हिंदी साहित्य संसृति

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से

हिंदी :  भारत की पहचान

-    डॉ. पूजा हेमकुमार अलापुरिया ‘हेमाक्ष’

   

    वर्तमान में हिंदी भाषा अपने आप में एक चिंता का मुददा बन चुकी है I भारत में हिंदी समझने और बोलने वालों की संख्या करीब 70 करोड़ है I देश से बाहर भी करोड़ों लोग इसे ​जानते-समझते हैं I प्रयोग करने वालों की संख्या के लिहाज से हिंदी चीन की मंदारिन के बाद दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी भाषा है I दर वर्ष हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में हिंदी का महत्त्व, हिंदी का विकास, हिंदी के गिरते स्तर आदि की चर्चा बड़े जोरों–शोरों से की जाती है I कई सरकारी और गैर सरकारी कार्यालयों में वाद-विवाद प्रतियोगिताएँ, हिंदी पखवाड़े, भाषण, वक्तृत्व प्रतियोगिताओं आदि का आयोजन भी किया जाता है I हिंदी का इतना मान, उसके नाम पर की जाने वाली विभिन्न स्पर्धाएँ, व्याख्यान, सम्मान समारोह, हिंदी के विकास के लिए खाई जाने वाली सौगंध आदि मात्र खानापूर्ति ही लगते हैं क्योंकि ये सभी प्रतिक्रियाएँ और आयोजन हिंदी दिवस तक ही दिखाई देते हैं I उसके पश्चात हिंदी के लिए बड़ी-बड़ी कसमें खाने वालों को भी वर्ष भर हिंदी की कोई सुध नहीं रहती तथा स्वयं ही हिंदी की उपेक्षा करने लगते हैं I

     1909 में जब महात्मा गांधी ‘हिंद स्वराज’ लिख रहे थे तो जापान से भाषा और शिक्षा की सीख लेने की बात करते हुए गांधी जे ने कहा था, ‘मुझे तो लगता है कि हमें अपनी सभी भाषाओं को चमकाना चाहिए....प्रत्येक पढ़े-लिखे भारतीय को अपनी भाषा का, हिन्दू को संस्कृत का, मुसलमान को अरबी का, पारसी को फारसी का ज्ञान होना चाहिए और हिन्दी का ज्ञान तो सबको होना चाहिए I कुछ हिन्दुओं को अरबी और कुछ मुसलमानों और पारसियों को संस्कृत सीखनी चाहिए I उत्तर और पश्चिम भारत के लोगों को तमिल सीखनी चाहिए I सारे भारत के लिए जो भाषा चाहिए, वह तो हिन्दी ही होगी I उसे फारसी या देवनागरी लिपि में लिखने की छूट रहनी चाहिए I हिन्दू और मुसलमानों में सद्भाव रहे,  इसलिए बहुत से भारतीयों को ये दोनों लिपियाँ जान लेनी चाहिए I ऐसा होने पर हम आपस के व्यवहार में अंग्रेजी को बाहर निकाल कर सकेंगे I’ गांधी जी की दूरदृष्टि ने हिंदी और उसके महत्त्व आंक लिया था I हिंदी सीखने और आत्मसात करने के कौशल को बड़ी बारीकी से व्यक्त किया था I

     किसी भी राष्ट्र की पहचान उसकी भाषा और संस्कृति से होती है और पूरे विश्व में हर देश की एक अपनी भाषा और अपनी एक संस्कृति है जिस छाव तले उस देश के लोग पले-बड़े होते हैं I यदि कोई देश अपनी मूल भाषा को छोड़कर दूसरे देश की भाषा पर आश्रित होता है उसे सांस्कृतिक रूप से गुलाम माना जाता है क्योंकि जिस भाषा को बच्चा जन्म से लेकर अपने जीवन भर बोलता है लेकिन आधिकारिक रूप से उसे दूसरी भाषा पर निर्भर रहना पड़े तो कही न कही उस देश के विकास में उस देश की अपनाई गयी भाषा ही सबसे बड़ी बाधक बनती है क्योंकि बच्चा जिस भाषा का उपयोग अपने बचपन से करता है वह उसी भाषा में अपने सभी कार्यों को करने का प्रयास करता है, जिस वजह से वह अपनी मातृभाषा से दूर होता जाता है और यही दूसरी भाषा हमारे विकास में बाधक जरुर बनती है I

     १४ सितम्बर १९४९ को सविधान की भाषा समिति ने हिंदी को राजभाषा के पद पर आसीन किया क्योंकि भारत की बहुसंख्यक जनता द्वारा हिंदी भाषा का प्रयोग किया जा रहा था। स्वाधीनता आंदोलन के दौरान हिंदी भाषा में प्रकाशित पत्र-पत्रिकाओं ने देश को आज़ाद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा भारतीयों को एक सूत्र में बांधे रखा। स्वतंत्रता के पश्चात भले ही हिंदी को राष्ट्रभाषा व राजभाषा का दर्जा दिया गया लेकिन भाषा के प्रचार व प्रसार के लिए सरकार द्वारा सराहनीय कदम नहीं उठाए गए व अंग्रेजी भाषा का प्रयोग अनवरत चलता रहा। भले ही आज हिंदी की वैश्विक स्थिति काफी बहेतर है विश्व के अनेक देशों के विश्व विद्यालयों में हिंदी अध्ययन-अध्यापन हो रहा है। परन्तु विडंबना यह है कि विश्व में अपनी स्थिति के बावजूद हिंदी भाषा अपने ही घर में उपेक्षित जिंदगी जी रही है। जहाँ गुड मॉर्निग से सूर्योदय और गुड इवनिंग से सूर्यास्त होता है। अंग्रेजी बोलने वालों को तेज तरार एवं बुद्धिमान एवं हिंदी बोलने वालों को अनपढ़ एवं गवार जताने की परम्परा रही है। राजनेताओं द्वारा हिंदी को लेकर राजनीती की जा रही है। हिंदी हमारी दोहरी नीति का शिकार हो चुकी है। यही कारण है कि हिंदी आज तक व्यावहारिक द्रष्टि से न तो राजभाषा बन पाई और न ही राष्ट्रभाषा I हिंदी भाषा का इतिहास लगभग एक हजार वर्ष पुराना माना गया है। हिंदी भाषा व साहित्य के विद्वान अपभ्रंश की अंतिम अवस्था ‘अवहट्ठ’ से हिंदी का उद्भव मानते हैं, जिसे पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी ने ‘पुरानी हिंदी’ नाम दिया। हिंदी का क्षेत्र बहुत विशाल है तथा हिंदी की अनेक बोलियाँ (उपभाषाएँ) हैं। इनमें से कुछ में अत्यंत उच्च श्रेणी के साहित्य की रचना भी हुई है। कबीरदास, सूरदास, तुलसीदास, मीराबाई, मलिक मुहम्मद जायसी, बोधा, आलम, ठाकुर जैसे कवियों की रचनाएँ इसका उदाहरण हैं। इन बोलियों में ब्रजभाषा और अवधी प्रमुख हैं। ये बोलियाँ हिंदी की विविधता हैं और उसकी शक्ति भी। वे हिंदी की जड़ों को गहरा बनाती हैं। हिंदी की बोलियों में प्रमुख हैं- अवधी, ब्रजभाषा, कन्नौजी, बुंदेली, बघेली, भोजपुरी, हरियाणवी, राजस्थानी, छत्तीसगढ़ी, मालवी, झारखंडी, कुमाउँनी, मगही आदि।

     हम जानते हैं कि किसी भी आजाद देश की अपनी एक राष्ट्रभाषा होती है, जो उसका गौरव होती है तथा राष्ट्रीय एकता और राष्ट्र के स्थायित्व के लिए पूरे देश में उसका उपयोग होता है। इसी तरह देश की अपनी एक राजभाषा भी होती है, राजभाषा मतलब सरकारी कामकाज की भाषा और जिससे एक आम नागरिक भी सरकार के कामकाज को समझ सके। हिंदी को भारत में राजभाषा का दर्जा प्राप्त है। किसी भी भाषा को राजभाषा बनने के लिए उसमें सर्वव्यापकता, प्रचुर साहित्य रचना, बनावट की दृष्टि से सरलता और वैज्ञानिकता, सब प्रकार के भावों को प्रकट करने की सामर्थ्य आदि गुण होने अनिवार्य होते हैं। यह सभी गुण हमारी हिंदी भाषा में हैं।

     अप्रैल, 2017 में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने 'संसदीय राजभाषा समिति' की सिफारिश को 'स्वीकार' कर लिया कि राष्ट्रपति और ऐसे सभी मंत्रियों और अधिकारियों को हिंदी में ही भाषण देना चाहिए और बयान जारी करने चाहिए, जो हिंदी पढ़ और बोल सकते हों। मई, 2018 अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) ने हिन्दी माध्यम से इंजीनियरिंग की शिक्षा की अनुमति प्रदान की गई । 17 जुलाई, 2019 सर्वोच्च न्यायालय ने अपने सभी निर्णयों का हिन्दी या अन्य पाँच भारतीय भाषाओं (असमिया, कन्नड, मराठी, ओडिया एवं तेलुगु ) में अनुवाद प्रदान करना आरम्भ किया।

     राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी भाषा के अस्तित्व को बनाए रखने और बढ़ावा देने हेतु मोदी सरकार द्वारा कुछ ऐसे कदम उठाने चाहिए जिससे हिंदी की वैज्ञानिक आधारशिला और शक्ति को बल दिया जा सके I हिंदी भाषा और साहित्य के विकास के लिए कुछ ऐसा करें जो पिछले 71 सालों में नहीं हुआ I सभी हिंदी प्रदेशों में ‘त्रिभाषा सूत्र’ को प्रबलता से लागू करना चाहिए तथा कठोर प्रावधान का आयोजन किया जाना चाहिए I जिस प्रकार त्रिभाषीय सूत्र होने पर भी अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में छात्रों को अंग्रेजी में संवाद करने हेतु सख्त नियम बनाए जाते हैं I हिंदी प्रदेशों में दूसरे राज्यों की भाषा पढ़ाने के साथ-साथ संस्कृत भाषा का अध्यन-अध्यापन किया जाए I दूसरे राज्यों अर्थात गैर हिंदी प्रदेश की भाषा में पढ़ने-पढ़ाने के फलस्वरूप अन्य राज्यों में हिंदी कामकाजी भाषा के रूप में स्वीकार्य करने में आसानी से सहमती प्राप्त की जा सकेगी I हिंदी भाषा को किसी भी अन्य राज्य पर थोपा नहीं जा सकता है I हिंदी के सरकारी शब्दकोश और अन्य दस्तावेजों से हिंदी के क्लिष्ट शब्दों को हटा देना चाहिए जिनसे हिंदी का मजाक उड़ाया जाता है और जिससे वह बोझिल प्रतीत होती है I  वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग का पुनर्गठन किया जाना चाहिए I साथ ही शब्द निर्माण के मामले में अब तक की नीति को छोड़ना होगा I तभी हिंदी का विकास संभव है I विज्ञान और तकनीकी युग में स्कूली शिक्षा में बच्चों को जिस प्रकार संगणक पर इंग्लिश शब्द टंकण करना सिखाया जाता है उसी प्रकार हिंदी कीबोर्ड और शब्द टंकण का अभ्यास भी कराना चाहिए I देश के सभी राज्यों के स्कूलों में कक्षा दसवीं तक हिंदी का अध्यन करना अनिवार्य है इस अनिवार्यता को स्नातोकतर बढ़ाना चाहिए I हिंदी से जुड़े रोजगारों को और व्यवसायों को बढ़ावा देना चाहिए I सोशल मीडिया पर उपलब्ध अंग्रेजी प्रलेखों के हिंदी अनुवाद की व्यवस्था की जाए I जिससे हिंदी भाषी उन प्रलेखों को हिंदी में पढ़ जानकारी प्राप्त कर सके I राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली लिखित परीक्षाओं के साथ – साथ राज्य स्तर की लिखित परीक्षाओं को भी हिंदी में लिखने का प्रावधान होना चाहिए I सरकार को सुप्रीम कोर्ट से परामर्श करके देश की अदालतों में हिंदी को जिरह करने और फैसला लिखने की भाषा बनाने का प्रयास करना चाहिए I एक ही शब्द के अनेक रूप में लिखने के कारण अचूकता की सम्भावना बानी रहती है इसलिए शब्दों की मानकता का निर्धारण किया जाए I जिससे ऐसी त्रुटियों से बचा जा सके I हिंदी के विकास की बगदौड़ किसी ऐसे मंत्री के हाथों में सौपनी चाहिए जिसे हिंदी की जानकारी और हिंदी के प्रति रुझान हो न कि ऐसे मंत्रियों को जिनका हिंदी से दूर-दूर तक नाता ही न हो I

     केन्द्रीय सरकार को इन उपायों के अतिरिक्त हिंदी के अनुकूल तकनीकी विकास में भी रुझान बढ़ाना चाहिए जिससे इस क्षेत्र में अनुसंधान तेज करने के लिए निजी क्षेत्रों को भी प्रोत्साहित किया जा सकेगा I हालांकि इन सभी कार्यों को बिना राजनीतिक इच्छाशक्ति, स्पष्ट कार्ययोजना, संवेदनशीलता और ईमानदारी के कुछ भी किया जाना संभव नहीं है I आम जानता और हिंदी प्रेमियों के लिए मात्र एक स्वप्न जैसा ही है I