सदस्य:Bhagya Jayesh/प्रयोगपृष्ठ/1

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६कुचीपुडी

==परिचय==[संपादित करें]

कुचीपुडी भारत के प्रमुख शास्त्रीय नृत्यों में से एक है । कुचीपुडी का उतपन्न आंध्र प्रदेश में कुचीपुड़ी नामक एक गांव से हुआ है। पीतल की थाली पर नृत्य करना कुचिपुड़ी के प्रमुख आकर्षणों में से एक है । कुचीपुड़ी अपने आंदोलनों और भावों के लिए प्रसिद्ध है । कुचीपुड़ी मुख्य रूप से मंदिरों में किया जाता है । कुचिपुड़ी को शास्त्रीय संगीतमय संगीत पर किया जाता है । बहुत मेहनत करना पडता हैं यह सीखने केलिये । यदि आप किसी भी शास्त्रीय नृत्य रूपों पर विचार करते हैं तो यह स्थिति है । गहन प्रशिक्षण कि ज़रूरत है कुचीपुडी सीखने केलिये । कम से कम 5 साल की जरूरत है यह् सीखने केलिये ।कुछ लोग इतने समय लेने के बाद भि यह सब सीख नही पाते हौं ।आज केवल भारत में ही नेही , विदेश में भि हम कुचीपुडी के प्रदर्शन देख सकते हैं । अब यह कला रूप विदेशों में भि बहुत प्रसिद्ध हैं । वह हमारी संस्कृति को समृद्ध करने में हमारी मदद करते हैं । शास्त्रीय नृत्य रूपों को बढ़ावा देना हमारा कर्तव्य है ।

==इतिहास==[संपादित करें]

कुचीपुडी को शुरू में एक नृत्य नाटक के रूप में पेश किया गया था । सर्वाधिक समय नृत्य भगवान कृष्णा के बारे में है । नृत्य का प्रदर्शन पवित्र जल के छिड़काव के साथ शुरू होता है । तारांगम कुचिपुड़ी का एक महत्वपूर्ण अंग है । तरंगम के दौरान पीतल की थाली का उपयोग होता है । कुचीपुडी नाट्य शास्त्रा से उत्पन्न हुई है । सोलहवीं सदी में इस नृत्य रूप विकसित हुआ । सोलहवीं सदी में हुई आक्रमणों के दौरान इसे प्रतिबंधित किया गया था । भरतनाट्यम का उतपन्न तमिल नाडु में हुआ धा । भरतनाट्यम को सबसे पुराना शास्त्रीय नृत्य माना जाता हैं । इसके बाद ही कुचीपुडी का उतपन्न हुआ । कुचीपुडी को भरतनाट्यम से अलग बनाने केलिये सिर पर पानी से भरा एक छोटा सा मटका का उपयोग करना शुरू किया ।

==इस्तेमाल किया गया संगीत वाद्ययंत्र ==[संपादित करें]

मृदंगम , वायलिन और बांसुरी का इस्तमाल किया जाता है कुचीपुड़ी में , संगीत केलिये । भरतनाट्यम और कुचीपुडी में इस्तेमाल किए गए संगीत वाद्ययंत्र समान हैं । हर संगीत वाद्य का अपना महत्व है इस कलारप में।

==आंदोलनों के महत्व==[संपादित करें]

यह नृत्य पैर के तेज आंदोलनों का उपयोग करता है । कुचिपुड़ी का प्रदर्शन करने के लिए कम से कम 5 साल की ज्ञान चाहिये । सत्तरहवीं शताब्दी में यह कला रूप सूख गया । लेकिन हम्ने बीसवीं सदी के दौरान इस्का पुनर्जन्म देखा । नाट्य शास्त्र के 'नृत्ता' 'नृत्य' और 'नाट्य' कुचीपुडी का तीन प्रदर्शन श्रेणियाँ है । नृत्ता में नर्तक शुद्ध नृत्य आंदोलनों का प्रदर्शन करता है । 'नृत्य' में नर्तक-अभिनेता एक कहानी को संबोधित करते हैं । 'नाट्यम' आमतौर पर एक समूह द्वारा या कुछ मामलों में एक एकल नर्तक द्वारा किया जाता है जो नाटक के विशिष्ट पात्रों के लिए कुछ शरीर आंदोलनों को बनाए रखता है । यह भरतनाट्यम के साथ कई सामान्य चीजें साझा करता हैं । भरतनाट्यम भि भारतीय शास्त्रीय नृत्य है जो हिंदू मंदिरों में किया जाता हैं । लेकिन भरतनाट्यम में तरंगम नामक कोई हिस्सा नही हैं । वेशभूषा कुचिपुड़ी और भरतनाट्यम दोनों के लिए लगभग समान हैं । कुचिपुड़ी में भरतनाट्यम से भि अधिक शरीर आंदोलनों हैं । दोनों मे से कौनसा अधिक सुंदर है यह कहना मुशकिल हैं ।यह एक बहुत हि मुश्किल कलारूप हैं । म्टके के साथ पीतल में रेहकर नर्तक को नृत्य करना पडेगा । यह करने केलिए कड़ी मेहनत की आवश्यकता है । कोई भी एक साल में यह सब नहीं कर सकता । हाथ और पैर आंदोलनों में बहुत सुंदरता है । यदि आप किसी भी शास्त्रीय नृत्य रूपों पर विचार करते हैं तो यह स्थिति है ।

==आभूषण==[संपादित करें]

पारंपरिक आभूषण इस कला रूप में पहना जाता है । जबकि एक पुरुष चरित्र धोती पहनता है , महिला एक रंगीन साड़ी पहनता है इस कला रूप में । महिला चरित्र सोने या पीतल का एक हल्का धातु कमर बेल्ट पहन्ता है । घूँघरू अपने तालियों पर बान्धते है जो तालबद्ध ध्वनियों का उत्पादन करते हैं । उसके बाल को फूलों से सजाया जाता हैं । कभी कभी विशेष वेशभूषा का प्रयोग भि करता है । वह तब होता है जब नर्तकी किसि विशेष चरित्र को चित्रित किया जाता हैं ।इस कलारूप के कपडे पहन्ने का शैली बहुत अनोखी है ।

==प्रसिद्ध कलाकार==[संपादित करें]

मल्लिका साराभाईवी , सत्यनारायण शर्मा , दीपा सशंद्रान , शंकुमा श्रीनिवास , शांतिला शिवलिंगप्पा , उषा श्रीनिवासन भारत के प्रसिद्ध और प्रमुख कुचीपुडी नर्तकियों मे से कुछ हैं । कुचीपुड़ी का प्रदर्शन आमतौर पर एक शुभारंभ के साथ शुरू होता है । आज कल दुनिया भर में इसके प्रदर्शन का आयोजन किया जाता हैं । आज कुचीपुडी में अलग शैलीयाँ है ।इस्के कारण गुरुओं की विशिष्टतायें और रचनात्मकता हैं ।

==नृत्य विद्यालय==[संपादित करें]

भारतीय विद्या भवन , बैंगलोर: , नालंदा नृत्यिका महाविद्यालय , मुंबई , श्री तेगराजा कॉलेज ऑफ म्यूजिक एंड डांस , यह स्ब प्रमुख नृत्य विद्यालय हैं , भारत का शास्त्रीय नृत्य के लिए । कुचिपुड़ी सीखना एक आसान काम नहीं है । कड़ी मेहनत करने की ज़रूरत है ।

==सन्दर्भ==[संपादित करें]

[1]http://ccrtindia.gov.in/kuchipudi.php

[2]http://www.culturalindia.net/indian-dance/classical/kuchipudi.html

  1. http://ccrtindia.gov.in/kuchipudi.php
  2. http://www.culturalindia.net/indian-dance/classical/kuchipudi.html