हम्मीर हठ प्रबंधकाव्य

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हम्मीर हठ हिन्दी का एक प्रबन्धकाव्य है जिसके रचियता चन्द्रशेखर कवि थे। हम्मीर हठ में चन्द्रशेखर ने श्रेष्ठ प्रणाली का अनुसरण करते हुए वास्तविकता को दर्शाया है। कवि ने हम्मीरशरणागतणागत के प्रति निष्ठावान होने का अच्छा खासा प्रभाव इस ग्रंथ में डाला है। कवि ने हम्मीर देव के लिए लिखा है कि महाकाव्य उनके लिखे जाते हैं जो महान होते हैं।

चन्द्रशेखर कवि द्वारा लिखित कुछ पद्य जो हम्मीर हठ प्रंबधकाव्य में अंकित है-

[1]

उदै भानु पच्छिम प्रतच्छ, दिन चंद प्रकासै।
उलटि गंग बरू बहै, काम रति प्रीति बिवासै।।
तजै गौरि अरधांग, अचल धारू आसन चलै।
अचल पवन बरू होय, मेरू मंदर गिरि हल्लै।।
सुर तरू सुखाय लौमस मरै, मीर संक सब परिहरौ।
मुख बचन वीर हम्मीर को, बोलि न यह कबहुँ टरौ।।

[2]

आलम नेवाज सिरताज पातसाहन के,
गाज ते दराज कोप नजर तिहारी है।
जाके डर डिगत अडोल गढ़धारी डग,
मगत पहार औ डुलति महि सारी है।
रंक जैसो रहत ससंकित सुरेश भयो,
देस देसपति में अतंक अति भारी है।
भारी गढ़ धारी सदा जंग की तयारी,
धाक मानै ना तिहारी या हम्मीर हठ धारी है।

[3]

भागै मीरजादे पीरजादे औ अमीरजादे,
भागै खानजादे प्रान मरत बचाय कै।
भागै गज बाजि रथ पथ न संभारै, परेै,
गोलन पै गोल सूर सहिम सकाय कै।
भाग्यो सुलतान जान बचत न जानि बेगि,
बलित बितुंड पै विराजि बिलखाय कै।
जैसे लगे जंहल में ग्रीष्म की आगि,
चलै भागि मृग महिष बराह बिललाय कै।

[4]

थोरी थोरी बैसवारी नवल किसौरी सबै,
भोरी भोरी बातन बिहँसि मुख मोरती।
बसन बिभुषन बिराजत बिमल वर,
मदन मरोरनि तरिक तन तोरती।
प्यारै पातसाह के परम अनुराग रंगी,
चाय भरी चायल चपल दृग जोरती।
काम अबला सी कलाधार की कला सी,
चारू चंपक लता सी चपला सी चित चोरती।

कवि चन्द्रशेखर[संपादित करें]

हम्मीर हठ के रचयिता चन्द्रशेखर का जन्म संवत् 1855 में मुअज्जमाबाद जिला फतेहपुरहपुर मे हुआ था। इनके पिता मनीराम जी राव [भट] भी एक अच्छे कवि थे। चन्द्रशेखर कुछ दिनों तक दरभंगा और 6 वर्ष तक जोधपुर नरेश महाराज मानसिंह के यहाँ रहे और अन्त में यह पटियाला नरेश कर्मसिंह के यहाँ गए और जीवन भर पटियाला में ही रहे। इनका देहान्त संवत् 1932 में हुआ था।

सन्दर्भ[संपादित करें]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]