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जी शंकर कुरुप

जी शंकर कुरुप

जी शंकर कुरुप मलयालम साहित्य के एक प्रमुख लेखक है। वे 'महाक्वी जी' नाम से बेह्त्तर जाने जाते हैं। वे भारत का सर्वोच्च साहित्य पुरस्कार,ज्ञानपीठ पाने वाले पहला व्यक्ती है।

जन्म और प्रारंबिक जीवन[संपादित करें]

उनका जन्म ३ जून १९०१ को कोचिन राज्य के नैयथोड नामक स्थान में हुआ था। शंकर कुरुप के पिता के नाम शंकर वार्यर और माता के नाम लक्ष्मीकुट्टी थी। उनके मामा, प्रमुख ज्योतिषी गोविन्द कुरुप ही उनके पहले गुरू थे।शंकर कुरुप १९२१ में तिरुविल्वामले में एक मलयालम अध्यापक के रुप में काम कर रहे थे। इसके बाद वे सरकारी माध्यमिक शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान में अध्यापक बने। वे एर्नाकुलम के महाराजा कॉलेज में मलयालम पंडित बने रहे और १९५६ में अवकाश ग्रहण किये। तुरन्त इसके बाद ही उन्होंने अकाशवाणी में काम करना प्रारंभ कर दिया।

कृतियाँ[संपादित करें]

इनकी पहला कविता थी 'प्रकृती को नमस्कार'। इनका पहले संकलन साहित्य कौतुक्कम़् १९२३ में प्रकाशित किया गया था। उनके कुछ प्रमुख कृतियॉं है: 'सूर्यकान्ती', 'पूजापुष्प','निमिषम','इतलुकल', 'पतिकन्टे पाट्टु','सन्द्या रागम','मुत्तुकळ','अंतरदाहम', आदी। २५ कविताओं के अलावा, वे मलयालम में लगभग ४० एकांकी एवं निबंध रचे हैं। शंकर कुरुप ने उमर खय्याम की 'रुबैयत', कालीदास की 'मेघदूत' और टेगोर के 'गीतांजली' को मलयालम में अनुवाद किया था। इन्होंने 'निर्मला' नामक १९४८ की मलयालम चलचित्र के लिये गीतिकाव्य की रचना भी किया। इनके कृतियों को अंग्रेज़ी, इतालवी, रूसी जैसी विदेशी भाषाओं में भी अनुवाद किए गए हैं।

पुरस्कार और सम्मान[संपादित करें]

इनको भारत का पहला ज्ञानपीठ पुरस्कार १९६५ में प्र्काशित 'ओडकुज़ल' (बांसुरी) नामक कविता सम्हरण के लिये मिला। 'विश्वदर्शनम' नामक कविता सम्हरण के लिये इनको १९६१ में केरला साहित्य पुरस्कार और १९६३ में केन्द्र साहित्य पुरस्कार मिला। इन्के अलावा वे १९६७ में सोवियत भूमि नेहरु पुरस्कार, १९६८ में भारत सरकार के पद्म भूषण और कल्याणी कृष्णमेनन पुरस्कार भी जीते।

व्यक्तिगत जीवन[संपादित करें]

१९३१ उन्होंने सुभद्राम्मा से विवाह किया, जो एक प्राचीन नायर परिवार का था। १९४५ से १९५७ तक वे 'साहित्यपरिषत' नामक पत्रिका संपादक बने रहे।१९६८ में उनको राज्य सभा के सदस्य चुना गया था। कुरुप ने राज्य सभा के सदस्य (१९६८-७२) के रूप में एक सक्रिय सार्वजनिक जीवन बिताया| कहा जाता हैं की गांधी और टेगोर ने कुरुप में मानवतावाद और राष्ट्रवाद के विचारों में प्रभाव डाला हैं। शंकर कुरुप का निधन १९७८ फिरवरी २ को हुआ।

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  1. http://keralaculture.org/g-sankara-kurup/676
  2. https://en.wikipedia.org/wiki/G._Sankara_Kurup