सुपरबग

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से

मेडिकल पत्रिका लैंसेट ने भारत और पाकिस्तान के एक बैक्टीरिया से लोगों को सावधान रहने के लिये कहा है। सुपरबग नामक इस बैक्टीरिया के बारे में वैज्ञानिकों की राय है कि इस पर एंटी बायोटिक्स का कोई असर नहीं होता.

इस बैक्टीरिया से ग्रस्त 37 में से 17 लोग भारत या पाकिस्तान से ब्रिटन लौटे हैं, जिनमें कम से 14 लोगों ने भारत या पाकिस्तान में कॉस्मेटिक सर्जरी करायी थी। अब तक 50 से अधिक लोगों को अस्पताल लाया गया है, जो इस बैक्टीरिया से संक्रमित हैं।

लैंसेट के ताजा अंक में प्रकाशित एक लेख में बताया गया है कि भारत या पाकिस्तान से कॉस्मेटिक सर्जरी कराकर लौटे लोंगों के साथ ब्रिटेन पहुंचा यह बैक्टीरिया शरीर में एनडीएम-1 नामक एंजाइम बनाता है, जिस पर दवाइयों का असर नहीं हो रहा है। यहां तक कि कार्बापेनेम्स नामक सबसे शक्तिशाली एंटी बायोटिक्स भी इस पर बेअसर साबित हुआ है।

वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि यह बैक्टीरिया दूसरे बैक्टीरिया के साथ मिल कर ऐसा संक्रमण पैदा कर सकता है, जिससे निपटना मुश्किल हो सकता है। वैज्ञानिकों ने इसे खतरनाक स्थिति बताते हुए कहा है कि अगर जल्दी ही इससे संक्रमित मरीजों को पहचान कर अलग करते हुए उनका इलाज नहीं किया गया तो पूरा देश इसकी चपेट में आ सकता है।

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

भारत में सुपरबग का कोई खतरा नहीं है।..देश के सबसे बड़े शोध संस्थान इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने सुपरबग के हौवे को भारत में तेजी से बढ़ते मेडिकल टूरिज्म को प्रभावित करने और अपनी दवाएं भारत में बेचने की विदेशी कंपनियों की चाल बताया है।..सबसे पहले ब्रिटिस वैज्ञानिकों ने लांसेट जनरल की रिपोर्ट में सुपरबग का नाम नई दिल्ली सुपरबग-1 देकर सनसनी मचाई थी।.. भारत में सुपरबग बैक्टीरिया का कोई खतरा नहीं है।....भारत में सुपरबग फैलने का हौवा विदेशी दवा कंपनियों की नई चाल है।..दवा बनाने वाली मल्टीनेशनल कंपनियां भारत में सुपरबग का डर दिखा एक तीर से दो शिकार करना चाह रही है।...पहली मेडीकल टूरिज्म के तहत बेहतर और सस्ते इलाज के लिए हर साल भारत आने वाले करीब पांच लाख विदेशियों को रोककर 10 अरब रुपए तक पहुंच गए स्वास्थ्य पर्यटन को प्रभावित करना चाहती हैं।..दूसरी अपनी चौथी लाइन की अपनी महंगी एंटीबायोटिक दवाएं भारत में सुपरबग के नाम पर बेचना चाहती है।..गौरतलब है कि ब्रिट्रेन के चार शोधकर्ताओं ने सबसे पहले सुपरबग का हौवा फैलाया और ब्रिट्रिस जनरल लांसेट के शोध रिपोर्ट में सुपरबग का नाम नई दिल्ली सुपरबग-1 रख प्रकाशित कर दिया...फिर दिल्ली के पानी और भारत के अस्पतालों में सुपरबग की मौजूदगी की बात कह पूरी दुनिया में सनसनी मचा दी.... शोधकर्ताओं ने कहा था कि एनडीएम-1 से प्रभावी तरीके से निपटने के लिए चौथी लाइन की प्रभावी एंटीबायोटिक दवा बनाने में ब्रिट्रेन की जीएसके और आस्ट्रोजेवेका कंपनियां ही सक्षम है।...भारत सरकार के विरोध और संसद में मामला उठने के बाद खुलाशा हुआ कि चार में से दो शोधकर्ताओं की सुपरबग के लिए एंटीबायोटिक दवा बनाने वाली कंपनी में हिस्सेदारी थी।..और दोनों कंपनियों में शोधकर्ता टीम के प्रमुख टीमोटी वाल्स के शेयर हैं।..डॉक्टरों के अनुसार सुपरबग बैक्टिरियां की मौजूदगी यूके, यूएस, यूरोप समेत पूरी दुनिया में है विश्वमोहन कटोच, डीजी, आईसीएमआर

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च, केंद्र और दिल्ली सरकार ने भले ही सुपरबग के हौवे को एंटीबायोटिक दवा बनाने वाली विदेशी कंपनियों की भारतीय बाजार में उतरने से पहले माहौल तैयार करने की चाल बता कर खारिज कर दिया है।..लेकिन भारत में सुपरबग खतरा बनकर सामने न आ जाए इसके लिए सरकार और अस्पतालों के संचालकों ने कवायद शुरू कर दी है।..ताकि हर जगह मौजूद रहने वाला सुपरबग बैक्टीरियां भारत में अपना पांव न पसार सके

इसके निर्माण के कारक और प्रसार को रोकने के उपाय