकित्सकीय दृष्य को सुधारने के लिये आवश्यक वजन में कमी की मात्रा अकसर जरा सी होती है (2-5 किग्रा या 4.4-11पौंड); यह अवश्य रूप से अभी कम समझे गए वसा ऊतक गतिविधि के पहलुओं के कारम होता है, जैसे रसायनिक संकेत (विशेषकर पेट के अवयवों के भीतर और उनके चारों ओर के वसा ऊतक में). अनेक मामलों में,ऐसे प्रारंभिक प्रयास इन्सुलिन संवेदनशीलता को काफी हद तक वापस ला सकते हैं. कुछ मामलों में कड़ा आहार नियंत्रण पर्याप्त रूप से रक्तशर्करा स्तरों को नियंत्रित कर सकता है.

मधुमेह की शिक्षा चिकित्सकीय सुश्रूषा का अनिवार्य घटक है.

लक्ष्य

टाइप 2 मधुमेह के रोगियों के उपचार के लक्ष्य रक्त ग्लुकोज,रक्तचाप और वसापदार्थों के प्रभावशाली नियंत्रण से संबंध रखते हैं जिससे मधुमेह से संबंधित दीर्घकालिक परिणामों के जोखम को न्यूनतम किया जा सके. इनके विषय में विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मधुमेह एजेंसियों द्वारा निर्गमित क्लिनिकल प्रैक्टिस मार्गदर्शिका में बतलाया गया है.

ये लक्ष्य हैं -

अधिक उम्र वाले रोगियों में अमेरिकन जीरियाट्रिक सोसाइटी द्वारा दी गई क्लिनिकल प्रैक्टिस मार्गदर्शन के अनुसार-कमजोर बूढ़े वयस्कों के लिये,जिनकी जीने की अपेक्षा 5 वर्ष से कम हो और जिनमें तीव्र रक्तशर्करा नियंत्रण के जोखम फायदों से अधिक महत्व रखते हों,HbA1c का कम कड़ा 8% का लक्ष्य उचित है.[59]

जीवनशैली परिवर्तन

व्यायाम

सितंबर 2007 में,युनिवर्सिटी आफ कैल्गेरी और युनिवर्सिटी आप ओटावा द्वारा किये गए एक संयुक्त अक्रमीकृत नियंत्रित अध्ययन में पाया गया कि - टाइप 2 मधुमेह में केवल एयरोबिक या प्रतिरोधी ट्रेनिंग रक्तशर्करा नियंत्रण में सुधार लाती है,लेकिन सुधार सबसे अधिक दोनो की संयुक्त ट्रेनिंग में ही होता है.[60][61] संयुक्त कार्यक्रम द्वारा एचबीए1सी में 0.5 प्रतिशत बिंदु की कमी आई. अन्य अध्ययनों में यह सिद्ध हुआ कि व्यायाम की आवश्यक मात्रा बड़ी या तीव्र होना आवश्यक नहीं है बल्कि नियमित और लगातार होनी चाहिये. उदा.हर दूसरे दिन तेजी से 45 मिनट पैदल चलना.

सैद्धांतिक रूप से,व्यायाम लाभदायक है क्यौंकि व्यायाम से कतिपय लाइगैंडों का निर्गम होता है जिनके कारण आंतरिक एंडोसोमों से जीएलयूटी4 का कोशिका झिल्ली में निर्गम होता है. इन्सुलिन,जो टाइप 2 मधमेह के रोगियों में प्रभावकारी रूप से कार्य नहीं करता,जीएलयूटी4 को झिल्ली में रखने में सहायक होता है. व्यायाम एड्रीनलीन द्वारा ग्लुकोज के अंतर्ग्रहण में,इन्सुलिन से स्वतंत्र,मदद भी करता है.

आहार प्रबंधन

आहार में ग्लुकोज सेवन को सीमित और नियंत्रित करके,और इस तरह रक्त ग्लुकोज स्तरों का नियंत्रण करने से टाइप 2 के रोगियों को,विशेषकर रोग के विकास प्रारंभिक चरण में, राहत मिलती है. इसके अलावा,वजन में कमी लाने की सलाह दी जाती है और टाइप 2 मधुमेह के रोगियों के लिये अकसर मददगार होती है.

रक्त ग्लुकोज का नियंत्रण

रक्त ग्लुकोज का स्वतःपरीक्षण शायद कुछ मामलों,यानी टाइप 2 मधुमेह के बिना इन्सुलिन के उपचार के अच्छी तरह से नियंत्रित रोगियों में, परिणामों को सुधार नहीं सकता है.[62] फिर भी, ऐसे रोगियों में जिनमें यह उचित रक्त शर्करा नियंत्रण में मदद कर सकता है, इसकी प्रबल सिफारिश की जाती है और यदि ऐसा होता है तो यह खर्च व्यर्थ नहीं जाता. शरीर की रक्तशर्करा दशा के बारे में ताजा जानकारी का यह एकमात्र स्रोत है,क्यौंकि भोजन,व्यायाम और दवाई(आहार और व्यायाम दोनों के अनुसार मात्रा और लेने का समय),और दूसरी ओर,दिन का समय,दबाव (मानसिक और शारीरिक),संक्रमण,आदि पर निर्भर परिवर्तन तेजी से और कई बार होते हैं.

नेशनल इंस्टीट्यूट फार हैल्थ ऐण्ड क्लिनिकल एक्सेलैंस(नाइस),यूके ने 30 मई 2008 को मधुमेह के लिये ताजी सिफारिशें प्रस्तुत की हैं. उनके अनुसार नए निदान किये गए टाइप 2 मधुमेह के लोगों को एक रचनात्मक स्व-प्रबंधित शिक्षा योजना का हिस्सा होना चाहिये.[63] लेकिन हाल में किये गए एक अध्ययन में पाया गया कि अतिरिक्त हृदयनलिका रोग के जोखम वाले रोगियों में तेजी से रक्त ग्लुकोज को कम (6% से कम) करने की उपचार विधि लाभ से अधिक हानि पहुंचा सकती है,और कुछ रोगियों में गहन रक्त ग्लुकोज नियंत्रण के लाभ सीमित महसूस होते हैं.[64][65]

दवाओं

मेटफॉर्मिंग 500 मिलीग्राम की गोलियां

टाइप 2 मधुमेह के लिये कई दवाईयां उपलब्ध हैं-अधिकांश टाइप 1 मधुमेह के रोगियों के लिये अनुपयुक्त या खतरनाक हैं. वे विभिन्न वर्गों में बंटी हैं और समान नहीं हैं,न ही वे एक दूसरे की जगह सरलता से इस्तेमाल की जा सकती हैं. सभी चिकित्सक की सिफारिश पर ही खरीदी जा सकती हैं.

आजकल टाइप 2 मधुमेह के लिये प्रयुक्त दवाईयों में से एक, बाइगुओनाइड मेटफार्मिन है;यह प्राथमिक रूप से ग्लाइकोजन भंडारों से रक्त ग्लुकोज के निर्गम को कम करके और द्वितीयक तौर पर शरीर के ऊतकों में कोशिकाओं में ग्लुकोज ग्रहण को थोड़ा बढ़ा कर काम करता है. ऐतिहासिक और वर्तमान रूप में सबसे अधिक प्रयुक्त दवाएं सल्फोनिलयूरिया समूह की हैं,जिनके कई सदस्यों(ग्लाईबेनक्लेमाइड और ग्लिक्लाजाइड सहित) को बड़े पैमाने पर प्रयोग किया जाता है;ये अग्न्याशय द्वारा ग्लुकोज-उत्तेजित इन्सुलिन स्राव बढ़ाती हैं और इस तरह इन्सुलिन प्रतिरोध होने पर भी रक्त ग्लुकोज को कम करती हैं.

नए औषधि वर्गों में शामिल हैं -

मौखिक

अक्रमित नियंत्रित अध्ययनों के पुनरावलोकन में याया गया कि मेटफार्मिन और द्वितीय पीढ़ी के सल्फोनिलयूरिया टाइप 2 मधुमेह के अधिकांश रोगियों द्वारा पसंद की जाने वाली दवाईयां हैं,विशेषकर उनके लिये,जो रोग की शुरूआती दशा में होते हैं. [66] इनमें से अधिकांश एजेंटों के प्रति क्रिया का कुछ समय बाद फेल हो जाना भी अज्ञात नहीं है-एक अक्रमित नियमित अध्ययन में मधुमेह विरोधी दवा के प्रारंभिक चुनाव की तुलना की गई है जिसमें पाया गया कि-5 वर्षों के बाद मोनोथेरेपी के फेल होने की घटना रोजिग्लिटाजोन के साथ 15%,मेटफार्मिन के साथ 21%,और ग्लाईबुराइड के साथ 34% है.[67] इनमें से रोजिग्लिटाजोन के प्रयोग करने वालों में वजन में अधिक वृद्धि और सूजन दर्शाई गई.[67] रोजिग्लिटाजोन हदय-नलिका के रोगों से मत्यु का जोखम बढा सकती है,हालांकि इसके कारण स्पष्ट नहीं हैं.[68] पयोग्लिटाजोन और रोजिग्लिटाजोन हड्डियों के टूटने का जोखम भी बढ़ा सकते हैं.[69][70]

हृदय की निष्क्रियता से ग्रस्त रोगियों में भी मेटफार्मिन सबसे सह्य दवा है.[71]

उपलब्ध दवाईयों की भिन्नता से असमंजस हो सकता है और टाइप 2 मधुमेह के रोगियों में रोग की भिन्नता इस समस्या को बढ़ा सकती है. वर्तमान में,टाइप 2 मधुमेह के रोगियों के लिये दवाईयों का चुनाव सीधा-साधा नहीं है और अधिकतर मामलों में बार-बार प्रयोग और समायोजन के तत्व होते हैं.

इंजेक्शन द्वारा दिये जाने वाले पेप्टाइड एनालॉग

डीपीपी-4 इनहिबिटर्स अन्य मधुमेह-विरोधी दवाओं की तुलना में एचबीए1सी को 0.74%(बिंदु) तक कम करते हैं.[72] जीएलपी-1 एनालॉगों से वजन में कमी आई और अधिक पेट के दुष्प्रभाव हुए,जबकि डीपीपी-4 इनहिबिटरों से वजन में कोई अंतर नहीं आया और संक्रमण व सिरदर्द का जोखम बढ़ा,लेकिन दोनो ही वर्ग अन्य मधुमेह विरोधी दवाईयों के लिये विकल्प प्रस्तुत करते नजर आते हैं.

इन्सुलिन

विरल मामलों में,यदि मधुमेह विरोधी दवाईयां काम न करें(अर्थात् चिकित्सकीय लाभ रूक जाए),तो इन्सुलिन उपचार सामान्य या उसके करीब ग्लुकोज स्तर बनाए रखने के लिये -सामान्यतः मौखिक दवा उपचार के अतिरिक्त-आवश्यक हो सकता है.[73][74]

इन्सुलिन की कुल दैनिक आवश्यक मात्रा 0.6 यूनिट/किग्रा है.[75] लेकिन,सर्वोत्तम समय और कुल मात्रा आहार(रचना,मात्रा और समय) और इन्सुलिन प्रतिरोध के स्तर पर निर्भर करती है. इन्सुलिन की प्रारंभिक मात्रा के मार्गदर्शन के लिये अधिक जटिल आकलन निम्न हैं:[76]

  • पुरूषों के लिये,(निराहार प्लाज्मा ग्लुकोज(मिलीमॉल/ली)-5) x2) x(वजन(किग्रा) ÷(14.3xऊंचाई(मी)—ऊंचाई(मी)
  • स्त्रियों के लिये,(निराहार प्लाज्मा ग्लुकोज(मिलीमॉल/ली)-5) x2) x(वजन(किग्रा) ÷(13.2xऊंचाई(मी)—ऊंचाई(मी)

प्रारंभिक इंसुलिन पद्धति अकसर रोगी को रक्त ग्लुकोज प्रोफाइल पर निर्भर होती है.[77] शुरू में मौखिक दवाईयों से ठीक न हो रहे मरीजों को रात में इंसुलिन दी जाती है.[78] रात की इंसुलिन सल्फोनिलयूरिया की अपेक्षा मेटफार्मिन के साथ बेहतर काम करती है.[75] रात की इन्सुलिन की मात्रा(आईयू/प्रतिदिन) निराहार रक्त ग्लुकोज स्तर(मिलीमॉल/ली) के बराबर होनी चाहिये. यदि निराहार ग्लुकोज मिग्रा/डीएल में हो तो उसे मिलीमॉल में बदलने के लिये 0.05551 से गुणा करें.[79]

जब रात में दी गई इन्सुलिन अपर्याप्त हो तो निम्न विकल्प उपलब्ध हैं -

  • • लघु और मध्यम क्रियाशील इनंसुलिन के निश्चित अनुपात वाली पूर्वमिश्रित इन्सुलिन;यह दीर्घ क्रिया वाली इन्सुलिन से अधिक असरकारी होती है,लेकिन इससे अधिक अल्परक्तशर्करा होती है. [80][81]. [82] बाईफेजिक इन्सुलिन की प्रारंभिक कुल दैनिक मात्रा 10 यूनिट हो सकती है अगर निराहार प्लाज्मा ग्लुकोज स्तर 180 मिग्रा/डीएल हों और 12 यूनिट,अगर निराहार प्लाज्मा ग्लुकोज 180मिग्रा/डीएल से ऊपर हो.[81] निश्चित अनुपात के इन्सुलिन के अनुमापन के लिये एक गाइड उपलब्ध है.[77]
  • • दीर्घ प्रभाव वाले इन्सुलिन जैसे ग्लार्जीन और इन्सुलिन डेटेमिर. कॉक्रेन कोलाबोरेशन द्वारा अक्रमित नियमित अध्ययनों के विश्लेषण में टाइप 2 मधुमेह के रोगियों में दीर्घ प्रभाव वाले इन्सुलिन एनालॉगों के उपचार से बहुत कम नैदानिक लाभ पाया गया.[83] हाल में ही ,एक अक्रमित नियमित अध्ययन में पाया गया कि यद्यपि दीर्घ प्रभाव वाले इन्सुलिन कम असरकारी होते हैं,फिर भी उनके साथ अल्परक्तशर्करा की घटनाएं भी कम होती हैं. [80]
  • • टाइप 2 मधुमेह में इन्सुलिन पम्प उपचार शनै-शनै लोकप्रिय होता जा रहा है.एक मौलिक प्रकाशित अध्ययन में रक्त शर्करा की कमी के अलावा लाइलाज नाड़ीविकार दर्द में गहन लाभ और यौन कर्म में भी सुधार का सबूत देखा गया है.[84]

गैस्ट्रिक बाईपास सर्जरी

गैस्ट्रिक बाईपास प्रक्रियाएं आजकल एक पूर्वनिश्चित पद्धति के रूप में किये जा रहे है और कोई विश्वभर में स्वीकृत एल्गोरिदम नहीं है जिससे यह निश्चित किया जा सके कि कौन शल्यचिकित्सा के उपयुक्त है. मधुमेह के रोगी में,कुछ प्रकारों में इन्सुलिन प्रतिरोध की रोकथाम 99-100% होती है और टाइप 2 मधुमेह में 80-90 % नैदानिक सुधार या कमी आती है. 1991 में एनआईएच (नैशनल इंस्टीट्यूट्स आफ हैल्थ)कन्सेन्सस डेवलपमेंट कान्फ्रेंस आन गैस्ट्रोइंटेस्टिनल सर्जरी फार ओबेसिटी ने प्रस्तावित किया कि उचित रोगी में शल्य चिकित्सा के लिये शरीर पिंड सूचकांक(बीएमआई) की सीमा को 40 से घटा कर 35 कर देनी चाहिये. हाल ही में,अमेरिकन सोसाइटी आफ बेरियाट्रिक सर्जरी(एएसबीएस)और एएसबीएस फाइंडेशन ने सलाह दी है कि तीव्र सहरूग्णताओं की उपस्थिति में बीएमआई की सीमा 30 कर देनी चाहिये.[85] स्वीडिश ओबीज़ सब्जेक्ट्स स्टडी के प्रकाशन के बाद से टाइप 2 मधुमेह में गैस्ट्रिक बाईपास सर्जरी के पात्र के बारे में विवाद उठ खड़ा हुआ है. सबसे बड़ी प्रत्याशित श्रेणी में गैस्ट्रिक बाइपास के बाद के रोगी में टाइप 2 मधुमेह की घटना में कमी 2 वर्षों(असमानता अनुपात 0.14 था) और 10 वर्षों(असमानता अनुपात 0.25 था) पर दिखाया गया है.[86]

ग्रीनविले (यूएस) के गैस्ट्रिक बाईपास रोगियों के 20 वर्षों के अध्ययन में पाया गया कि सर्जरी के पहले टाइप 2 मधुमेह से ग्रस्त लोगों को सामान्य ग्लुकोज स्तर बनाए रखने के लिये अब इन्सुलिन या मौखिक औषधियों की जरूरत नहीं थी. सर्जरी करवाने वाले कई लोगों के वजन में तेजी से कमी आई. जिन 20% में बाईपास सर्जरी से लाभ नहीं हुआ,वे अधिक उम्र के थे और उन्हें मधुमेह 20 साल पहले हुई थी. [87]

जनवरी 2008 में,जरनल आफ अमेरिकन मेडिकल एसोसियेशन(जामा) ने टाइप 2 मधुमेह वाले मोटे रोगी में लैपरोस्कोपिक एडजस्टेबल गैस्ट्रिक बैंडिंग और परम्परागत मेडिकल उपचार की तुलना के लिये किये गए एक अक्रमित नियंत्रित अध्ययन का प्रकाशन किया. एक अक्रमित नियंत्रित अध्ययन के अनुसार पिछले दो वर्षों में निदान किये गए रोगियों में लैपरोस्कोपिक गैस्ट्रिक बैंडिंग से टाइप 2 मधुमेह से छुटकारा मिल गया.[88] अपेक्षित जोखम कमी 69.0%. इस अध्ययन में शामिल लोगों के समान जोखम वाले रोगियों के लिये इससे जोखम में कमी 60% होती है. एक को लाभ मिलने के लिये 1.7 रोगियों का उपचार होना चाहिये.(उपचार के लिये आवश्यक संख्या = 1.7). इन परिणामों को टाइप 2 मधुमेह के अधिक या कम जोखम वाले रोगियों के लिये समायोजित करने के लिये यहां क्लिक करें.

इन परिणामों से अभी तक टाइप 2 मधुमेह के रोगियों के सर्जिकल उपचार के लिये नैदानिक आदर्श उत्पन्न नहीं हुआ है,क्यौंकि इसकी क्रियाविधि अभी स्पष्ट नहीं है. परिणामस्वरूप,टाइप 2 मधुमेह के सर्जिकल इलाज को अभी प्रायोगिक स्तर पर ही समझा जाना चाहिये.

जानपदिकरोगविज्ञान

युनाइटेड स्टेट्स में मधुमेह से ग्रस्त 23.6 मिलियन लोगों के होने का अनुमान है जिनमें से 17.9मिलियन लोगों का निदान हो चुका है,[89]जिनमें से 90% लोगों को टाइप 2 है.[90] 1990 से 2005 में प्रसार दर के दोगुना होने से सीडीसी ने इसे महामारी की संज्ञा दी है.[91] परम्परागत रूप से वयस्कों का रोग मानी जाने वाली टाइप 2 मधुमेह का निदान बच्चों में आहार के ढंग[92] व बचपन की जीवनशैली में बदलाव के कारण बढ़ती मोटापे की दर के समानांतर ही होने लगा है. [93]

मधुमेह के सभी उत्तर अमेरिकी मामलों में से लगभग 90-95% टाइप 2 हैं और 65 वर्ष से अधिक की जनता का करीब 20% मधुमेह टाइप 2 से ग्रस्त है.[94] विश्व के अन्य भागों में अवश्य ही पर्यावरणीय और जीवनशैली के कारणों से,टाइप 2 मधुमेह का अंश काफी भिन्नता लिये हुए है,हालांकि इनके बारे में विस्तृत जानकारी नहीं हैं. विश्वभर में मधुमेह 150 मिलियन से भी अधिक लोगों को प्रभावित करती है और यह संख्या 2025 तक दोगुनी हो जाने की संभावना है. [94]

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