सदस्य:Aishwarya R/प्रयोगपृष्ठ

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मास बादले लागू होगा | इसकी अवधि तीन वष्र तक रहेगी| यदि समाप्त होने के ६ मास पहले कोइ भी राज्य इसका तोडने की सूचना न दे तो एसी अवस्था मे यह एक वर्ष तक ऑर लागू राहेगा| कॉवुल मे श्रग्रेजोका एक राजदूत रेहने लग गया था| उसकी भॉति काबुल की ओर से भी भारत, इड्ग्लेराड ओर अन्य युरोएइयन प्रतिनिधी मेजे गये| इन सबसे निशिन्त होकर १८२९ मे अमीर अमानुल्लाखॉ ने भारत तथा योरप की यात्रा आरम्भ कर दी। इनके साथ इनका परिवार तथा अनेक राज्य कर्मचारी भी थे। यह अभिलाषा तो इनके पिताजी की थी, किन्तु हत्या होने के कारण पूरी न हो सकी। इनका भारात मे अच्छा स्वागत किया गया। वहॉ से योरप को गये। लन्दन मे राज अतिथी होकर रहे थे। इन्होने योरप के मुख्य मुख्य सभी स्थानो भली भॉती देखा। अन्त मे टर्की से सोविय्ट राज्य तथा ईरान होते हुए वह अफगानिस्तान को लोट गये। जिन जिन देशो मे गये थे वहॉ के राजाओ से इन्होने अनेक समक्भोते किये थे। वे सब घोषित कर दिय गये त्तथा १९२८ इ की गर्मी मे वह स्वादेश लोटे। इनके अनुपस्तिथी देश मे पूर्ण रुप मे शान्ति रही। इस यात्रा से अमानुल्लाखॉ के विचारो मे खोर परिवर्तन हो चुका था। योरप को सभ्यता तथा विकास का इनके ह्र्दय पर बहुत कुछ प्रभाव पडा था। अपने देश को हीन अवस्था पर इन्हे बढा दुख होता था। राजनेतिक ओर सामाजिक सुधारो के लिये इन्का ह्र्दय व्याकुल था। इन सब मे इनकी रानी को भी अत्यन्त सहानुभूति थी। अपने देश मे स्त्रीयो की गिरी हुई हीन अवस्था देखकर उस विदुषी का ह्र्द्य आर्द्र हो उठा था। सम्भव हे यह इतनी शीघ्रता से इस कार्य मे हाथ न डाल देते, लेकिन टर्की मे कमालपाषा द्वारा जो जो सुधार इन्होने देखे थे तथा जिस जाग्रतिका अनुभव उन्होने वहॉ किया था उसके लिये इनका ह्र्द्य लालायित हो रहा था। अत: इन्होने पुराने आचार विचारो कि श्र्टला तोडकर बडी तीव्रता से परिवर्तन करना आरम्भ कर दिया। फरमान पर फरमान जारी होने लगे। बिना देश की सहानुभूति प्राप्त किए अथवा स्थिती को भली भॉती सबके ही इनके सुधार जनता पर बलात लागू किए जाने लगे।

                                        अभाग्यवश देश इन सब के लिए अभी प्रस्तुत नही था। जनता इनके विरुध हो उठी। उधार सेना का वेतन भी धन के अभाव के कारण समय पर नही देता था। इसमे सन्देह नही कि ये सब सुधार देश के हित के लिए ही किए जा रहे थे, किन्तु अभी इन सुधारो के लिये उपयुक्त अवसर न होने के कारण अमीर के मित्रो ने उनकी स्थगित करने अथवा शने: शने: उनका उपयोग करने की अनुमति दी। इतनाही नही अमोर को १९२३ ई का भी ध्यान दिलाया गया। इसका शतान्स भी नही किया गया था किन्तु कितना भयन्क्रर परिणाम हुआ था। सब देखते सुनते हुए भी अमीर ने इस ओर ध्यान नही दिया। वह अपनी ही धुन से मस्त था। धर्म के नाम पर मुल्ला इत्यादि जो ठोग तथा अत्याचार करते थे वे इसे असह हो उठे थे। अन्त मे चारो ओर फिर खोर अशान्ति मच उठी। इसी वर्ष मई मास मे गिलजई तथा खोस्त के मगल जाति मे लाम मुल्ला ने विद्रोह की अग्नि भटका दी। मुल्लाओ का इस देश मे बढा प्रभाव है। अज्यान तथा अन्धकार के गडे मे गिरी हुई जनता धर्म के नाम पर इन मुल्लाओ के लिए सब कुछ अपर्ण कर सकती है। इन सुधारो से मुल्लाओ की भूठी सच्चा पर ही सबसे बडा धक्का लगता। इन्हो की पोल सबसे अधिक खुलती। यही कारण था की वे सब अमोर के सबसे बडे बडे शत्रु हो गये ओर जनता को उसके विरुध उभाडने लगे। अमीर भी इनका मर्द्न करने के लिए तुला बैठा था। अन्त मे १९२९ ई मे देश मे भयन्कर क्रान्ति मव उठी। बच्चा-ए-सक्का नामक एक नीच कुल के अफगानी ने देश मे विद्रोही की अग्नि भडका दो। सेना मे एक तो पहले हो से वेतन वाको होने से अशान्ति थी , इसके विद्रोह से वे सब भी बिगड उठे। फल ये हुआ की बच्चा-ए-सक्का एकत्रित की हुई फोज ने सरकारी फोज को कई बार हराया। विद्रोह दबाने के प्रयत्न मे अमीर पूर्ण असफल रहा। सन्सार के अन्य भागो मे समाचार तथा सन्वाद इत्यादि भेजने के साधनो का नाश कर दिया गया था। अन्त मे लाचार होकर अमीर तथा उसके कुल के लोगो को काबुल भागकर कन्दहार आना पडा। वहॉ भी सन्देह लगा हुआ था। अत: अमीर वहॉ से भी कटा होते हुए बम्ब्ई भाग कर आया। ब्म्बई से वह योरप चल दिया। कुछ मास तक बच्चा-ए-सका के ही हाथ मे शासन की बागडोर रही। इस देशद्रोही के पास न तो धन था,न बुध्दि थी न अनुभव था न थे सच्चे साथी हो। इससे शासन की बागडोर सम्हल न सको। बार बार आक्रमण होते रहे। जो भारतीय अथवा अंग्रेज सरहद अथवा अफगानिस्तान् मे थे उनके रक्शा के लिये भार्त से अनेक हवाई जहाज भेजे गए। वे सब कुशालता से देश मे लोट आए। इधर नादिरखॉ जो अमीर होके व्ंश का था तथा जिसे संसार का बडा अच्छा ज्यान था, बचा-ए-सका के मुकाबले आडटा। कई बार युध्द हुई। कभी तो नाधिरखॉ की विजय देख पडती थी कभी बचा-ए-सका के सिर विजय का सेहरा देख पडता था। दोनों का भाग्य अनिशचित सा हो रहा था। एक बार तो नाधिरखॉ ने सब आशा छोड दी । विजय ब्च-ए-सका के साथ देख पडने लगी। किन्तु एका एक ही नाधिरखॉ के भाग्य ने पलटा खाया। सरहद के इस पार से बजीरो की एक फोज नादिरखॉ की सहाय्ता के लिए पहुच गई। यदय्पि इनका हार्दिक तात्पर्य तो केवल लूट का माल ही प्राप्त करना था, किन्तु नाधिरखॉ के नाम पर इन्होने काबुल पर हमला करके उसे जीत लिया। इस भॉती नाधिरखॉ विजयी हुआ। कुछ ही समय के बाद, अफगानो की ही अनुमति से बचा-ए-सका का वध कर डाला गया। उसके साथ साथ राजद्रोहियों को भी मार डाला गया। साल समाप्त होते होते नाधिरखॉ सम्पूर्ख आफगानिस्तान का पूर्णरूप से स्वामी बन बैठा। १९ अक्टूबर १९२९ को इसका राज्याभिषेक हुआ। उसने अपने परिवार को योरप भेज दिया ओर जमकर राज्य के कार्यो मे लग गया। खैबर के समीप शनवरियों ने १९३० ई के फरवरी मास मे एक बार फिर सिर उठाया किन्तु नादिरखॉ ने बडी तत्परता से उनका दमन कर दिया। कोह-ए-दमॉ जो बचा-ए-सका का प्रान्त था, वहॉ पर फिर से विद्रोह की भयंकर अग्नि प्रज्यलित हो उठी। किन्तु बडे साहस तथा कोशल से नदिरखॉ ने यहॉ भी शान्ति स्थापित की। अय इसके अमीर होने मे कोई भी संदेह का स्थान नहीं रहा, एवम बिना किसी अडचन के वह राज्य करने लगा। उसने फोज की देख-रेख आरंभ कर दी। भारत की ओर भी उसका मित्रता का भाव रहा। १९३० ई की गर्मी में भारत में जो असहयोग का आंदोलन उठा हुआ था, उसमें इसने अपने सरहद पर रहने वालों को अंग्रेजो के विरुद्ध उमडने से रोकने में बराबर सहायता दी थी। व्यापार के लिए इसने अनेक सुविधॉए की।
                                          अम्मानुल्लाखॉ के उठाये हुए सुधारों का धीरे धीरे इसने भी प्रचार करना आर्ंभ कर दिया था किन्तु इस काम को यह बडी सात्रधानी से कर रहा था। मुल्लाओं को साथ लिये हुए इसने सुधारों का प्रचार आरंभ किया था। इसके समय में देश ने अच्छी उन्नति। योरप में बहुत दिनों तक रहनें के कारण इसे वहॉ क भी अच्छा जान था। अत: इसने अच्छी सफलता प्राप्त की। भारत सरकार भी इसकी आवश्यक्तानुसार सहायता करने को तत्पर थी। गतवध अपने राज्य के एक प्रतिष्ठित मनुष्य को राज्य के विरुध्द षड्यन्त्र करने के अभियोग में इसनें वध करवाडाला था। उसके साथ ही अन्य अभियुक्तों को भी इसने मग्वाडाला था। यद्यपि देश के हित, धर्म तथा कर्त्तव्यपालन जकी दृष्टि से उसका कार्य उचित ही था किन्तु वही उसका नाश का कारण हुआ। जैसा अंधकारमय तथा हत्याओं से परिपूर्ण अफगानिस्तान का गत इतिहास रहा है, उसी का फिर से अनुसरण हुआ। जो कितने ही गत अमीरों के भाग्य का विधान हुआ था वही दशा इसकी भी हुई। ७ नवम्बर १९३३ को इनके ही समापतित्व में दिलखुश महलके मैदान में पारितोषिक बॉटने के लिए एक सभा होनेवाली थी। इसमें राज्य के उच्च उच्च कर्मचारियों तथा पदाधिकारियों के साथ बहुत से उच्च श्रेणी के विद्यार्थी भी थे। लगभग तीन बजे सायंकालको जब यह समा में उपस्थित हुए तो एक ओर से इन पर पिस्तौल की दनादन तीन गोलियॉ छूटी। अमीर वहीं पर लडखडा कर गिर गया। तत्काल ही उछलकर उसका प्रिय पुत्र,पिता तथा घातक के बीच में आडटा। अमीर को शीघ्र ही महल पहुंचाया गया किन्तु गोली की चोट घातक थी। द्स मिनट के भीतर ही अपने परिवार के मध्य उसके प्राणपखेरू उड गये। इसका हत्यारा अब्दुलखलीक नामक बाईस वर्ष का एक नव युवक है। हत्या करने के बाद वह तत्काल ही पकड लिया गया। गत वर्ष राज्य के विरुद्ध गुलाम नवी वाले षड्यन्त्र में यह भी अपने पिता के साथ पकडा गया था। किन्तु फुटबाल का बढा उत्तम खिलाडी होने के कारण तथा इसकी युवावास्था पर तरस खाकर अमीर ने इसे खोढ दिया था, किन्तु अपने स्वामी तथा पिता का बदला चुकाने के लिए यह उसी समय से अवसर ढूंढ रहा था। पकडे जाने पर इसने अपना अपराध स्वीकार कर लिया और हत्या करने क भी उपरोक्त कारण ही बताया है।
                                          इस बात का बडा भय था कि इनकी मृत्यू से देशों में फिरसे बडी खलबली मच उठेगी, किन्तु सब शान्ति हो रही। अमीर की मृत्यू के बाद तत्काल ही कौन्सिल की एक अवश्यक बैठक की गई। पार्लिया मिनट के जितने स्थानीय समासद थे वे तब तत्काल ही एकत्रित किए गए। इस सभा में सेना विभाग के मन्त्रों जनरलशाह महमूद ने युवराज जहीर के राज्यरोहलके लिए प्रस्ताव किया। सांयकाल ४ बजे सर्व्ं सम्मति से उसे ' अमीर' मानना स्वीकार हुआ। तदन्तर प्रत्येक पदाधिकारी तथा कर्मचारी ने राज्य तथा अमीर के प्रति सत्यार्नष्ठ रहने की शपथ ली। गत इतिहास पर ध्यान देते हुए नादिरखॉ की हत्याके समाचार से देशों में आशान्ति तथा विद्रोह की बडी प्रबल आशंका हिने लगी थी। कुछ का मत था कि कदांचित पूर्व अमीर अम्मानुल्लाखॉ इटली से फिर स्वदेशको लौटे। कुछ का मत था कि देशों के भीतर ही कुछ गडबड उठ खडी होगी। किन्तु ये सब आशंका निर्मूल रहीं। इस सबका मुख्य कारण यहीं विदित होता है कि नादिरखॉ की हत्या चाहे एक दुष्ट ने भले ही कर डाली हो किन्तु वह बडा लोकप्रिय था, उसकी प्रजा उसपर विश्वास रकती थी। देशवासियों का जो अघात प्रेम उसके प्रति था वह् तो यों ही प्रकट है। उसके शव के साथ लाखों आदमी गए, बाजार इत्यादि सब ब्ंद हो गए तथा सब के ह्र्दय से दुख की ध्वनि निकली पडती थी। उसकी कव्र पर नित्य सहस्रों मनुष्य जियारत करने आते है। देशवासियों ने इससे शहीद मानना स्वीकार किया है। पिता के गुरुओं पर मुग्ध प्रजा युवा पुत्र जहीर के प्रति भी वहीं सम्मान तथा प्रेम के भाव रखती है। यही कारण है कि बिना किसी भगडे फिसाद के इतनी सरलता से जहोर अमीर बन बैठा । राज्य के प्रतेक भाग से नय अमीर के प्रति सत्यनिष्ठा की शपथ लेने के लिए सहस्रों मनुष्य नित्य चले आते है।