सदस्य:Ankushdubey63

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विस्थापित सोनभद्र[1]

विस्थापित कोई सम्बोधन शब्द या नई प्रजाति-----[1]

अगर सोनभद्र के औद्दोगीकरण का इतिहास देखे तो इससे समस्त भारत लाभान्वित हो रहा है, पुरा उत्तर प्रदेश लाभान्वित हो रहा है, परन्तु जीनके जमीनो पर यह परियोजनाये स्थापित हुई वह वनवासी-मुलनिवासी-आदिवासी जहा 1956 मे औद्दोगिकरण की नीव रखे जाने से पुर्व खडा था वही आज भी है खडा है अर्थात बदलाव नाममात्र का और शब्दो का, तात्पर्य है कि वनवासी-आदिवासी-मुलनिवासी अब विस्थापित सम्बोन्धन को चरित्रार्थ करने लगा है, उसकी समस्याये जो पुर्व मे थी वही आज भी है, बल्कि उसकी जमीन लिये जाने और उसके बदले मे उचित प्रतिकर, पुर्नवास लाभ न मीलने तथा रोजगार की उप्लब्धता न होने की पीडा भी बढ गई।।

परियोजनाओ की हकीकत खंगाला जाये तो नाममात्र के जनपदवासी मीलेंगे बाकि अधिकतम गैर जनपद वासी है, अब यह सवाल खडा होता है कि जब जमीन कीसानो की ले ली गई जो उसके रोजगार का साधन था तो उसे प्राथमिकता से रोजगार कौन उपलब्ध करायेगा??? वह कीसान और उसकी आगामी पिढिया उस जमीन से अपना भरण-पोषण करती, परन्तु जमीने जाने के उपरान्त अगर वह किसान रोजगार प्राप्त करता है तो भी उसकी आगामी पिढियो का भविष्य तो खतरे मे है,,,,

और आज जनपद सोनभद्र मे जनपदवासी की रोजगार मे प्राथमीकता का न होना उसकी बेबस-लाचारी का एक सटीक चित्रण है।

  1. विस्थापित सोनभद्र