सदस्य:Dheeraj banshkar

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ऐतिहासिक तौर पर बरार एक अपरिभाषित सीमा क्षेत्र वाले प्रांत का नाम था, जिसका प्रशासनिक महत्त्व समाप्त हो चुका है, क्योंकि विदर्भ शब्द ने इसका स्थान ले लिया है। वैसे यह नाम काफ़ी विस्तृत क्षेत्र के लिए प्रयुक्त होता है, जिसमें नागपुर के मैदानी एवं महाराष्ट्र के सुदूर पूर्वी हिस्से सम्मिलित हैं। 13वीं शताब्दी में मुस्लिम सेनाओं के आक्रमण के बाद बरार एक स्पष्ट राजनीतिक इकाई के रूप में उभरा था। मुस्लिम साम्राज्य के बिखरने तक यह अनेक मुस्लिम राज्यों का हिस्सा रहा और उसके बाद हैदराबाद के निज़ाम के अधीन हो गया। 1853 में यह ब्रिटिश नियंत्रण में आया और 1948 में प्रांत के रूप में इसका अस्तित्व समाप्त कर दिया गया। अमरावती और अकोला इसके मुख्य शहर हैं। बुलधाना-यवतमाल पठार पर बरार का सुदूर दक्षिणी इलाक़ा पुर्णा नदी बेसिक की तुलना में कम विकसित है।

कृषि और खनिज संपादित करें

यह क्षेत्र मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर करता है, जिसके आधे मूभाग पर नक़दी फ़सलों (कपास और तिलहन) की उपज होती है। लगभग सभी उद्योग इन फ़सलों के प्रसंस्करण पर निर्भर करते हैं।


बरार, दक्खिन की सल्तनतों में से एक थी। यह बहमनी सल्तनतके विघटन के बाद 1490 में स्थापित किया गया था। सबसे पहले बहमनी साम्राज्य से अलग होने वाला क्षेत्र बरार था, जिसे फतहउल्ला इमादशाह (हिन्दू से मुसलमान) ने 1484 ई. में स्वतंत्र घोषित करके इमादशाही वंश की नींव डाली। 1574 ई. में बरार को अहमद नगर ने हङप लिया था।


पृष्ठभूमिसंपादित करें[संपादित करें]

बरार या वरहाड (वऱ्हाड) नाम की उत्पत्ति ज्ञात नहीं है। इसके पहले प्रामाणिक रिकॉर्ड से पता चलता है कि यह आंध्र या सातवाहन साम्राज्य का हिस्सा रहा होगा। 12वीं शताब्दी में चालुक्यों के पतन के बाद, बरार देवगिरि के यादवों के अधीन आ गया, और 13वीं शताब्दी के अंत में मुस्लिमों के आक्रमण तक उनके कब्जे में रहा। दक्खन में बहमनी सल्तनत (1348) की स्थापना के बाद, साम्राज्य को पांच प्रांतों में बाटा गया था, जिसमें से बरार भी उन पांच प्रांतों में से एक था, जिसका शासन शाही व्यक्ति द्वारा किया जाता था, और उसके पास एक अलग सेना भी उपलब्ध थी। आगे चल कर प्रांत को दो अलग-अलग प्रांतों में विभाजित (1478 या 1479 में) किया गया, जिसका नाम उनकी राजधानियों गाविल और माहुर के नाम पर रखा गया। हालाँकि बहमनी राजवंश पहले से ही अपने पतन की ओर बढ़ रहा था।

बरार सल्तनत की स्थापनासंपादित करें[संपादित करें]

बहमनी सल्तनत के विघटन, 1490 में के दौरान फतहउल्ला इमाद-उल-मुल्क, गाविल का राज्यपाल, जो पूर्व में पूरे बरार को संचालित किया करता था, इसे स्वतंत्र घोषित कर दिया और बरार सल्तनत की इमाद शाही राजवंश की स्थापना की। उसने माहुर को भी अपने नए राज्य में मिला लिया और अचलपुर में अपनी राजधानी ले गया। इमाद-उल-मुल्क जन्म से एक कनारी हिंदू था, लेकिन विजयनगर साम्राज्य के खिलाफ अभियानों दौरान उसे बाल्यवस्था में ही अपहरण कर ले आया गया और एक मुस्लिम के रूप में पाला गया था। गाविलगढ़ और नरनाला में भी उसके द्वारा गढ़ बनाये गए थे।

1504 में उसकी मृत्यु हो गई और उसके उत्तराधिकारी, अला-उद-दीन ने गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह की मदद से अहमदनगर की आक्रामकता का सामना किया। अगले शासक, दरिया ने अहमदनगर की आक्रामकता को रोकने के लिए बीजापुर के साथ गठबंधन करने की कोशिश की, लेकिन असफल रहा। 1568 में जब बुरहान इमाद शाह को उसके मंत्री तुफैल खान ने पदच्युत कर दिया था, और राजा बन गए। इसने अहमदनगर के मुर्तजा निज़ाम शाह को आक्रमण करने का एक बहाना मिल गया, और उसने बरार पर आक्रमण कर दिया, और तुफैल खान, उसके बेटे शम्स-उल-मुल्क, और पूर्व राजा बुरहान को कैद कर मौत की सजा दे दी और बरार को अहमदनगर सल्तनत में मिला लिया।

बरार के सुल्तानसंपादित करें[संपादित करें]

बरार के सुल्तान इमाद शाही राजवंश के थे:

  1. फतुल्लाह इमाद-उल-मुल्क 1490 - 1504
  2. अलादीन इमाद शाह 1504 - 1529
  3. दरिया इमाद शाह 1529 - 1562 उन्होंने चंद्रभागा नदी के किनारे एक शहर दरियापुर विकसित किया जो आज अमरावती जिले के अंतर्गत एक नगरपालिका परिषद है
  4. बुरहान इमाद शाह 1562 - 1568
  5. तुफैल खान (हड़पनेवाला) 1568 - 1572